सम्पादकीय

हास्‍य व्‍यंग्‍य: चीता श्री की दो-टूक व्यवस्था, पूरे जंगल को ही अपने स्टूडियो में उठा लाया एक एंकर

Rani Sahu
8 Oct 2022 6:27 PM GMT
हास्‍य व्‍यंग्‍य: चीता श्री की दो-टूक व्यवस्था, पूरे जंगल को ही अपने स्टूडियो में उठा लाया एक एंकर
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सोर्स - Jagran
संतोष त्रिवेदी। बहुत बड़ा जंगल था। दूसरे जंगलों की तरह इसमें आर-पार जाने की आजादी नहीं थी। कह सकते हैं, एक बड़े बाड़ा जैसा था। उसमें किसी भी ऐरे-गैरे जानवर की 'एंट्री' नहीं थी। आज उसी जंगल में खूब चहल-पहल थी। खबर थी कि धरती पर सबसे तेज भागने वाले चीता महाराज अपने दल-बल के साथ जंगल में पधार रहे हैं। इसलिए सभी ख्यात चैनल-वीर मोर्चे पर डटे हुए थे। आखिर इंतजार की घड़ियां खत्म हुईं। एकबारगी हजारों फ्लैश की रोशनी के मध्य चीता श्री ने अपनी पहली झलक दिखाई।
पहले तो आम दर्शक समझ ही नहीं पाए कि एंकर और चीते में असली चीता कौन है। दरअसल, रिपोर्टिंग में विश्वसनीयता बहाल करने के लिए चैनलों ने कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी। दर्शक चीतों से पहले चीता-एंकर के कौतुक देखने लगे, पर जल्द ही कुछ समझदार दर्शकों ने वास्तविक चीते की पहचान कर ली। यह सब घटित हो रहा था कि तभी एक उत्साही चैनल ने एक ऐसी दुर्लभ क्लिप दिखाई, जिसमें नवागंतुक चीता श्री और उनके खान-पान की व्यवस्थापक चीतल कुमारी बिन दहाड़े बातचीत करते पाए गए। इसी बातचीत का संपादित अंश यहां प्रस्तुत है।
चीतल कुमारी थाल में स्वयं को सजाकर चीता श्री के सम्मुख अर्पित करते हुए बोलीं, 'महाराज, इस अभयारण्य में आपका स्वागत है। आपके खान-पान में कोई असुविधा न हो, इसलिए हम अपने बंधु-बांधवों सहित आपकी सेवा में उपस्थित हैं। आप जिसको चाहें, वरण कर लें।' चीता श्री यह सुनकर हंस पड़े।
चीतल कुमारी की ओर अतिरिक्त अनुराग से देखते हुए बोले, 'लगता है तुम जंगल के कायदे भी भूल गई? हम वरण नहीं, आक्रमण करते हैं। दूसरी बात, यहां केवल हम ही अभय हैं। यह तुम्हारे लिए 'अभयारण्य' कब से हो गया? भई, जंगल-अधिपति हम और हमारा कुटुंब है। तुम्हारा जन्म ही हमारे जीवन और हमारे पर्यावरण के लिए हुआ है। इसलिए हमारे स्वागत के सिवा तुम्हारे पास कोई विकल्प नहीं है। यह हम पर निर्भर है कि तुम में से हम किसका समर्पण स्वीकारें।'
चीता श्री की यह दो-टूक व्यवस्था सुनकर चीतल कुमारी तनिक भी विचलित नहीं हुईं। उनके बड़े जबड़े में प्रविष्ट होने से पहले पूछा, 'हमने सुना है कि आपकी प्रजाति विलुप्त हो रही थी। कहा जा रहा है कि प्रकृति-संतुलन बनाने के लिए आपकी उपस्थिति अनिवार्य है। इसलिए आपकी वंश-वृद्धि के लिए पूरी कायनात तत्पर हो गई। हम उसी 'प्रोजेक्ट' का हिस्सा हैं।
हम भी चाहते हैं कि किसी बिगड़ैल नायक द्वारा रौंदे जाने या 'शूट' किए जाने के बजाय आपके श्रीमुख में पर्यावरण-रक्षा करते हुए समा जाएं। आपके जीवन के लिए हम जरूरी हैं, इससे तो हमारी ही महत्ता बढ़ती है। इस पर आप हंस क्यों रहे हैं?' चीतल कुमारी का यह सवाल चीता श्री को पसंद नहीं आया। भोजन ग्रहण करते समय वह किसी तरह की बहस में नहीं पड़ना चाहते थे।
बात टालने की गरज से वह धीरे से बोले, 'सरकार कभी हमें विलुप्त नहीं होने देगी और हम तुम्हें। आम ने हमेशा खास का ध्यान रखा है। इसे जंगल की भाषा में 'शिकार' कहते हैं, पर 'राजपथ' का यह 'कर्तव्य' है। और हां, तुम्हें आज खबर में जो एक कोना मिला है, इसका कारण हम हैं। इससे साफ है कि तुम्हारी खोज-खबर लेने वाला मेरे अलावा कोई नहीं है। आओ, हम दोनों मिलकर प्रकृति, पर्यावरण और राज्य की रक्षा करें!'
बस, उस 'क्लिप' में इतना ही दृश्य था। मेरा अभी मन नहीं भरा था। तभी रिमोट उठाकर दूसरे चैनल की बटन दबा दी। वहां चीता-विमर्श में पूरा पैनल लगा हुआ था। इनमें पर्यावरण-विशेषज्ञ, वन्य-प्रेमी, पर्यटक, व्यवसायी और आधुनिक इतिहासकार आमंत्रित थे। कार्यक्रम का संचालन कर रहा एंकर पूरे जंगल को ही अपने स्टूडियो में उठा लाया था। पूरा माहौल जंगली था। वे चीता श्री के सत्तर साल के सफर को याद कर रहे थे, तभी बेटे ने इससे भी बड़ी ब्रेकिंग-न्यूज दी कि उसे एक मोटे पैकेज के साथ 'चीता-चैनल' में आफर मिल गया है। तब कहीं जाकर मेरे दिल को चैन आया।
Rani Sahu

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