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फेसबुक को लोगों से जोड़ने की तकनीकि से मेल खाता है
फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग ने बहुत दिनों से चल रही अटकलों को विराम देते हुए फेसबुक की पैरेंट कंपनी का नाम मेटा में बदलने की घोषणा कर दी. कुछेक साल पहले गूगल ने भी अल्फाबेट नाम की पैरेंट कंपनी बनाई थी, लेकिन उसे कंपनियों के स्ट्रक्चर में बदलाव के तौर पर देखा गया था. जबकि फेसबुक के मेटावर्स को क्वांटम जम्प के तौर देखा जा रहा है. मेटा शब्द ग्रीक भाषा 'बियॉन्ड' से आया है, जो कि फेसबुक को लोगों से जोड़ने की तकनीकि से मेल खाता है.
मेटावर्स की वर्चुअल दुनिया को तीन दशक पहले नील स्टीफेन्सन ने अपने विज्ञान गल्प 'स्नो क्रैश' में दर्शाया था, जिसे अब इंटरनेट जगत में भविष्य की दुनिया माना जा रहा है. इस वेंचर के अनेक पहलुओं पर गूगल, माइक्रोसॉफ्ट समेत सभी टेक कंपनियां प्रयोग के साथ बड़े पैमाने पर निवेश भी कर रही हैं. मेटावर्स की वर्चुअल दुनिया में रियलिटी हेडसेट, ऑगमेंटेड रियालिटी ग्लास, स्मार्टफोन ऐप या दूसरे उपकरणों के इस्तेमाल से वर्चुअल तरीके से मिलना, काम और गेमिंग हो सकेगी.
कंपनी का नाम बदला लेकिन फेसबुक, वाट्सऐप और इंस्टाग्राम का इस्तेमाल जारी रहेगा
जकरबर्ग के साथ इस बारे में फेसबुक ने भी ट्वीट करके विस्तार से जानकारी दी है. इंस्टाग्राम, मैसेंजर और वाट्सएप जैसे एप्स के नाम में कोई बदलाव नहीं होगा. फेसबुक के सारे एप्स और तकनीकों को नए ब्रांड के तहत लाया जाएगा. फेसबुक के अनुसार, उनका नया स्टॉक अगले महीने एक दिसंबर से नए टिकर, एमवीआरएस के तहत कारोबार शुरू कर देगा. अमेरिका में फेसबुक कंपनी के हेडक्वॉटर में अंगूठे वाले लाइक की जगह इनफिनिटी का नया लोगो आएगा.
मेटावर्स की नई कंपनी फिलहाल तो अपना नाम और चेहरा ही बदल रही है, लेकिन आगे चलकर कंपनियों के ढाँचे और बिजनेस मॉड्यूल में भी आमूलचूल बदलाव आना तय है.
ब्लाकचेन, डिजिटल करेंसी और डिजिटल कॉमर्स की नई दुनिया
फेसबुक जब 2004 में शुरू हुआ, तब उसका मकसद लोगों को सामाजिक स्तर पर जोड़ना या नेटवर्किंग करना था. धीरे-धीरे पूरी दुनिया की बड़ी आबादी इसके दायरे में आ गए और भारत फेसबुक का सबसे बड़ा बाज़ार बन गया. फेसबुक और उसकी ग्रुप कंपनियों को फिलहाल विज्ञापन और डाटा के इस्तेमाल से सबसे ज्यादा आमदनी होती है. लेकिन मेटावर्स का बिज़नेस मॉडल यदि सफल हो गया तो आमदनी के नए श्रोत बड़े पैमाने पर बढ़ जाएंगे. मेटावर्स के बारे में जकरबर्ग ने कहा है कि यह वर्चुअल दुनिया सभी के लिए खुली रहेगी और इसका विकास पूरी दुनिया के लोगों के माध्यम से सामूहिक तौर पर होगा.
जकरबर्ग ने अपने बयान में उम्मीद जताई है कि एक दशक में 1 अरब लोगों को मेटावर्स प्रोजेक्ट से जोड़ दिया जाएगा. मेटावर्स से ब्लाकचेन, डिजिटल करेंसी और के डिजिटल कॉमर्स का बड़े पैमाने पर प्रसार होगा, जिससे खरबों डालर के व्यापार की नई दुनिया खुलेगी. इससे परम्परागत अर्थव्यवस्था ध्वस्त होगी तो क्रिएटर्स, आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, डाटा इंजिनियरिंग और डेवलपर्स के लिए नौकरियों के नए अवसर बढेंगें.
डाटा इंटीग्रेशन और प्राइवेसी के मसले
पिछले एक दशक में सोशल मीडिया ने हमारे निजी जीवन के साथ राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों पर अपना कब्ज़ा कर लिया है. भारत में फेसबुक के 34 करोड़, वॉट्सऐप के 39 करोड़ और इंस्टाग्राम के 8 करोड़ से ज्यादा यूजर्स हैं. पांच साल पहले फेसबुक ने इंस्टाग्राम और वॉट्सऐप के साथ डेटा का इंटीग्रेशन कर लिया था. अब मेटावर्स की नई दुनिया में लोगों की ऑनलाइन जिंदगी, निजी डेटा और बातचीत पर टेक कंपनियों की कंट्रोल, निगरानी और पकड़ बढ़ सकती है.
सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों के फैसले के बाद प्राइवेसी लोगों का फंडामेंटल राईट है, लेकिन इस बारे में संसद से अभी तक डाटा सुरक्षा क़ानून को मंजूरी नहीं मिली. क़ानून बनने के बावजूद, मेटावर्स की नई दुनिया में विदेशी टेक कंपनियों से प्राइवेसी के अधिकार का पालन कराने में बड़ी मुश्किलें आ सकती हैं.
नई कंपनी पर भारत के कानून कैसे लागू होंगे
फेसबुक के सभी एप्स को हैंडल करने के लिए भारत के सिर्फ एक कंपनी रहेगी या अनेक कंपनियां? भारत की कंपनी का अमेरिका की नई कंपनी के साथ क्या रिश्ता रहेगा? नई कंपनी अमेरिका, यूरोप और भारत के एकाधिकार क़ानून से कैसे निबटेगी? इन बातों के जवाब से फेसबुक की भारत समेत अन्य देशों में टैक्स जवाबदेही निर्धारित होगी. नए IT नियमों के अनुसार फेसबुक जैसी सभी कंपनियों को ग्रीवांस, नोडल और कंप्लायंस अधिकारियों की नियुक्ति करनी है.
क्या मेटावर्स की सभी कंपनियों के लिए आगे चलकर भारत में सामूहिक शिकायत निवारण तंत्र बनेगा? फेसबुक कंपनी का यह गेम चेंजर वर्चुअल प्रोजेक्ट सरकार के साथ संसदीय व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है. करोड़ों ग्राहकों के साथ टेक की दुनिया के छोटे-बड़े सभी खिलाड़ियों को मेटावर्स की वर्चुअल की दुनिया से पनपने वाले ऐसे कई सवालों के जवाब मिलने का बेसब्री से इंतज़ार है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
विराग गुप्ता, एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान तथा साइबर कानून के जानकार हैं. राष्ट्रीय समाचार पत्र और पत्रिकाओं में नियमित लेखन के साथ टीवी डिबेट्स का भी नियमित हिस्सा रहते हैं. कानून, साहित्य, इतिहास और बच्चों से संबंधित इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं. पिछले 4 वर्ष से लगातार विधि लेखन हेतु सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा संविधान दिवस पर सम्मानित हो चुके हैं. ट्विटर- @viraggupta.
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