सम्पादकीय

ग्राम पंचायतों की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही तय करने की कैसे हो पहल

Rani Sahu
29 April 2022 4:16 PM GMT
ग्राम पंचायतों की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही तय करने की कैसे हो पहल
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लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बीते दिनों राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के कार्यक्रम में पंचायतों और नगरपालिकाओं में संसद की तरह ही प्रश्न पूछने, मुद्दों पर चर्चा करने और स्थानीय नागरिकों के विचारों को प्राथमिकता देने के लिए प्रश्नकाल और बजट आवंटन आदि कार्यों पर विस्तृत चर्चा करने की शुरुआत पर बल देने को कहा है

शिवांशु राय। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बीते दिनों राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के कार्यक्रम में पंचायतों और नगरपालिकाओं में संसद की तरह ही प्रश्न पूछने, मुद्दों पर चर्चा करने और स्थानीय नागरिकों के विचारों को प्राथमिकता देने के लिए प्रश्नकाल और बजट आवंटन आदि कार्यों पर विस्तृत चर्चा करने की शुरुआत पर बल देने को कहा है। निगमों, परिषदों आदि में ऐसी परंपरा शुरू होने से जवाबदेही, पारदर्शिता, व्यापक भागीदारी एवं जनकेंद्रित मुद्दों पर ध्यान सुनिश्चित किया जा सकेगा।

दरअसल संसद की बैठक का पहला घंटा प्रश्नों के लिए होता है और उसे प्रश्नकाल कहा जाता है। इसका संसद की कार्यवाही में विशेष महत्व है। प्रश्न पूछना प्रतिनिधि सदस्यों का उन्मुक्त संसदीय अधिकार है। प्रश्नकाल के दौरान सदस्य प्रशासन और सरकार के कार्यकलापों के प्रत्येक पहलू पर प्रश्न पूछ सकते हैं। प्रश्नकाल के दौरान सरकार को कसौटी पर परखा जाता है और प्रत्येक मंत्री या सदस्यों को अपने प्रशासनिक कृत्यों में भूल-चूक एवं अन्य कार्यकलापों के संबंध में उत्तर देना होता है।
देश में संसद की तरह ही राज्य विधानमंडल, निगम और परिषद भी स्वायत्त होते हैं, पर इन स्थानीय निकायों में संसद के तर्ज पर तौर-तरीकों, परिचर्चा, उत्तरदायित्व और जवाबदेही का अभाव होता है। इसीलिए तमाम चुनौतियां स्पष्ट दिखती हैं, जैसे कामकाज की अनियमितता, संवाद और समन्वय का अभाव, पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव, कार्यों में लेटलतीफी, प्रशासनिक अड़चन, वार्षिक कैलेंडर का न होना, बेहतर कार्ययोजना और व्यापक रूप से भागीदारी में दिक्कतों के साथ-साथ निर्वाचित प्रतिनिधियों के द्वारा अधिकारों के दुरुपयोग की समस्याएं पंचायतों को प्रभावी बनाने में सबसे बड़ी बाधा हैं। इसके साथ ही बजट आवंटन एवं इस पर विस्तृत चर्चा, कार्यक्षेत्र और विकास संबंधी योजनाओं के बारे में स्थानीय लोगों में जानकारी व जागरूकता का भारी अभाव पाया जाता है। यही कारण है कि तमाम प्रकार की भ्रष्टाचार की खबरें आती रहती हैं और जमीनी स्तर पर पंचायतें अपनी अपार संभावनाओं का दोहन करने में चूक रही हैं।
स्थानीय स्वशासन इस सिद्धांत पर आधारित है कि स्थानीय लोगों को वहां की समस्याओं के बारे में गहराई से जानकारी होती है और ऐसे में स्थानीय मामलों के प्रबंधन एवं वंचित समूहों के जीवन स्तर में सुधार की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए स्थानीय स्तर पर चुनी सरकार को सौंपा जाता है और सर्वविदित है कि स्थानीय इकाइयों ने हर परिस्थिति में बेहतर प्रबंधन और परिणाम दिए हैं। बाद में 73वें और 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारत में पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा एवं संस्थागत रूप प्राप्त हुआ, तबसे लेकर आज तक के सफर में पंचायतों को विकास कार्यों पर लोगों के अधिक नियंत्रण के लिए पंचायतों को अधिकारों के हस्तांतरण में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। साथ ही नागरिकों की सीधी सहभागिता के साथ परियोजनाओं की निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है जिससे ग्राम पंचायतें और शहरी निकाय निरंतर क्षमता निर्माण, सामुदायिक जुड़ाव और विकास योजनाओं को निर्वाचित प्रतिनिधियों और अन्य हितधारकों के द्वारा जनकेंद्रित दृष्टिकोण से विकास कार्यों को संपन्न करा रही हैं।
संविधान के 73वें संशोधन के तहत ग्राम सभाओं को भारतीय लोकतंत्र का अटूट अंग बनाया गया जिसमें ग्राम सभा एक ऐसी संस्था है, जो किसी गांव की मतदाता सूची में दर्ज लोगों की संस्था है। ये लोग पंचायत या गांव के स्तर की इस संस्था के सहभागी होंगे। वहीं, शहरी संदर्भ में देखें तो, संविधान में 74वें संशोधन के अंतर्गत भागीदारी वाले लोकतंत्र को वैसा दर्जा नहीं दिया गया। इसलिए शहरी स्थानीय निकायों में जन भागीदारी के विचार सीमित हैं। ऐसे में इन स्थानीय निकायों में प्रश्नकाल, सभी जनहित के मुद्दों पर व्यापक चर्चा और बजट के विवेकपूर्ण आवंटन से कार्यवाहियों में हंगामे एवं गतिरोध से निजात मिल सकेगी। साथ ही सार्थक परिचर्चा, संसदीय गरिमा, जवाबदेही और सामूहिक जनभागीदारी को सुनिश्चित किया जा सकेगा। इसके माध्यम से संवाद, समन्वय और सहयोग बढ़ोतरी होगी जिससे सेवाओं की गुणात्मकता को आधार बनाकर योजनाओं में परिणाम-आधारित दृष्टिकोण को अपनाया जा सकेगा।
चायतें लोकतंत्र को सशक्त बनाने वाली संस्थाएं हैं। देश के समावेशी सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा में पंचायतें स्वच्छता, गरीबी उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और बेहतर पोषण की दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं। समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए पंचायतों के पास अपार संभावनाएं हैं। जैसे-जैसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव आ रहा है, वैसे-वैसे कृषि प्रसंस्करण, कौशल विकास, ग्रामीण उद्यमिता संवर्धन, उत्पाद अनुकूलन, ऋण, बीमा और वित्तीय प्रबंधन में अवसर बढ़ते जा रहे हंै जिसका दोहन कर अर्थव्यवस्था की गति को बढ़ाया जा सकता है। नवीकरणीय ऊर्जा, अपशिष्ट प्रबंधन, कचरा संग्रहण, सेवा वितरण, डाटा विकेंद्रीकरण, ई-शासन आदि जैसे क्षेत्रों में काफी कुछ किया जाना बाकी है। इनके क्रियान्वयन और बेहतर प्रबंधन में स्थानीय निकायों को शामिल किया जा सकता है, जिसके लिए उन्हें वित्तीय अधिकारों, संसाधनों की उपलब्धता, पर्याप्त क्षमता निर्माण, अवसंरचना विकास और प्रशिक्षण आदि की आवश्यकता है।
पंचायती राज प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए ग्राम पंचायतों में ग्राम सभा की नियमित बैठक बुलाना, स्वायत्तता, भागीदारी और जवाबदेही सुनिश्चित करना जरूरी है तो वहीं शहरी स्थानीय निकायों में प्रशासनिक और कार्यप्रणाली सुधार, वित्तीय अधिकार, क्षमता निर्माण, इष्टम बजट उपयोग और नागरिक सहभागिता बढ़ाने की जरूरत है।
Rani Sahu

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