सम्पादकीय

हास्‍य-व्‍यंग्‍य : गांधी जी की मुश्किलें बढ़ाते नेता, शराब नीति पर किनकी बातों पर दें ध्यान

Rani Sahu
27 Aug 2022 5:38 PM GMT
हास्‍य-व्‍यंग्‍य : गांधी जी की मुश्किलें बढ़ाते नेता, शराब नीति पर किनकी बातों पर दें ध्यान
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गांधी जी की मुश्किलें बढ़ाते नेता
सोर्स जागरण
कमल किशोर सक्सेना : बड़े-बुजुर्गों ने बिल्कुल ठीक कहा है कि ये अंगूर की बेटी यानी शराब न किसी की हुई है और न होगी। इतिहास गवाह है। इसके चक्कर में न जाने कितने लोग बर्बाद हो गए, नवाबों की हवेलियां बिक गईं और राजे-रजवाड़े तबाह हो गए। फिर भी कमबख्त बेवफा की बेवफा है। ताजा किस्सा देश के दिल कही जाने वाली दिल्ली का है। वहां इस किशमिश की पोती ने उधम काट रखा है।
कहानी कुछ दिन पहले दारू की दुकानों से शुरू हुई थी। उन पर एक बोतल खरीदने पर दूसरी मुफ्त मिल रही थी। पीने वालों को क्या चाहिए... माल-ए-मुफ्त, दिल-ए-बेरहम, पिए जा जाम भर-भर के। लोगों ने न सिर्फ जी भरकर पी, बल्कि डुबकी लगाकर स्नान तक कर लिया। कुछ ने तो इससे आगे भी अपनी उम्मीदें बांध लीं। उन्हें लगा आज एक बोतल पर दूसरी फ्री है। संभव है इसी नीति को विस्तार देकर आगे बिजली के साथ पेट्रोल और पानी के साथ डीजल भी फ्री में मिल जाए। अपराधी जनों ने एक लूट संग दूसरी लूट का सपना भी देख डाला, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, उल्टे चौतरफा आलोचना और विरोध शुरू हो गया। नतीजा फैसले को पलट दिया गया। इसके बाद आलोचना और विरोध के स्वर और तेज हो गए।
इस सबके बीच एक नेता जी इतने दुखी हुए कि उन्होंने बाकायदा प्रायश्चित करने की ठान ली। कायदे से यह प्रायश्चित किसी देसी-विदेशी शराब के ठेके, होटल अथवा बार में हलक तर करके किया जा सकता था। इससे भी जी न भरता तो श्रद्धानुसार 21, 51 या 101 बेवड़ों को काकटेल पार्टी दी जा सकती थी, लेकिन उन्होंने प्रायश्चित राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चरणों यानी बापू की समाधि पर करने के बारे में सोचा। यह संकल्प सुन हम कांप उठे। जिन बापू की जयंती पर गांव-गांव, शहर-शहर के ठेकों की पिछली खिड़की छोड़कर मुख्य दरवाजों पर ताले लग जाते हैं, उन बापू के समक्ष दारू के लिए प्रायश्चित। इसके आगे की कल्पना से ही हमें डर लगने लगा।
आगे का दृश्य इस प्रकार है-बापू की आत्मा भी उन्हें देखकर कांप उठी। मरने से पहले बापू ने दक्षिण अफ्रीका देखा, इंग्लैंड देखा, अंग्रेजों का राज देखा, तमाम लार्ड-गवर्नर देखे, जेल देखी, आंदोलन देखे, खादी-चरखे के साथ देश का बंटवारा देखा। मरने के बाद समाधि पर आने वाले पर्यटक, देसी-विदेशी राजनयिक, शपथ लेते नेता, 30 जनवरी का सालाना श्रद्धांजलि कार्यक्रम देखा। आजाद भारत की कई सरकारें देखीं, कुर्सी के लिए जूतम पैजार देखी, परिवारवाद, भाई-भतीजावाद देखा, खुद उनके नाम पर लोगों को झूठी कसमें खाते, झूठे वादे करते देखा...और हाल ही में स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव भी देखा।
हमें भी लगा कुछ गलत है। शराब का एक प्रोटोकाल होता है, जिसके तहत पीने के बाद गाली-गलौच, मारपीट और नाली में लोटने जैसी क्रियाएं तो की जा सकती हैं, किंतु प्रायश्चित करने के लिए गांधी जी की समाधि पर जाने का विचार ही पूरी बोतल का नशा उतारने के लिए काफी है। हम सोचने लगे-हे प्रभु, आपने बापू को किस परीक्षा में डाल दिया। वह ठहरे सत्य और अहिंसा के पुजारी। तीन बंदरों के मदारी। उन्होंने जीते जी बकरी के दूध और देशवासियों के गम के अलावा कुछ न पिया। क्या अब उन्हें कौन सी शराब नीति सही है या गलत, इस पर बहस और विवाद का भी साक्षी बनना पड़ेगा। मदिरा के विरोधी रहे बापू को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि वह शराब नीति पर किन नेताओं की बातों पर ध्यान दें-पक्ष के या विपक्ष के।
हमने महसूस किया कि बापू व्यथित हैं। वह सच्चे दिल से 'हे राम' कहना चाहते हैं, किंतु मन मसोस कर रह जाते हैं। आज के दौर में राम का नाम लेने वाला सांप्रदायिक माना जाता है। बापू बेचैन हैं, लेकिन नेतागण अपने लाव-लश्कर के साथ उनकी समाधि पर विराजमान हैं। उन्हें प्रायश्चित करना है, लेकिन तरीका नहीं जानते। फिर भी नेता लोग अपने इरादे पर अडिग हैं और ये नजारा देख बापू खुद प्रायश्चित करने का निश्चय करते हैं।
Rani Sahu

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