सम्पादकीय

आरक्षण पर संकट से कैसे उबरेगा शिवराज सिंह चौहान का ओबीसी चेहरा

Rani Sahu
23 Dec 2021 2:05 PM GMT
आरक्षण पर संकट से कैसे उबरेगा शिवराज सिंह चौहान का ओबीसी चेहरा
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पंचायत चुनाव में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षित पदों पर रोक लगाए जाने से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) के सामने अपनी छवि बचाने का संकट खड़ा हो गया है

दिनेश गुप्ता पंचायत चुनाव में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षित पदों पर रोक लगाए जाने से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) के सामने अपनी छवि बचाने का संकट खड़ा हो गया है. मुख्यमंत्री चौहान इसी वर्ग से आते हैं. आरक्षण पर रोक लगने से ओबीसी के अन्य बीजेपी नेता मुख्यमंत्री चौहान को घेरने में लगे हुए हैं. पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने साफ तौर पर कहा है कि आरक्षण के बिना चुनाव होते हैं तो यह 70 प्रतिशत आबादी के साथ अन्याय होगा.

राज्य में पंचायत चुनाव की प्रक्रिया चल रही है. पहले दौर का मतदान 6 जनवरी को होना है. पहले चरण में 6283 पंचायत 313 जनपद पंचायत में चुनाव का कार्यक्रम जारी किया गया था. गुरुवार को नाम वापसी का अंतिम दिन था. नामांकन पत्र दाखिल किए जाने की अंतिम तारीख 20 दिसंबर थी. लेकिन, इससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश आ गया, जिसमें ओबीसी सीटों को सामान्य किए जाने के लिए कहा गया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने ओबीसी की आरक्षित सीटों पर चुनाव प्रक्रिया को रोक दिया. इसके साथ ही सरकार को पत्र भेजकर आरक्षित सीटों को सामान्य सीट में बदले जाने की अधिसूचना जारी करने के लिए कहा. तीन दिन का समय आयोग की ओर से सरकार को दिया था. लेकिन,सरकार ने संशोधित अधिसूचना जारी नहीं की है.
राजनीति का फोकस आदिवासी से ओबीसी
पिछले कुछ माह से राज्य की राजनीति का केन्द्र आदिवासी वोटर थे. भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति किए जाने के पीछे भी आदिवासी वोटरों को साधने की राजनीति रही. राज्य में आदिवासी वोटर बीस प्रतिशत से भी ज्यादा हैं. विधानसभा की 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. आदिवासी वोटर कांग्रेस का प्रतिबद्ध वोटर माना जाता रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों पर मिली जीत के कारण ही कांग्रेस की पंद्रह साल बाद सरकार में वापसी हुई थी. कांग्रेस पंद्रह साल सरकार से बाहर रही तो इसकी बड़ी वजह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का चेहरा रहा है. लगातार पंद्रह साल मुख्यमंत्री रहकर शिवराज सिंह चौहान ने अपने आपको पार्टी में ओबीसी चेहरे के तौर पर स्थापित भी कर लिया है.
पंचायतों में ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री चौहान की राजनीतिक मुश्किलें बढ़ा दी हैं. प्रदेश बीजेपी की राजनीति में उमा भारती और प्रहलाद पटेल जैसे अन्य बड़े ओबीसी नेता भी हैं. वर्ष 2005 में उमा भारती ने शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाए जाने का खुला विरोध किया था. उन्होंने पार्टी भी छोड़ दी थी. बीजेपी में वापसी के बाद उन्हें मध्यप्रदेश की राजनीति से अलग कर दिया गया था. झांसी से लोकसभा सदस्य रही हैं. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से वे मध्य प्रदेश में सक्रिय हैं. प्रहलाद पटेल केन्द्र में मंत्री हैं. शिवराज सिंह चौहान के विरोधी माने जाते हैं. पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण बचाने के लिए मोर्चा उमा भारती ने संभाला हुआ है. उमा भारती ने ट्वीट कर कहा कि आरक्षण के बिना चुनाव हुए तो सत्तर प्रतिशत आबादी को नुकसान होगा.
आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने का श्रेय कमलनाथ ले रहे हैं
उमा भारती का ट्वीट शिवराज सिंह चौहान पर स्वाभाविक तौर पर राजनीतिक दबाव बढ़ा रहा है. यद्यपि बीजेपी नेता आरक्षण समाप्त होने का दोष कांग्रेस नेताओं के सिर पर डाल रहे हैं, लेकिन समस्या में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं. कांग्रेस उन पर पहले से ही यह आरोप लगा रही है कि पंद्रह साल मुख्यमंत्री रहने के बाद भी उन्होंने ओबीसी के आरक्षण की सीमा को नहीं बढ़ाया. राज्य में ओबीसी को सरकारी नौकरियों में 14 प्रतिशत आरक्षण दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में दिया गया था.
कमलनाथ ने वर्ष 2019 में इसे बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया है. राज्य में बीस प्रतिशत आदिवासियों को तथा 17 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति वर्ग को पहले से ही दिया जा रहा है. ओबीसी की आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने से कुल आरक्षण पचास प्रतिशत की सीमा को पार कर गया. पंचायत चुनाव में भी आरक्षण पचास प्रतिशत की सीमा से अधिक है. सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति भी इसी बढ़े हुए आरक्षण पर है. यही अतिरिक्त आरक्षण शिवराज सिंह चौहान के लिए लगातार राजनीतिक चुनौती बन रहा है. ओबीसी के बीच भी हितेषी छवि पर सवाल खड़े होने लगे हैं.
ओबीसी के पक्ष में आने की मजबूरी
अपनी छवि बचाने के लिए ही शिवराज सिंह चौहान ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वह नहीं किया जो महाराष्ट्र सरकार ने किया है. महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद ओबीसी सीटों को सामान्य सीटों में बदल दिया. चुनाव आयोग ने वोटिंग की नई तारीखें भी घोषित कर दी. वहीं दूसरी ओर शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर आरक्षण समाप्त किए जाने का आदेश संशोधित किए जाने का आग्रह किया है. चौहान ने अपनी छवि बचाने के लिए दूसरा काम विधानसभा में संकल्प पारित कराने का किया. कांग्रेस नेता पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी उनका साथ दिया.
विधानसभा में यह संकल्प सर्वसम्मति से पारित हो गया कि ओबीसी आरक्षण के बिना पंचायत के चुनाव न कराए जाएं. विधानसभा में पारित यह संकल्प चुनाव प्रक्रिया को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करता है. यह सिर्फ ओबीसी छवि बचाने की कवायद है. इसी क्रम में सरकार ने लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली राज्य सेवा परीक्षा में भर्ती की प्रक्रिया शुरू कर दी है. यह भर्ती प्रक्रिया भी आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने के कारण उत्पन्न हुई, वैधानिक स्थिति के कारण रुकी हुई थी. अगस्त माह में तत्कालीन महाधिवक्ता ने सरकार को अभिमत दिया था कि हाईकोर्ट की रोक पीजी नीट परीक्षा को लेकर है. अन्य किसी सरकारी भर्ती अथवा सरकारी संस्था में प्रवेश के लिए नहीं है.
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