- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- संसद में कितना एकजुट...
संसद में कितना एकजुट हुआ विपक्ष? 2024 में कितनी काम आएगी ये एकजुटता?
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| संयम श्रीवास्तव | संसद के मॉनसून सत्र (Parliament Monsoon Session) में विपक्ष ने एकजुट होने की पूरी कोशिश की. पेगासस जासूसी (Pegasus Scandal) मामले पर कांग्रेस पार्टी ने पूरे विपक्ष को एक साथ लाने का भरसक प्रयास किया. शायद कुछ हद तक कांग्रेस पार्टी (Congress Party) इसमें सफल भी हुई. लेकिन क्या संसद में विपक्ष इतना एकजुट हो गया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में एक साथ मिलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) को टक्कर दे पाए, यह बात जरूर संदेह में है. एक तरफ जहां एनडीए का हिस्सा होते हुए भी जेडीयू जैसी पार्टियां पेगासस जासूसी मामले में विपक्ष से सहमत होती दिखाई देती हैं, वहीं दूसरी ओर एआईडीएमके, वाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल जैसी पार्टियों का इस मुद्दे पर कुछ ना बोलना विपक्ष की एकता पर सवाल भी उठाता है.
दरअसल इस वक्त देश की राजनीति में विपक्ष के साथ समस्या इस बात की है कि वहां कोई केंद्र बिंदु नहीं बन पा रहा है. इस वक्त विपक्ष में कई धड़े हैं जो 2024 में अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए अलग-अलग प्रयास कर रहे हैं. एक धड़ा है ममता बनर्जी का, दूसरा धड़ा है राहुल गांधी का, तीसरा धड़ा है लालू प्रसाद यादव (Lalu Yadav) का और चौथा धड़ा बन रहा है अकाली दल का जिसमें उसके साथ बहुजन समाज पार्टी, वामदल और कुछ अन्य दल भी शामिल हैं. बीते दिनों इसी धड़े के प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपा था और आरोप लगाया था कि सरकार विपक्ष की आवाज को अनसुना कर रही है. वहीं दूसरी ओर संसद में सरकार को घेरने के लिए राहुल गांधी विपक्ष के सांसदों को ब्रेकफास्ट पार्टी में बुलाकर एकजुट करने की कोशिश करते दिखाई दिए.
2024 में विपक्ष का केंद्र क्या होगा
2024 में विपक्ष की राजनीतिक पार्टियां बीजेपी के खिलाफ किसके नेतृत्व में आगे बढ़ेंगी यह एक बड़ा सवाल है. क्या विपक्ष हमेशा की तरह कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में आगे बढ़ेगा या बंगाल में बीजेपी को शिकस्त दे चुकी ममता बनर्जी विपक्ष की तरफ से 2024 में पीएम मोदी को चुनौती देंगी या फिर शरद पवार जिन्हें उनकी राजनीतिक कौशलता और अनुभव के लिए जाना जाता है उन्हें विपक्ष का चेहरा 2024 के लोकसभा चुनाव में बनाया जाएगा. लिस्ट लंबी है. लेकिन यह कुछ ऐसे चेहरे हैं जिन की संभावना 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष का चेहरा बनने में सबसे ज्यादा है.
ममता बनर्जी के सिपहसालार प्रशांत किशोर कई बार शरद पवार से मुलाकात कर चुके हैं. लेकिन ममता बनर्जी ने अभी तक शरद पवार से कोई मुलाकात नहीं की है. ममता बनर्जी दिल्ली भी आईं और अपने 3 दिन के दौरे में उन्होंने राहुल गांधी, सोनिया गांधी, अरविंद केजरीवाल और तमाम विपक्ष के नेताओं से मुलाकात की. लेकिन उस दौरान भी उनकी मुलाकात शरद पवार से नहीं हुई. हालांकि राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि जल्द ही ममता बनर्जी और शरद पवार की भी मुलाकात हो सकती है. अब इस मुलाकात के बाद क्या फैसला निकल कर आएगा, यह तो बाद की बात है. लेकिन जिस तरह से ममता बनर्जी खुद को 2024 में विपक्ष का चेहरा बनाए जाने को लेकर प्रयासरत दिख रही हैं उससे यह तो साफ हो गया कि वह किसी और के नेतृत्व में 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगी यह कह पाना मुश्किल है.
महंगाई, कोविड प्रबंधन और पेगासस मुद्दे ने विपक्ष को एकजुट होने का मौका दिया
कोरोना महामारी इस सदी की सबसे बड़ी महामारी है इस पर कोई संदेह नहीं है. लेकिन हिंदुस्तान जितना ज्यादा इस महामारी से प्रभावित हुआ उसमें कहीं ना कहीं कोविड प्रबंधन की नाकामी भी थी. जिसे विपक्ष ने बीते 2 सालों से मुद्दा बनाया हुआ है. इसके बाद महंगाई ने सरकार को घेरने के लिए विपक्ष को एक नया मुद्दा दे दिया. पेट्रोल-डीजल के भाव आसमान छूने लगे. इस मुद्दे पर भी विपक्ष ने सरकार को खूब घेरा. इन मुद्दों से सरकार अभी पार पाई नहीं थी कि एक नया मुद्दा पेगासस जासूसी कांड का सामने आ गया, जिसमें देश के कई पत्रकारों और बुद्धिजीवियों की जासूसी कराने की बात सामने आई. इसे लेकर भी संसद से सड़क तक विपक्ष एक सुर में सरकार को घेरने लगा. राहुल गांधी ममता बनर्जी और शरद पवार जैसे नेताओं को लगता है कि वह इन मुद्दों के सहारे विपक्ष को एकजुट कर 2024 का लोकसभा चुनाव जीत सकते हैं. इसीलिए संसद के अंदर और बाहर दोनों ही जगह तमाम विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कवायद तेज हो गई है.
विपक्ष के लिए कांग्रेस मजबूती और राहुल गांधी कमजोरी
कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है, आज उसकी स्थिति भले ही देश में खराब है लेकिन विपक्ष के हिसाब से आज भी वह सबसे सक्षम और सार्थक राजनीतिक पार्टी है. उसका कारण यह है कि उसके कार्यकर्ता देश के हर राज्य हर जिले हर कस्बे में मौजूद हैं. जबकि अन्य राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता केवल एक सीमित क्षेत्र के अंदर ही मौजूद हैं. चाहे वह तृणमूल कांग्रेस हो, नेशनल कांग्रेस पार्टी हो, समाजवादी पार्टी हो या फिर राष्ट्रीय जनता दल हो. यह सभी क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां हैं जिनका प्रभाव केवल एक राज्य तक ही सीमित है. जबकि भारतीय जनता पार्टी को अगर चुनौती देना है तो किसी ऐसी पार्टी के हाथों में नेतृत्व जाना ही बेहतर होगा जिसके कार्यकर्ता हर मोर्चे पर तैनात खड़े मिले.
यही वजह थी कि जब देश में तीसरे मोर्चे की कवायद तेज हुई तो शरद पवार ने साफ कर दिया कि बिना कांग्रेस पार्टी के किसी भी तीसरे मोर्चे की कल्पना करना इस देश में नामुमकिन है. प्रधानमंत्री कौन बनेगा यह बाद की बात है. लेकिन नेतृत्व किसके हाथों में रहेगा यह सबसे बड़ा सवाल है? कांग्रेस का इतिहास देखें तो शायद आपको मालूम पड़े कि कांग्रेस में जब तक गांधी परिवार है तब तक उसके सिवाय कोई और विपक्ष का नेतृत्व करे ऐसा संभव होता नहीं दिखाई दे रहा है.
एक तरफ जहां कांग्रेस पार्टी विपक्ष की मजबूती है तो वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी उसकी कमजोरी हैं. दरअसल ममता बनर्जी शरद, पवार सरीखे कई दिग्गज नेता हैं जो राहुल गांधी के नेतृत्व में कभी भी 2024 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहेंगे. लेकिन उन्हें यह पता होना चाहिए कि सोनिया गांधी की तबीयत खराब है और इस वक्त कांग्रेस के कर्ताधर्ता राहुल गांधी ही हैं. इसलिए अगर उन्हें कांग्रेस का साथ चाहिए तो राहुल गांधी का नेतृत्व भी स्वीकार करना होगा.
संसद में एकजुट दिखाई दे रहा विपक्ष 2024 तक एकजुट रहेगा
भारतीय राजनीति कि यह बहुत बड़ी विडंबना है कि यहां कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता. आज संसद में भले ही ज्यादातर विपक्षी पार्टियां एक साथ खड़ी नजर आ रही हैं और मोदी विरोध में आवाज बुलंद कर रही हैं, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में जमीन पर यह राजनीतिक पार्टियां आमने-सामने राजनीतिक लड़ाई नहीं लड़ेंगी इसकी कोई गारंटी नहीं है. संसद में आज भले ही तृणमूल कांग्रेस और वाम दल एक साथ मिलकर मोदी विरोध में स्वर ऊंचा कर रहे हैं, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में यह धुर विरोधी पार्टियां एक साथ खड़ी होंगी ऐसा शायद ही संभव हो.
उसी तरह से अकाली दल और कांग्रेस आज भले ही संसद में एक सुर में दिखाई दे रही हों, लेकिन पंजाब में यही दोनों राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे के विरोध में खड़ी दिखाई देती हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार का भी ऐसा ही हाल है. संसद में जहां सरकार को घेरने के लिए आरजेडी और जेडीयू के बयान एक जैसे हैं, मायावती और अखिलेश यादव के बयान एक जैसे हैं. वहीं बिहार और उत्तर प्रदेश के चुनाव में यह दल आपस में मुकाबला करते दिखाई देते हैं. आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में इन सभी दलों को एक साथ लाना नामुमकिन सा प्रतीत होता है. हालांकि अकाली दल और कांग्रेस को छोड़ दिया जाए तो कई बार यह दल एक साथ आए भी हैं, लेकिन उसके परिणाम उतने सार्थक नहीं निकले हैं. इसलिए 2024 के लोकसभा चुनाव में भी यह राजनीतिक पार्टियां एक साथ खड़ी दिखाई देंगी इस पर संदेह है.
कांग्रेस वाले विपक्ष की एकता से दूर हैं ये दल
एक तरफ जहां कांग्रेस- टीएमसी, आरजेडी, समाजवादी पार्टी सरीखे तमाम विपक्षी दलों को एक साथ लेकर संसद से सड़क तक मोदी सरकार को पेगासस, मंहगाई और कोविड प्रबंधन के मुद्दे पर घेरने के काम कर रही है और देश के सामने विपक्षी एकता का ढोल पीट रही है. वहीं दूसरी ओर एआईडीएमके, वाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल जैसी पार्टियों का इन मुद्दों पर कुछ ना बोलना विपक्ष की एकता पर सवाल खड़ा करता है. इन सब के बीच विपक्ष का एक और खेमा है जो बात तो कांग्रेस खेमे की तरह सरकार के विरोध में ही कर रहा है लेकिन वह कांग्रेस के खेमे के साथ खड़ा नज़र नहीं आ रहा है.
विपक्ष के इस अलगाव का फायदा सीधे तौर पर बीजेपी को मिलेगा जो 2014 और 2019 के चुनावों में भी मिला था. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी विपक्ष को एक साथ लाने की खूब कोशिश हुई लेकिन चुनाव आते-आते जमीन सभी दल खुद एक दूसरे के विरोध में खड़े हो गए, जिसका फायदा बीजेपी को सीधे तौर पर मिला. इसके साथ ही जब संसद में कांग्रेस विपक्ष को एक साथ दिखाने की कोशिश करती है और विपक्ष का एक धड़ा उसके साथ खड़ा नहीं दिखाई देता तो जनता के बीच भी विपक्ष की एकता को लेकर गलत संदेश जाता है.