सम्पादकीय

2022 के बजट में ह्यूमन कैपिटल पर भी ध्यान देना जरूरी, बच्चों को वापस स्कूल लाने से हो सकती है शुरुआत

Gulabi
28 Jan 2022 3:03 PM GMT
2022 के बजट में ह्यूमन कैपिटल पर भी ध्यान देना जरूरी, बच्चों को वापस स्कूल लाने से हो सकती है शुरुआत
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बच्चों को वापस स्कूल लाने से हो सकती है शुरुआत
करन भसीन। जनवरी के महीने में कई इकनॉमिक सेक्टरों का ध्यान बजट (Budget) की ओर चला जाता है, सभी की अपनी-अपनी चाहतों की लिस्ट होती है. हालांकि, बीते वर्षों से देखा जा रहा है कि बहुत सी आर्थिक नीतियां यूनियन बजट (Union Budget) से इतर भी बनाई जा रही हैं. फिर भी, हमेशा की तरह इस बार भी 2022 के आम बजट से काफी कुछ उम्मीदें हैं. आंकड़ों और आर्थिक शब्दजाल से अलग यह समझना जरूरी है कि अर्थव्यवस्था (Economy) का वास्तविक उद्देश्य लोगों का कल्याण ही है. आर्थिक विकास के साथ-साथ लोगों के जीवन की गुणवत्ता में भी बढ़ोतरी होनी चाहिए.
वैसे भी कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया के भविष्य को नुकसान पहुंचाया है. विश्व के कई हिस्सों में स्कूल-कॉलेज या तो बंद हैं या फिर ऑनलाइन क्लास चल रहे हैं. भारत भी इससे अछूता नहीं हैं, यहां भी शिक्षा पर बुरा असर पड़ा है, क्योंकि ज्यादातर राज्य सरकारें अभी भी स्कूलों खोलने को लेकर हिचक रही हैं, जबकि तीसरी लहर से पहले अर्थव्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों को खोल दिया गया था.
स्कूलों के बंद होने की वजह से कौशल क्षमताओं का अंतर बढ़ सकता है
भारत एक ऐसा देश है जहां कॉलेज की शिक्षा पूरी कर चुके अंग्रेजी बोलने वाले छात्रों की संख्या पूरी दुनिया में सबसे अधिक है. इस हालात में लगातार दो एकेडमिक वर्षों में स्कूल-कॉलेजों को बंद करने या फिर वर्चुअल क्लास लगाने से हमारे ह्यूमन कैपिटल पर अच्छा-खासा असर पड़ने वाला है.
बीते कई वर्षों से शिक्षा की गुणवत्ता भारत के लिए एक अहम विषय रहा है, ऐसे में स्कूलों के बंद रहने से हालात और भी गंभीर हो जाते हैं. और अब तक हम यह समझ चुके हैं कि स्कूली की कक्षा में व्यक्तिगत उपस्थिति से ही बेहतर गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त की जा सकती है.
इसके अलावा, डिजिटल असमानता (गांव और शहर के बीच डिजिटल साधनों की उपलब्धता का अंतर) का मुद्दा भी अहम है, जिसने शिक्षा के परिणाम और ह्यूमन कैपिटल के निर्माण में अहम भूमिका अदा किया है. इसलिए, लगातार दो एकेडमिक वर्षों के दौरान शिक्षा में पड़ी बाधा के विशेष आर्थिक मायने भी हैं. इससे हमारी आर्थिक तरक्की और विकास की रफ्तार पर असर पड़ सकता है. स्कूलों के बंद होने की वजह से कौशल क्षमताओं का अंतर बढ़ सकता है.
कंडीशनल कैश ट्रांसफर से पूरे साल स्कूल में उनका नामांकन बना रह सकता है
इसके अलावा, पर्याप्त पोषण की कमी भी चिंता भी एक दूसरी वजह है, क्योंकि स्कूलों के बंद रहने के दौरान राज्य सरकारें मिड-डे मिल उपलब्ध कराने की वैकल्पिक व्यवस्था करने में अक्षम रही है. ऐसे ही जब स्कूल दोबारा खुलेंगे तो ड्रॉप-आउट रेट (स्कूल छोड़ने वालों की संख्या) में इजाफा होने की भी चिंता है. इससे ड्रॉप-आउट होने वाले छात्रों पर स्थाई असर पड़ेगा, भले ही अर्थव्यवस्था इस असर को संभालने में सक्षम हो. अर्थशास्त्री तार्किकता पर ध्यान देते हैं, लेकिन गरीबों को अक्सर विभिन्न तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिसकी वजह से उन्हें अपने वर्तमान पर ही ध्यान देने पर मजबूर होना पड़ता है, उनके लिए यह अहम नहीं रह जाता कि लंबी अवधि में उनके लिए क्या बेहतर है. इसके लिए वे स्कूल जाने के बजाए अपने को जीवित रखने और अपने अस्तित्व को बचाए रखने पर ध्यान देते हैं और मजदूरी पर काम करना शुरू कर देते हैं.
इसलिए, इन चुनौतियों को दूर करने पर विचार और उपयुक्त उपाय करने की आवश्यकता है. उन बाधाओं को दूर करना जरूरी है जो छात्रों को स्कूल छोड़ने पर मजबूर कर सकते हैं. मेरे दिमाग में जो पहला उपाय आ रहा है वह कंडीशनल कैश ट्रांसफर का है, जिसे छात्रों को दिया जा सकता है, बशर्ते वे स्कूल में निश्चित दिनों की उपस्थिति बनाए रखें और पूरे साल स्कूल में उनका नामांकन बना रहे. कैश ट्रांसफर की राशि में धीरे-धीरे बढ़ोतरी भी की जा सकती है, ताकि छात्रों को स्कूली शिक्षा प्राप्त करते रहने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.
उदाहरण के लिए, यदि कोई छात्र लगातार तीन महीनों तक स्कूल जाता रहता है तो उसे 500 रुपय़े दिए जा सकते हैं, छह महीने के लिए 700 रुपये और संपूर्ण एकेडमिक वर्ष पूरा करने पर 1000 रुपय़े दिए जा सकते हैं. इस प्रकार, पूरे साल में एक छात्र को 2,200 रुपये प्राप्त होंगे. ऐसा प्रोत्साहन दो वर्षों के लिए दिया जा सकता है, ताकि छात्र कम से कम दो साल के लिए स्कूल न छोड़े. इसके बाद भी, यदि कोई आगे की पढ़ाई जारी रखता है तो उसे अन्य तरह के स्टैंडर्ड इंसेंटिव दिए जा सकते हैं.
टारगेटेड एजुकेशन वाउचर प्रोग्राम पर भी विचार हो सकता है
दूसरा विकल्प टारगेटेड एजुकेशन वाउचर प्रोग्राम पर विचार करना हो सकता है, जिसका इस्तेमाल केवल शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए हो. निश्चित रूप से इसमें सरकार को अपनी भूमिका बदलनी होगी, जहां एजुकेशन सर्विस देने वाली संस्था के बजाए सब्सिडी देने वाली संस्था होगी. इसके अलावा, शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए विभिन्न तरह के ग्रांट जैसे इंसेंटिव दिए जा सकते हैं. ऐसे प्रोग्राम किस्तों में पेश किए जा सकते हैं. ये हमारी शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता को बेहतर करने में अहम भूमिका निभाएंगे.
लंबे समय से स्कूलों के बंद होने के कारण पैदा हुई समस्याओं को दूर करने के लिए कई तरह के नीति निर्माण किए जा सकते हैं. प्रत्येक नीति का मूल्यांकन करना उतना जरूरी नहीं है, लेकिन सबसे अहम बात यह कि लंबे समय तक स्कूल के बंद रहने के विषय को राष्ट्रीय महत्व का मामला मानना चाहिए.
हमारे देश में सशक्तिकरण और विकास के लिए शिक्षा को एक महत्वपूर्ण उपकरण माना जाता है, लेकिन इस मामले में हमारा रवैया अपेक्षाकृत ढीला रहा है. और अब तक हमने बच्चे और उनके भविष्य से छेड़छाड़ के परिणामों की अनदेखी ही की है. 2022 वह वर्ष हो सकता है जब हमें इन चुनौतियों को पहचानने की जरूरत है और इन्हें दूर करने के लिए कुछ वित्तीय संसाधन और नीतिगत सहयोग उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाना चाहिए.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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