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By: divyahimachal
प्रधानमंत्री मोदी ने राजस्थान के अजमेर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए दावा किया है कि भारत में ‘अति गरीबी’ खत्म होने के बहुत निकट है। यह राजनीतिक और चुनावी बयान भी साबित हो सकता है। 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ के नारे पर चुनाव जीत लिया था। देश में गरीबी 2023 में भी है। क्या प्रधानमंत्री के कथन पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए? प्रधानमंत्री मोदी के बयान का घोर विरोधाभास यह है कि आज भी करीब 22 करोड़ भारतीय ‘गरीबी रेखा’ के तले बताए जाते हैं। भारत सरकार कोई अधिकृत आंकड़ा देने की बजाय छिपाती रही है। वैसेे 2022-23 के दौरान गरीब की जनगणना जारी है। कुछ आंकड़े सार्वजनिक भी हो सकते हैं, लेकिन यह जनगणना 2024 तक चलेगी। तब तक आम चुनाव हो चुके होंगे और नई सरकार बनने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी होगी! भारत में गरीबी के वे आंकड़े सामने हैं, जो आवधिक श्रम बल सर्वे के जरिए सार्वजनिक हुए हैं या संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम अथवा सीएमआईई सरीखे पेशेवर संगठनों की रपटों ने उद्घाटित किए हैं। गरीबी-रेखा के तले जीने वालों की संख्या अधिक होनी चाहिए, क्योंकि कोरोना महामारी के बाद ही 5.60 करोड़ भारतीय गरीबी-रेखा के नीचे चले गए हैं।
हालांकि दावा किया जाता रहा है कि बीते 20 सालों में करीब 40 करोड़ लोगों को गरीबी-रेखा के बाहर लाया गया है। यानी इतने देशवासियों की औसत आमदनी में बढ़ोतरी कराई गई है, लेकिन सर्वे और रपटों के सच ये हैं कि भारत में 50 फीसदी आबादी की औसतन मासिक आय 5000 रुपए से कम है। यानी 170 रुपए रोजाना भी नहीं है। करीब 50 फीसदी लोगों की औसतन सालाना आय 53,610 रुपए है। देश में करीब 43 करोड़ श्रमिक हैं। उनमें आधे से कम को ही नियमित रोजगार नसीब है। देश की आबादी 142 करोड़ से ज्यादा हो गई है और विश्व में सर्वाधिक है, लेकिन करीब 41.01 करोड़ लोग ही ‘नौकरीपेशा’ हैं। यह संख्या घट रही है और बेरोजगारी की दर बढ़ कर 8 फीसदी को पार कर चुकी है। आंकड़ों में पूर्वाग्रह भी संभव हैं, लेकिन प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय का मानना है कि 18 फीसदी आबादी अब भी गरीब है। यदि इन संक्षिप्त विवरणों का विश्लेषण किया जाए, तो ‘अति गरीबी’ के समापन की संभावनाओं पर बड़े-बड़े सवाल दिखाई देंगे। प्रधानमंत्री एक मोटा-सा खाका देश के सामने पेश कर सकते थे कि ‘अति गरीबी’ चरणबद्ध तरीके से कैसे खत्म हो सकती है। अभी तो व्यापक फासले और गहरी खाइयां हैं। भारत में मात्र एक फीसदी अमीर ऐसे भी हैं, जिनके पास देश की कमाई का 22 फीसदी से ज्यादा हिस्सा है। इस जमात की औसत आय 63.5 लाख रुपए है। देश में खरबपतियों की संख्या 160 से ज्यादा हो गई है, लेकिन इसी देश में 50 फीसदी महिलाओं में ‘खून की कमी’ है। औसतन 6-23 माह की उम्र के सिर्फ 11 फीसदी बच्चों को ही पूरा भोजन नसीब है।
शेष कुपोषित और बीमार हैं। बालिग उम्र की 35 फीसदी आबादी को ही नियमित काम उपलब्ध है। शेष दिहाड़ीदार, मजदूर और अनियमित कामगार हैं। इसमें मनरेगा की जमात भी शामिल है, जिसे मजदूरी भी समयानुसार और नियमित नहीं मिलती। इन विरोधाभासों को क्या कहेंगे? बेशक यह खबर सुखद है कि 2022-23 में हमारी आर्थिक विकास दर 7.2 फीसदी रही है। विश्व में यह सबसे अधिक और तेज विकास दर है। फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी मात्र एक फीसदी विकास दर हो तरस रहे हैं। भारत चीन से डेढ़ गुना आगे है। जापान भी पीछे छूट गया है। कृषि की अप्रत्याशित विकास दर 5.5 फीसदी सामने आई है, तो 80 फीसदी तक निजी निवेश होटल क्षेत्र में आया है। कपड़ा, सीमेंट, इस्पात में भी निवेश बढ़ा है। सबसे ज्यादा 14 फीसदी बढ़ोतरी दर होटल-टे्रड क्षेत्र में दर्ज की गई है। मैन्यूफैक्चरिंग, निर्माण, खनन और रियल एस्टेट आदि क्षेत्रों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है, लेकिन सवाल है कि इस विकास और अर्थव्यवस्था के विस्तार का फायदा देश के आम आदमी तक क्यों नहीं पहुंचता, ताकि उसकी गरीबी कम हो सके? बहरहाल प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया है, तो देश के साथ हम भी इंतजार करेंगे।
Rani Sahu
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