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इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट
चीन का मॉडल यह है कि ऋण चीन देता है, चीन की कंपनियां परियोजना पर काम करती हैं, जिनमें चीन में ही उत्पादित सामग्रियों का इस्तेमाल होता है। चीन ऐसा इसलिए कर पाया, क्योंकि वहां अर्थव्यवस्था में सरकार का काफी दखल है। जबकि जी-7 की अर्थव्यवस्था निजी क्षेत्र के हाथ में है।
जी-7 ने अपनी हाल की शिखर बैठक में चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना का जवाब उससे भी बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट ( g7 summit infra project ) से देने का एलान किया। इसे बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (बी3डब्लू) परियोजना नाम दिया गया है। जाहिर है, इसको लेकर दुनिया भर में भारी दिलचस्पी पैदा हुई है। लेकिन असल सवाल यह उठा है कि इस प्रोजेक्ट के लिए धन कौन देगा? चीन का मॉडल तो यह है कि ऋण चीन के ही बैंक देते हैं, चीन की कंपनियां परियोजना पर काम करती हैं, जिनमें ज्यादातर चीन में ही उत्पादित सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह चीन ने अपने अंदरूनी विकास को दुनिया की एक बड़ी परियोजना से जोड़ दिया है। चीन ऐसा इसलिए कर पाया, क्योंकि वहां अर्थव्यवस्था में सरकार का काफी दखल है। पश्चिमी देशों में अर्थव्यवस्था मोटे तौर पर प्राइवेट सेक्टर के हाथ में है। तो जाहिर है, उनकी योजना की सफलता इस पर निर्भर है कि प्राइवेट सेक्टर से वित्त जुटाने में कितनी कामयाबी मिलेगी। विशेषज्ञों के मुताबिक विकासशील देशों की इन्फ्रास्ट्रक्चर जरूरतों पर गौर करें, तो साफ होता है कि बी3डब्लू के लिए 40 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी। जी-7 देशों के इरादे के साथ अच्छी बात यह है कि जिस इन्फ्रास्ट्रक्चर की योजना उन्होंने रखी है, अगर वह कामयाब रही तो उससे ऊर्जा के पर्यावरण सम्मत इस्तेमाल का एक ढांचा उभर आएगा। यह जलवायु रक्षा की दिशा में बहुत बड़ी पहल साबित होगा।
इसके बावजूद ( g7 summit infra project ) मुश्किल यह है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण एक मुश्किल उद्यम है। खासकर ऐसा विकासशील देशों में ऐसा करना और भी चुनौती भरा है। इसलिए इसके लिए प्राइवेट सेक्टर कितना उत्साहित होगा, यह अनुमान लगाना मुश्किल है। इस सेक्टर की की निगाह ऐसी परियोजनाओं पर होगी, जिनसे भविष्य में मुनाफा होने का भरोसा हो। क्या सरकारें उस पर मुनाफे की गारंटी करेंगी? गौरतलब है कि चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में अब तक 150 से ज्यादा देश शामिल हो चुके हैँ। दसियों अरब डॉलर का खर्च इस पर हो चुका है। जबकि जी-7 की योजना अभी बस योजना है। जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा है कि 2022 में होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन में इससे संबंधित प्रस्तावों को पेश किया जाएगा। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक ब्योरा दुनिया के सामने नहीं आएगा। उधर तब तक चीन की परियोजना और आगे बढ़ चुकी होगी।
क्रेडिट बाय नया इंडिया
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