- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- कैसे लगेगा चीन के...
x
नापाक साम्राज्यवादी नीतियों पर अंकुश?
अजय झा. चीन इन दिनों फिर से एक बार सुर्खियों में है. इसलिए नहीं कि चीन लगातार ताइवान को अपनी सैन्य ताकत दिखा कर डरा-धमका रहा है, ताकि ताइवान उसका हिस्सा बन जाए या फिर भारत के खिलाफ नित नए सैन्य मोर्चे खोलने के लिए. बल्कि लगभग 8500 किलोमीटर दूर अफ़्रीकी देश यूगांडा का एकलौता अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट एनातेबे को हथियाने की खबर से. पूर्वी अफ्रीका में बसा यूगांडा एक खूबसूरत देश है. पहले यूगांडा अपने आदमखोर तानाशाह इदी अमीन के लिए जाना जाता था और अब वहां दूसरे तानाशाह योवेरी मुसेवेनी का राज पिछले 35 वर्षों से है. मुसेवेनि युगांडा सेना में जनरल थे और 1986 में तख्ता पलट कर सत्ता में आए थे.
1996 में उन्होंने चुनाव करवाय क्योंकि वह अपने को चुना हुआ राष्ट्रपति कहना पसंद करते हैं. उनका चुनाव जीतना भी वैसे ही होता है जैसे कि जिम्बाब्वे के पूर्व राष्ट्रपति रोबर्ट मुगाबे एक तरफ़ा चुनाव जीतते थे. तानाशाह चाहे जिस भी देश में हों, वह दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि वह बन्दूक के दम पर नहीं बल्कि जनता के समर्थन से पद पर बने हुए हैं.
पाकिस्तान में भी ऐसा ही नज़ारा दिखता रहा है.
एनातेबे एयरपोर्ट पर अब चीन का कब्जा है
इस साल जनवरी में मुसेवेनी लगातार छठी बार यूगांडा के राष्ट्रपति चुने गए. युगांडा की राजधानी कंपाला में हैं, पर चूंकि कंपाला एक पहाड़ी इलाका है, जब अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने की बात आई तो विश्व के सबसे बड़े झीलों में से एक लेक विक्टोरिया के तट पर बसे एनातेबे, जो कंपाला से 32 किलोमीटर दूर है, को चुना गया. युगांडा सरकार ने एनातेबे एयरपोर्ट के विस्तार की योजना बनाई और 2015 में चीन के एक्सिम (एक्सपोर्ट इम्पोर्ट) बैंक से 207 मिलियन डॉलर यानि 20.7 करोड़ डॉलर का लोन लिया. 20 वर्षों की अवधि के लिए जिसमें 20 साल के बाद 7 साल के ग्रेस पीरियड का प्रावधान भी है, सिर्फ 2 फीसदी प्रतिवर्ष ब्याज दर पर लोन लिया.
20.7 करोड़ डॉलर किसी भी देश के लिय बड़ी रकम नहीं है और लोन लिए हुए अभी सिर्फ 6 वर्ष ही गुजरा था, पर युगांडा सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त और चरमराई अर्थव्यवस्था के कारण ब्याज चुकाने में भी असमर्थ थी. ऋण के शर्तों में लिखा था कि अगर लोन की किश्त नहीं चुकाई गयी तो चीन के एक्सिम बैंक का उस प्रॉपर्टी का मालिकाना हक़ हो जाएगा. चुनाव जीतने के बाद मुसेवेनी सरकार ने चीन से ऋण के शर्तों को थोडा और आसान बनाने की गुजारिश की जिसे चीन ने ठुकरा दिया. लिहाजा एनातेबे एयरपोर्ट पर अब चीन की सरकार का कब्ज़ा हो गया है. एक्सिम बैंक चीन सरकार की बैंक है, जिस कारण एक्सिम बैंक की संपत्ति चीन सरकार की ही हुई.
कई देशों को चीन ने बनाया है अपना शिकार
युगांडा एकलौता देश नहीं है जो चीन के ऋण के जाल में फंस गया है. मध्य अफ़्रीकी देश कांगो के ताम्बे के खदान पर भी चीन ने इसी तरह से कब्ज़ा कर रखा है और भारत के कन्याकुमारी से मात्र 243 किलोमीटर की दूरी पर श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह भी चीन को 99 वर्ष के पट्टे पर मिल चुका है. कारण श्रीलंका सरकार ने हम्बनटोटा में बंदरगाह बनाने की सोची. भारत और कई अन्य देशों ने व्यावसायिक कारणों से ऋण देने से माना कर दिया. सभी की धारणा थी कि कोलम्बो बंदरगाह के होते हुए हम्बनटोटा बंदरगाह व्यावसायिक रूप से सफल नहीं होगा. पर चीन ने आसान शर्तों पर ऋण दिया और बंदरगाह बन भी गया. पर जैसी की आशंका थी, व्यावसायिक रूप से यह परियोजना असफल रही. श्रीलंका के पास ऋण का मासिक ब्याज चुकाने तक का पैसा नहीं था, लिहाजा उसे हम्बनटोटा बंदरगाह और उसके आसपास की 15,000 एकड़ जमीन 99 वर्ष के पट्टे पर चीन को देनी पड़ी.
बस श्रीलंका की शर्त यही थी कि बंदरगाह और जमीन का इस्तेमाल सैन्य कारणों के लिए नहीं होगा. चीन को भी पता था कि हम्बनटोटा बंदरगाह फ्लॉप होगा पर भारत के इतने करीब होने के कारण चीन के मुंह में पानी आ गया. उसे उम्मीद थी कि आख़िरकार श्रीलंका सरकार हम्बनटोटा बंदरगाह और उसके आसपास की जमीन के सैन्यकरण पर भी राजी हो जाएगी. श्रीलंका को चीन की चाल समझ में आ गयी. भारत से वह पंगा भी नहीं लेना चाह रहा था. लिजाहा जहां एक तरफ श्रीलंका ने चीन से फिर से हम्बनटोटा बंदरगाह के आधिपत्य के बारे में बातचीत शुरू कर दी है, वहीं कोलम्बो बंदरगाह के पास अब भारत 700 मिलियन डॉलर यानि 70 करोड़ डॉलर की लागत से कंटेनर पोर्ट को विकसित कर रहा है ताकि श्रीलंका चीन के चंगुल में फंस कर भारत के लिए सामरिक दृष्टिकोण से भविष्य में चुनौती ना बन जाए.
कभी लोन लेने वाला चीन आज लोन दे रहा है
अमेरिका के वर्जिनिया राज्य के विलियम एंड मैरी यूनिवर्सिटी की पिछले वर्ष एक रिपोर्ट आई थी. जिसके अनुसार, पिछले 18 वर्षों में दुनिया के 165 देशों में 13,427 इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर चीन ने पैसा लगाया है, जिसमें से पाकिस्तान भी एक अहम देश है. पाकिस्तान दिवालिया हो चुका है और चीन वहां भी ऋण के बदले जमीन हथियाने की साजिस में है. पिछले वर्ष ही अमेरिका के पूर्व अटॉर्नी जनरल विलियम बर्र ने चीन पर आरोप लगाया था कि चीन जानबूझ कर गरीब देशों में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्स के लिए ऋण देता है, और बाद में ऋण के शर्तों में ढील नहीं देता और फिर उन प्रोजेक्स को ही वह हथिया लेता है. यानि ऋण देना और ऋण के बदले में विदेशों के जमीन या इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर कब्ज़ा करना चीन की साम्राज्यवादी नीति का हिस्सा है.
एक जमाना था जब चीन दुनिया भर से लोन लेता था और अब लोन देता है. इसका बहुत बड़ा कारण है चीन की उभरती हुई अर्थव्यवस्था. चीन के पास अब इतना पैसा हो गया है कि वह अमेरिका को ही आए दिन चुनौती देते हुए दिखता है. इसे अमेरिका की दूरदृष्टि का आभाव ही कहा जाएगा कि 1969 से 1974 के बीच जब रिचर्ड निक्सन अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो चीन की बड़ी आबादी को उन्होंने अमेरिकी कंपनियों के लिए एक बड़े बाज़ार के रूप में देखा. अमेरिकी कंपनिया चीन पहुंच गयी. वह अमेरिका और चीन के बीच चल रहे शीत युद्ध का समय था. अमेरिका ने चीन को टेक्नोलॉजी और ऋण देना शुरू कर दिया, ताकि एक कम्युनिस्ट देश को सोवियत यूनियन से दूर किया जा सके. और अब चीन आर्थिक और सैन्य रूप से इतना सक्षम हो गया है कि अब वह अमेरिका के लिए ही खतरा बनता जा रहा है.
बचपन में हम सबने कहानिया सुनी थीं कि कैसे साहूकार गरीब किसानों को जरूरत के समय ऋण देते थे, बदले में उस जमीन का पेपर रख लेते थे और जब वह किसान ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाता था तो साहूकार उस जमीन को कौड़ी के मोल अपने नाम कर लेता तथा और वही किसान अपने ही जमीन पर साहूकार का गुलाम बन जाता था. चीन बेशर्मी से इसी कहानी को सार्थक करता हुआ दिख रहा है. हम्बनटोटा बंदरगाह और एनातेबे एयरपोर्ट प्रकरण के बाद यही उम्मीद की जानी चाहिए कि दुनिया भर के देश अब चीन के प्रति सजग हो जाएंगे ताकि चीन के साम्राज्यवादी नीतियों पर अंकुश लग सके.
Next Story