सम्पादकीय

मुद्रास्फीति कम कैसे होगी By: divyahimachal

Rani Sahu
6 May 2022 5:32 PM GMT
मुद्रास्फीति कम कैसे होगी  By: divyahimachal
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भारतीय रिजर्व बैंक ने अचानक रेपो दरें और नकदी आरक्षित अनुपात (सीआरआर) बढ़ाकर बाज़ार और उपभोक्ता को हैरान कर दिया है

भारतीय रिजर्व बैंक ने अचानक रेपो दरें और नकदी आरक्षित अनुपात (सीआरआर) बढ़ाकर बाज़ार और उपभोक्ता को हैरान कर दिया है। बल्कि स्तब्ध कर दिया है। बीते दिनों ही केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में सर्वसम्मति से तय हुआ था कि रेपो दरें 4 फीसदी ही रहेंगी। पहला सवाल तो यही है कि अचानक उनमें बढ़ोतरी कर 4.4 फीसदी क्यों कर दिया गया? सीआरआर में भी बढ़ोतरी कर अलग से उन्हें 4.5 फीसदी किया जाएगा। अगस्त, 2018 के बाद से रेपो दरों में यह पहली बढ़ोतरी है। इससे करीब 87,000 करोड़ रुपए की नकदी प्रभावित होगी। केंद्रीय बैंक का यह अर्थशास्त्र उसी के विशेषज्ञ और अधिकारी जानते हैं। आम भारतीय बिल्कुल नहीं जानता। चूंकि मुद्रास्फीति के दौर में रेपो दरें बढ़ाई गई हैं, तो आम जिज्ञासा यह है कि क्या इस बढ़ोतरी से महंगाई कम होगी? यदि मुद्रास्फीति की स्थिति नियंत्रित होकर कम होगी, तो वह कैसे होगी, क्योंकि पहली प्रतिक्रिया यह आई है कि आम उपभोक्ता के बैंक कजऱ् की ब्याज दर भी बढ़ जाएगी, नतीजतन ईएमआई भी ज्यादा हो जाएगी। यानी आम आदमी पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा। बाज़ार के औद्योगिक संगठन और विशेषज्ञ इसे रिजर्व बैंक का दोहरा झटका करार देते हुए संभावनाएं जता रहे हैं कि केंद्रीय बैंक भविष्य में ज्यादा सख्ती कर सकता है। रेपो दरों में आधा फीसदी की बढ़ोतरी अभी और की जा सकती है।

ये दरें इस साल के अंत में बढ़ाए जाने की संभावनाएं जताई जा रही थीं। अब सवाल यह है कि मौद्रिक नीति समिति की अनिर्धारित बैठक क्यों बुलानी पड़ी? क्या महंगाई और जरूरी वस्तुओं के बढ़ते दामों का दबाव इतना हो गया था कि यह बैठक बुलानी पड़ी? जवाब मुद्रास्फीति और उसके इर्द-गिर्द की अनिश्चितता में ही निहित है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण जो वैश्विक परिस्थितियां बनी हैं, उनमें कई वस्तुओं के दाम बढ़े हैं। सप्लाई चेन भी प्रभावित हुई है। भारत में भी यह झेला जा रहा है, क्योंकि खाद्य तेल की आपूर्ति रूस और यूक्रेन से नहीं हो पा रही है। इंडोनेशिया ने भी इंकार कर दिया है। खाद्य तेलों को लेकर हम आयात के ही भरोसे हैं। उस पर खुदरा महंगाई दर मार्च में बढ़कर 6.95 फीसदी हो गई थी। फिलहाल उस पर अंकुश नहीं पाया गया है। सरकार चाहती रही है कि मुद्रास्फीति 6 फीसदी से कम ही रहे। हालात ऐसे हैं कि खाद्य वस्तुओं की कीमतें काफी महंगी हो गई हैं। यदि कोरोना-पूर्व की औसत मांग भी बाज़ार में पैदा कर दी जाए, तब भी मुद्रास्फीति कम नहीं होगी। क्या इन्हीं हालात के मद्देनजर रिजर्व बैंक को मौद्रिक नीति में अचानक परिवर्तन करना पड़ा है? उद्योग जगत की आशंकाएं तो ये हैं कि रेपो दरें अभी और बढ़ाई जा सकती हैं और उनसे बाज़ार तथा उपभोक्ता दोनों ही प्रभावित होंगे। परिवहन वालों का मानना था कि ब्याज दरें धीरे-धीरे बढ़ेंगी। चूंकि बैंकों के पास पर्याप्त नकदी है, लिहाजा कजऱ् की लागत धीरे बढ़ेगी। रेपो दरों में बढ़ोतरी रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए हैरान करने वाली है।
खुद रिजर्व बैंक केगवर्नर शक्तिकांत दास ने बयान दिया है कि पशु चारे की लागत बढऩे से पॉल्ट्री, दूध, डेयरी और अन्य संबंधित उत्पादों के दाम बढ़ सकते हैं। जाहिर है कि उनका सीधा असर उपभोक्ता, किसान और कारोबारियों पर ही पड़ेगा। इन सबके अलावा सीमेंट, इस्पात, मज़दूरी आदि की लागत बढ़ेगी, तो आवासीय क्षेत्र पर बोझ बढ़ेगा। अंतत: आम आदमी ही प्रभावित होगा। मुद्रास्फीति और महंगाई कैसे और कहां से कम होगी? रेपो दरें बढऩे से वाहन उद्योग की गति भी धीमी होगी। यह उद्योग पहले से ही मंदी के दौर से गुजऱ रहा है। इससे वाहन ऋण भी महंगा हो जाएगा। रिजर्व बैंक की यह घोषणा मैक्रो इकॉनोमिक्स के लिए भी चुनौती है। यह ऐसी अर्थव्यवस्था के प्रभावों को निष्क्रिय करेगी। इससे भारत सरकार और राज्य सरकारों को भी अपनी वित्तीय नीतियों में ऐसे बदलाव करने पड़ेंगे, जिनसे नई आर्थिक परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठाया जा सके। रिजर्व बैंक के गवर्नर मानते हैं कि ऊंची महंगाई से सबसे ज्यादा गरीब लोगों पर ही असर पड़ता है, क्योंकि उनकी क्रयशक्ति कम हो जाती है। रेपो दरों के सकारात्मक प्रभाव गरीब जमात पर कैसे पड़ेंगे, कृपया बैंक के गवर्नर ही स्पष्ट करें।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली


Rani Sahu

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