सम्पादकीय

मानवाधिकार चुनिंदा हैं

Gulabi
14 Oct 2021 5:19 AM GMT
मानवाधिकार चुनिंदा हैं
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मानवाधिकार को संविधान की किताब में बंद ही रखना चाहिए।

divyahimachal .

मानवाधिकार को संविधान की किताब में बंद ही रखना चाहिए। वहीं बड़ा सजावटी और आकर्षक लगेगा। हमारा महान देश मानवाधिकार के बड़े दावे करता रहता है, आजकल धर्मनिरपेक्षता का शोर शांत हो चुका है, शायद उसकी आत्मा को मार दिया गया है, लेकिन औसत मानवाधिकार पर भी यथार्थ बिल्कुल विपरीत है। बीती 12 अक्तूबर को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का 28वां स्थापना दिवस था। उस मौके पर संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने मानवाधिकार पर दोगले आचरण को लोकतंत्र के लिए नुकसानदायक क्या माना कि कांग्रेस ने अतीत के मानवाधिकार उल्लंघनों का पिटारा ही खोल दिया और यहां तक टिप्पणी की कि प्रधानमंत्री को खुद के दोगलेपन पर शर्म आनी चाहिए। कितनी बौखलाहट और खीझ है कांग्रेस के भीतर? बुनियादी मुद्दा मानवाधिकार का है, जो संविधान देश के आम नागरिक को भी प्रदान करता है, लेकिन यह ताकत और मौलिक अधिकार सिर्फ किताबी है। आम आदमी जि़ंदगी के लिए जद्दोजहद करेगा या मानवाधिकार की लड़ाई के लिए अदालतों में धक्के खाता रहेगा? अहम सवाल यह भी है।

मौजूदा संदर्भ उप्र के लखीमपुर खीरी का है। वहां चार कथित किसानों को वाहनों से कुचल कर मार दिया गया, लेकिन भाजपा के चार कार्यकर्ताओं की भी पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। पत्रकार रमन कश्यप भी उस हिंसा का शिकार हुए और जि़ंदगी खो बैठे। इस कांड को लेकर कांग्रेस और सपा सबसे अधिक आक्रामक और आंदोलित हैं, लेकिन भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या को 'क्रिया की प्रतिक्रिया' करार दिया जा रहा है। ऐसा क्यों है? क्या सभी नागरिकों के मानवाधिकार एक समान नहीं हैं? भाजपा कार्यकर्ताओं के इंसाफ की लड़ाई क्यों नहीं लड़ी जा रही है? वे कांग्रेस और सपा-बसपा के कार्यकर्ता भी हो सकते थे! साफ लग रहा है कि पूरी राजनीति 'अछूत भाजपा' और सिख किसानों के मद्देनजर की जा रही है।


प्रधानमंत्री ने इसी 'चुनिंदा सियासत' पर अफसोस जताया था और सभी के मानवाधिकार पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने मानवाधिकार हनन की ऐतिहासिक घटनाओं को नहीं गिनाया था। हमारा इतिहास तो नरसंहार सरीखे मानवाधिकार हनन के मामलों से भरा है। कब तक और क्या-क्या गिनाएंगे? फिलहाल लखीमपुर के समानांतर राजस्थान के हनुमानगढ़ में किसानों पर लाठियां बरसाई गईं। दलितों को पीट-पीट कर मार डाला। एक नाबालिग दलित के साथ बलात्कार का दुष्कर्म किया गया। बलात्कार के संदर्भ में राजस्थान का देश भर में शीर्ष स्थान है। कांग्रेस का सरोकार किन किसानों और दलितों के प्रति है? इन घटनाओं पर विपक्ष का एक बयान, ट्विटर टिप्पणी तक सामने नहीं आई, भर्त्सना तो बहुत दूर की बात है। क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस की ही सरकार है! कांग्रेस शासित राज्यों में मानवाधिकारों को कुचलने की छूट है? यही चुनिंदा सियासत है। पलटकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भाजपा नेताओं को ही 'बेवकूफ' करार दे दिया। प्रधानमंत्री ने ऐसे चुनिंदा मानवाधिकार पर चिंता जताई थी और लोकतंत्र के खतरों के प्रति आगाह किया था, लेकिन कांग्रेस ने प्रधानमंत्री को ही 'चुनिंदा मानवाधिकारवादी' करार देते हुए हत्याओं और घटनाओं की पोटली खोल दी। प्रधानमंत्री किसी भी घटना या हत्या के प्रथमद्रष्ट्या आरोपित नहीं हैं। अलबत्ता उनकी जिम्मेदारी 'राष्ट्रीय' जरूर है। असंख्य मामले हैं कि कांग्रेस की मानवाधिकार संबंधी सोच पर सवाल हो सकते हैं।


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