सम्पादकीय

ड्रैगन पर भरोसा करें तो कैसे?

Gulabi
7 March 2021 5:22 AM GMT
ड्रैगन पर भरोसा करें तो कैसे?
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पूरा विश्व कोरोना वायरस से जूझ रहा है, अमेरिका, ब्रिटेन, ​फ्रांस और सभी बड़े देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हो चुकी हैं

पूरा विश्व कोरोना वायरस से जूझ रहा है, अमेरिका, ब्रिटेन, ​फ्रांस और सभी बड़े देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हो चुकी हैं। ऐसे समय में भी चीन ने अपने रक्षा बजट में अनुमान से भी ज्यादा 6.8 फीसदी बढ़ौतरी की है। चीन ने लगातार छठे साल अपना रक्षा बजट बढ़ाते हुए इसे 15.26 लाख करोड़ का कर दिया है। यद्यपि चीन की सत्तारूढ़ पार्टी नेशनल पीपुल्स कांफ्रैंस ने कहा है कि बजट राष्ट्रीय रक्षा की मजबूती के लिए बढ़ाया गया है, इसका प्रयास किसी भी देश को निशाना बनाना नहीं है। महामारी के संकट काल में भी चीन एलएसी से लेकर दक्षिण चीन सागर में दादागिरी दिखाता रहा है। यद्यपि लद्दाख के पेगोंग झील से उसकी सेनाएं हट गई हैं और भारत ने शुक्रवार को भी चीन से दो टूक कहा है कि वह शेष क्षेत्रोें से भी अपनी सेनाएं हटा लें लेकिन चीन पर भारत भरोसा करे तो कैसे करे। चीन का रक्षा बजट भारत के रक्षा बजट के मुकाबले तीन गुणा अधिक है। चीन को किससे खतरा है जो वह लगातार रक्षा बजट बढ़ाता ही जा रहा है। निश्चित रूप से उसने अपना रक्षा बजट अमेरिका के साथ बढ़ते राजनीतिक तनाव और भारत के साथ चल रहे सैन्य गतिरोध को देखते हुए बढ़ाया है। यद्यपि चीन का बजट अमेरिकी रक्षा बजट का एक चौथाई हिस्सा है, जो 2021 के ​वित्तीय वर्ष के लिए 740.5 विलियन अमेरिकी डालर है। चीन अब दूसरों के लिए खतरा बनता जा रहा है।


चीन दूसरे देशों को दबाव में रखकर अपनी विस्तारवादी नीतियों पर आगे बढ़ना चाहता है और उसकी रक्षा तैयारियां इस बात का स्पष्ट संकेत दे रही हैं। अमेरिका के एक विशेषज्ञ ने उपग्रह से ली गई चीनी मिसाइल प्रक्षेपण क्षेत्र में हालिया निर्माण की तस्वीरों के विश्लेषण के आधार पर कहा है कि चीन 16 नए भूमिगत अंतर महाद्वीपीय वैलिस्टिक मिसाइल साइलों का निर्माण कर रहा है, ताकि वह कोई परमाणु हमला होने की स्थिति में फौरन कार्रवाई करने की अपनी क्षमता में सुधार कर सके। चीन अमेरिका से सम्भवतः बढ़ते खतरे का मुकाबला करने की तैयारी कर रहा है। अमेरिका भी अपने नए परमाणु शस्त्रागार के निर्माण के ​लिए अागामी दो दशक से सैकड़ों अरबों डालर खर्च को न्यायोचित ठहराने के लिए चीन के परमाणु आधुनिकीकरण का हवाला देता रहा है। इससे परमाणु हथियारों की होड़ बढ़ने लगी है। यदि चीन अपनी मिसाइलों की संख्या तिगुनी भी कर लेता है तो भी उनकी संख्या अमेरिका और रूस के आईसीबीएम ​साइलों के मुकाबले मामूली रहेगी। अमेरिकी वायुसेना के पास 450 साइलें और रूस के पास 130 साइलें हैं। परमाणु मिसाइलों के दम पर चीन दुनिया का 'चौधरी' बनना चाहता है। भारत के साथ चलते सैन्य गति​रोध के बीच उसने भारत पर साइबर हमले किए। इनके जरिये उसने मुम्बई समेत देशभर में बिजली गुल करने की साजिश रची। कोरोना की सफलतम वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियां सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक चोर चीन के हैकर्स के निशाने पर रही। चीन वैक्सीन की निर्माण प्रक्रिया की जानकारी चाहता था।

चीन बड़ी साजिशों के साथ-साथ टुच्ची हरकतों से भी कभी बाज नहीं आया। भारत और पाकिस्तान में युद्ध चल रहा था और हारता हुआ पाकिस्तान चीन की तरफ निहार रहा था। यद्यपि चीन युद्ध में उलझना नहीं चाहता था लेकिन तब चीन ने भारत को परेशान करना शुरू कर दिया था। तब चीन ने भारत सरकार को लिखा कि ''भारत की सेना ने हमारे क्षेत्र से 75 भेड़ें उठा ली हैं और उन्हें मार कर खा रहे हैं। अतः हम भारत को तीन दिनों का अल्टीमेटम देते हैं कि या तो वह हमारी भेड़ें वापिस करे या अंजाम भुगतने को तैयार रहे।''
चीन का रवैया अप्रत्याशित था, भारतीय सेना ने ऐसा कुछ नहीं किया था। भेड़ों वाली बात झूठ ही नहीं चीन की दुष्यता थी। तब हम रक्षा मामले में मजबूत नहीं थे। उस वक्त के नेतृत्व ने समय की नजाकत को देखते हुए चीन को ये भेड़ें लौटा दीं। साठ के दशक के बाद तो चीन की गतिविधियां न केवल बढ़ीं, अपितु बार-बार उसने बड़ी क्षुद्रता का भी परिचय ​दिया।
भारत और चीन में कूटनयिक टकराव भी होता रहा। पंचशील की परिणति हमने देख ली, गांधीवाद की परिणति हमने देख ली। ​दिल्ली की एक जनसभा में एक क्रांतिकारी कवि ने श्रीमती इंदिरा गांधी की मौजूदगी में 1965 की याद दिलाते हुए रामधारी सिंह ​दिनकर की ये पं​क्तियां पढ़ी थीं।
''दर्शन की लहरें अधिक मत उछाल,
विचारों के विवर्त में पड़ा
आदमी बड़ा विवश होता है
गांधी, बुद्ध और अशोक विचारों में अब नहीं बचेंगे
उठा खडग, ये और किसी पर नहीं
स्वयं गांधी, गंगा और गौतम पर संकट है।''
नरेन्द्र मोदी की सरकार के नेतृत्व में भारतीय सेना ने खडग उठाकर हर कीमत पर भारत के स्वाभिमान की रक्षा की है। गलवान घाटी में चीन काे बता दिया है कि भारत अब 1962 और 1965 वाला भारत नहीं है फिर भारत को हर समय सजग रहना है, क्योंकि अगर चीन काे मुंहतोड़ ​जवाब ​नहीं दिया तो विश्व शांति को खतरा पैदा हो जाएगा।


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