सम्पादकीय

मानवीय तकाजा

Subhi
28 Sep 2021 12:47 AM GMT
मानवीय तकाजा
x
पिछले करीब डेढ़ साल से दुनिया महामारी की चुनौती से जूझ रही है। इसका सामना करते हुए न सिर्फ लोगों को इससे बचाने के ठोस उपायों पर लगातार काम चल रहा है

पिछले करीब डेढ़ साल से दुनिया महामारी की चुनौती से जूझ रही है। इसका सामना करते हुए न सिर्फ लोगों को इससे बचाने के ठोस उपायों पर लगातार काम चल रहा है, बल्कि बचाव के जरूरी इंतजाम के साथ जनजीवन को सामान्य बनाने की भी कोशिश चल रही है। बहुत सारे देशों ने कोरोना विषाणु के संक्रमण को काबू करने के उपायों के साथ-साथ आर्थिक और दूसरी सार्वजनिक गतिविधियों को धीरे-धीरे सहज बनाने की ओर कदम उठाए हैं। खासतौर पर जब से कोरोना विषाणु से बचाव का टीकाकरण चल रहा है, तब से एहतियात की हिदायतों के साथ कई स्तर पर राहतें भी दी गई हैं, ताकि लोग अब भविष्य की ओर बढ़ सकें। लेकिन इसी बीच दुनिया के कई हिस्सों से ऐसी खबरें भी आ रही हैं, जिनमें इस महामारी के नाम पर लगाई गई पाबंदियां बहुत सारे लोगों को नाहक बंधक जैसे हालात में बनाए रखने का जरिया साबित हो रही हैं। मसलन, चीन ने कोविड-19 की स्थिति का हवाला देते हुए वीजा प्रक्रिया को अब तक निलंबित किया हुआ है। प्रथम दृष्टया यह कोरोना की संवेदनशीलता के मद्देनजर एहतियात बरतने की कोशिश लगती है। लेकिन व्यवहार में इसका सीधा असर यह पड़ा है कि चीन में करीब तेईस हजार से ज्यादा भारतीय विद्यार्थी, सैकड़ों उद्योगपति और कामगार अपने परिवारों के साथ बीते एक साल से फंसे हुए हैं।

महामारी के जिस दौर में तमाम देशों में परेशानी में पड़े लोगों की मदद करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आपसी सहयोग के उदाहरण सामने आए, उसमें चीन का यह रुख निराश करने वाला है कि उसने वहां फंसे भारतीय विद्यार्थियों, कर्मचारियों और उनके परिवारों को लौटने की इजाजत देने से इनकार कर दिया। स्वाभाविक ही भारत सरकार ने भी इस पर गहरी निराशा जताई है और इसे एक विशुद्ध मानवीय मुद्दे के प्रति 'अवैज्ञानिक दृष्टिकोण' बताया है। गौरतलब है कि भारत से वहां गए विद्यार्थियों में से ज्यादातर मेडिसिन की पढ़ाई कर रहे हैं, जो अभी लौटना चाहते हैं। इनके अलावा, कारोबारियों, मरीन क्रू और निर्यातकों के सामने भी कई तरह की समस्याएं हैं। हालांकि इस महीने के शुरू में विदेशियों पर यात्रा पाबंदियां हटाने के सवाल पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि बीजिंग अंतरराष्ट्रीय यात्रा से संबंधित मुद्दों पर सभी पक्षों के साथ करीबी संवाद बनाए रखने को तैयार है। मगर इसके बरक्स चीन का रुख उसके घोषित दिखावे की हकीकत बताता है।
दरअसल, कोरोना संक्रमण पर काबू पाने की कोशिशों के बीच सभी देशों में आगे बढ़ने के रास्ते तैयार किए जा रहे हैं। टीका और बचाव के उपायों के साथ कोराबारी गतिविधियों से लेकर अब स्कूल-कॉलेज भी खोलने की ओर बढ़ा जा रहा है। यानी विज्ञानसम्मत विचार के सहारे जनजीवन को सामान्य बनाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन संक्रमण का हवाला देकर अगर चीन में बड़ी तादाद में विद्यार्थियों और अन्य लोगों को अघोषित तौर पर बंधक की तरह के हालात में रहने पर मजबूर किया जा रहा है तो इसे कैसे देखा जाएगा? जिस महामारी का सामना करने के पीछे मकसद मनुष्य की रक्षा करना है, उसके बहाने लोगों को बहुस्तरीय मुश्किल में डालना विचित्र है। फिर बचाव के वैज्ञानिक उपायों का तर्क खारिज करके लोगों को कैद करना यों भी अवैज्ञानिक दृष्टिकोण है। ऐसा लगता है कि चीन के इस रुख के पीछे प्रत्यक्ष कारण कोविड-19 की स्थितियां जरूर हैं, लेकिन मुख्य वजह भारत के प्रति उसका दुराग्रह है, जिसके चलते वह गाहे-बगाहे मनमानी करता रहता है। चीन में फंसे भारतीयों को उनके गंतव्य तक जाने देना एक विशुद्ध मानवीय मुद्दा है और अपने आग्रहों को किनारे कर चीन को इस दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए।


Next Story