सम्पादकीय

मान्यता का मानवीय तोहफा

Gulabi
6 Nov 2021 5:03 AM GMT
मान्यता का मानवीय तोहफा
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भारत के प्रथम और संपूर्ण स्वदेशी कोरोना रोधी टीके-कोवैक्सीन-को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दीपावली का एक खुशनुमा और मानवीय तोहफा माना गया है

दिव्याहिमाचल.

भारत के प्रथम और संपूर्ण स्वदेशी कोरोना रोधी टीके-कोवैक्सीन-को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दीपावली का एक खुशनुमा और मानवीय तोहफा माना गया है। कई सवालों, संदेहों और वैज्ञानिक आपत्तियों के बाद, अंतत:, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोवैक्सीन को मान्यता दी है। अब यह भारतीय टीका दुनिया भर में आपात इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होगा। यह भारत के विदेश यात्रियों, कारोबारियों, छात्रों और सैलानियों के लिए सुखद और सकारात्मक ख़बर है, बल्कि उन गरीब, निम्न-मध्य आय वाले और अफ्रीकी देशों के लिए 'संजीवनी' साबित होगी, जिन देशों तक कोरोना रोधी टीका अभी तक नहीं पहुंच पाया है अथवा नाममात्र ही उपलब्ध है। अब इसेे विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ और बिल गेट्स सरीखों के साझा कार्यक्रम 'कोवैक्स' में भी शामिल किया जा सकेगा। इस प्लेटफॉर्म से कुछ अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी जुड़ी हैं, ताकि गरीब, वंचित, पिछड़े देशों में कोरोना टीके का समान और सस्ता आवंटन तय किया जा सके। कोवैक्सीन की भारतीय कंपनी भारत बॉयोटेक ने 2-18 साल उम्र के बच्चों के लिए भी टीका तैयार कर लिया है। उसके तमाम परीक्षण किए जा चुके हैं।

यह दुनिया का इकलौता टीका है, जो 5 साल की उम्र से कम बच्चों में दिया जा सकेगा। बच्चों का यह टीकाकरण अभियान भारत में जल्द ही आरंभ हो रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन इस बाल-टीके की अलग से समीक्षा करेगा और फिर मान्यता दी जाएगी, लेकिन कोवैक्सीन की मान्यता ने कोरोना वायरस के खिलाफ दुनिया के सुरक्षा-कवच को अधिक मजबूत बना दिया है। कोवैक्सीन का अनुसंधान कोरोना महामारी फैलने के तुरंत बाद ही शुरू कर दिया गया था। हालांकि अहमदाबाद की कंपनी जायड्स ने भी ऐसे प्रयास शुरू कर दिए थे। उसका टीका भी कैडिला के साथ मिलकर शीघ्र ही आने वाला है। दरअसल कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बॉयोटेक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न बीमारियों के 15 से अधिक टीकों का अनुसंधान और उत्पादन करने वाली विख्यात कंपनी है। अनेक देशों में उसके टीकों से जि़ंदगियां बची हैं। उसके टॉयफाइड वाले टीके को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2018 में मान्यता दी थी। उस टीके की इम्युनिटी सबसे अधिक लंबी और कारगर आंकी गई है। रोटावायरस टीका ऐसा है, जिसे एक दशक लंबे अनुसंधान के बाद विकसित किया गया है। यह टॉयफाइड टीका है, जिसकी प्रौद्योगिकी नवीनतम मानी जाती है। तीन साल पहले बाज़ार में आए इस टीके के अलावा, हेपटाइटिस-बी, रेबीज, इंफ्लुएंजा आदि के टीके भी इस कंपनी ने बनाए हैं। वे सभी असरकारक टीके आंके गए हैं। कोरोना के संदर्भ में भारत सरकार ने कोवैक्सीन को इसी साल जनवरी माह में ही आपात इस्तेमाल की स्वीकृति दे दी थी।


तब से अब तक करीब 13 करोड़ खुराकें लोगों में दी जा चुकी हैं। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा उत्पादित कोवीशील्ड टीके की तुलना में यह आंकड़ा बौना-सा लगता है, क्योंकि उसके 90 करोड़ से ज्यादा टीके लगाए जा चुके हैं। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने कोवैक्सीन टीका लगवाया है और विश्व स्वास्थ्य संगठन के सामने टीके की पैरोकारी भी की थी, लेकिन देश के युवाओं समेत आबादी के बड़े हिस्से ने कोवैक्सीन पर भरोसा बेहद कम किया। कारण, टीके को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता नहीं दी थी। कोवैक्सीन के परीक्षण के साथ हड़बड़ी के आरोप और संदेह भी चस्पा रहे। अब वे संदेह पिघलने चाहिए। हमें अपने ही स्वदेशी अनुसंधान पर भरोसा करना चाहिए, क्योंकि मान्यता से पहले ही 38 देश इस टीके को मान्यता ही नहीं दे चुके थे, बल्कि निर्यात के ऑर्डर भी भेज चुके थे, लिहाजा मौजूदा स्थितियों में भारत बॉयोटेक को कोवैक्सीन के उत्पादन और वितरण को नए विस्तार देने चाहिए। प्रधानमंत्री ने कई राज्यों के जिलों में घर-घर जाकर टीकाकरण करने के आदेश दिए हैं, लिहाजा स्वास्थ्यकर्मियों के हाथ नहीं रुकने चाहिए। अभी भारत में ही कोरोना के खिलाफ पूरा मोर्चा जीतने के लिए टीकाकरण का लंबा सफर तय करना शेष है। हम हर्ड इम्युनिटी के करीब तो पहुंचने वाले हैं, लेकिन संक्रमण तथा महामारी के खिलाफ युद्ध जीतने इतने आसान नहीं होते।


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