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Written by जनसत्ता: युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। जिस प्रकार बीते नौ दिनों से दो देशों के बीच वर्चस्व की लड़ाई चल रही है, उससे यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि आखिरकार इन दोनों मुल्कों के नेता चाहते क्या हैं? क्या इनके लिए इंसानों के जीवन का कोई महत्त्व नहीं? क्या ये परमाणु बम को दूसरी दफा उपयोग में लाने की फिराक में हैं? ऐसे कई सवाल हैं।
यह सत्य है कि अब तक जितने भी युद्ध हुए, उनमें निर्दोष नागरिक ही मारे गए हैं और सैनिकों ने युद्ध के मैदान में अपनी जान गंवाई है। साधारण लोगों को ही विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ा। जिन नेताओं ने युद्ध का आगाज किया, उनके ऊपर जंग का कोई असर नहीं हुआ। उन लोगों का जीवन ऐशो-आराम से गुजरा। यूक्रेन की स्थिति भी कुछ वैसी ही कहानी बयान करती है।
इस हमले में सैकड़ों निर्दोष लोगों ने अपनी जान गंवाई है। शहर से लेकर गांव के सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। जिन गलियों में बच्चों की किलकारियां सुनने को मिलती थीं, फिलहाल वहां बम के धमाके सुनाई पड़ रहे हैं। देश में खाने-पीने का संकट पैदा हो गया है। देश में बिजली संकट होने से पेयजल की समस्या उत्पन्न हो गई है। घायल व्यक्तियों को अस्पताल में इलाज करने वाला कोई नहीं है। अस्पतालों को भी निशाना बनाया जा रहा है। प्रवासी लोग यूक्रेन छोड़ने को मजबूर हैं।
इन हालात में कई स्थानों पर दूसरे देशों के सैनिकों का बेकसूर लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार भी देखने को मिला है। दहशत के माहौल में निकलने की वजह से कई लोगों ने अपनी जिंदगी तबाह कर ली। लेकिन, उनका क्या, जिनके आशियाने इसी देश में है? जिसने उसी मिट्टी में जन्म लिया, वह अपने वतन को कैसे छोड़ सकता है?
आज यूरोपियन संघ यूक्रेन को आर्थिक मदद पहुंचा रहा है, जो आग में घी डालने जैसा है। अगर किसी देश को इस युद्ध में यूक्रेन के रहमो-करम के लिए कुछ करना है, तो पूरी तरह से समर्थन करे। नहीं तो, इस युद्ध को रोकने की अपील करे। अगर इसी तरह सिलसिला जारी रहा और रूस पर प्रतिबंध लगता रहा, तो पूरे विश्व में जिसका बड़ा डर है, वही होगा और उसका परिणाम करोड़ों जिंदगियां तबाह हो जाएंगी।