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जब भी हिंदी दिवस आता है तो सहसा मस्तिष्क में स्मरणों की भीड़ लग जाती है। मैं पढ़ता-सुनता था कि विश्व हिंदी सम्मेलन होता है। कभी कभार इसकी रपट पत्र पत्रिकाओं में पढऩे को मिलती तो मन में उत्सुकता बढ़ती कि कहां कैसे होता होगा इसका आयोजन। कैसे जाते होंगे इसमें भारत और विशेषकर हिमाचल राज्य के हिंदी लेखक। कौन करता होगा उनकी संस्तुति। उसके लिए कितनी और कब भेजनी होती होंगी संस्तुतियां। ऐसा भूचाल मन में कई बार आया, गया, परंतु मैं यथास्थिति में रहता। मुझे इसकी कभी आशा भी नहीं रही। क्योंकि मैं हिमाचली-पहाड़ी में भी खूब लिखता-छपता रहा, इसलिए हिमाचल के लेखक मंडल में जब भी संस्तुति जाती, तो मेरा परिचय इतना ही जाता कि व्यथित जी पहाड़ी के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। नि:संदेह ऐसा परिचय सुनकर प्रसन्नता होती, परंतु मन में यह विचार अवश्य कौंधता कि शायद इन्होंने मेरा हिंदी साहित्य देखा पढ़ा नहीं होगा। लगभग कई दशक बीत गए हिंदी विश्व सम्मेलन के विषय में पढ़ते व सोचते।
मैं राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला में 1977 से 1996 अगस्त तक हिंदी विभाग में एमए के छात्रों को पढ़ाने के बाद दो वर्ष जि़ला साक्षरता समिति का सचिव और दो वर्ष सनातन धर्म महाविद्यालय बड़ोह में प्राचार्य पद पर रहने के पश्चात पुन: धर्मशाला कालेज में चल रहे हि. प्र. विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अध्ययन केन्द्र में अतिथि संकाय में पढ़ाने लगा। डा. वेद प्रकाश अग्नि जी हमारे विभागाध्यक्ष रहे लंबे अरसे तक और डा. पीयूष गुलेरी सहयोगी सेवानिवृत्ति के बाद भी 2007 तक। इस बीच डा. ओम अवस्थी, डा. कमला महेश्वरी भी विभाग में रहे। डा. प्रत्यूष गुलेरी भी आ गए थे हिंदी विभाग मे और डा. विजय शर्मा भी। महाविद्यालय में हिंदी के प्रति एक स्वस्थ तथा प्रेरक माहौल रहा आदरणीय प्राचार्यों के कारण। यदि यह कहा जाए कि वैसा माहौल अब कहां मिलेगा और इतने विद्वान कहां एक स्थान पर एक साथ कार्यरत होंगे, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। स्मरण सिनेमा रील जैसे द्रुत गति से सरकते जाते हैं। बात चली थी हिंदी विश्व सम्मेलन की, मुड़ गई कालेज की ओर। 2007 में रीजनल सैंटर से पढ़ा कर घर आ रहा था। गगल में बस बदलने हेतु उतरा तो फोन आया। मैं विदेश मंत्रालय से अमुक बोल रहा हूं। आप गौतम व्यथित ही बोल रहे हैं? मैंने कहा ..जी बोल रहा हूं। उन्होंने तुरंत कहा.. आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने हिमाचल से आपको प्रतिनिधि रूप में चुना है, तैयारी करें। कल शिमला जाएं या किसी को भेज कर पासपोर्ट बगैरा बना लें। मंै वहां फोन कर रहा हूं। मैं हतप्रभ हुआ, उनसे बोला ..महोदय, शायद फोन गलत मिल गया है।
आप जांच कर लें। लगभग 15 मिनट के बाद फिर उनका फोन आया और बताया कि हमने आपकी सरकार से कनफर्म किया, आप ही हैं। कल्पनातीत था यह सब कुछ। किसने किया होगा मेरे नाम का समर्थन। जाना भी न्यूयार्क (अमेरिका) था। दुर्गेश नंदन का धन्यवाद, उसने दो दिन में सारी औपचारिकताएं पूरी की। दिल्ली में पहुंच कर निश्चित विमान में बैठने के लिए समय होने पर भीतर भेजा। विमान बहुत बड़ा था, विशेष था। भीतर जाने पर परिचय संवाद शुरू हुआ। अनेक बहुचर्चित साहित्यकार व लेखक सवार थे उसमें। मैं सोच रहा था यह सब किसकी कृपा से संभव हो रहा है । मार्ग में इंगलैंड रुका विमान, वहां से लंबी उड़ान के बाद न्यूयॉर्क हवाई पट्टी पहुंचे तो उतरने का संकेत मिला। वहां तब रात थी। एक विशेष बस द्वारा हम विशाल होटल में पहुंचे। स्वागत कक्ष में औपचारिकताएं पूरी होने पर हमें कमरे मिले। वेटर ने मेरा कमरा खोलते कहा ..प्लीज़ हैव योअर रैस्ट। काल मी आन द नंबर। गुडनाइट। वह गया तो मैं दरवाज़ा बंद करके कोई आधा घंटा इसी सोच में रहा कि मेरे सोने से कहीं यह बिस्तर मैला न हो जाए। कमरे में हर वस्तु अपनी सही जगह पर सजी थी। सुबह यूएनओ के सभागार में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन होना था। उससे पूर्व सभी सदस्यों से विदेश मंत्री जी का स्वागत तथा परिचय संबोधन था।
मैं भी भीड़ में अपना सिर उठा-उठा कर उनकी तरफ देख रहा था। कुछ देर बार उन्होंने संकेत कर कहा, आप आ गए, अच्छा किया। कुछ देर बाद उनके पीए ने बताया कि मंत्री जी पूछ रहे थे। मैं भी हिमाचल से हूं। तब मुझे ज्ञात हुआ कि हिमाचल से सरकार की ओर से भेजे नामों से मेरा नाम इन्होंने ही टिक किया था। मैंने शिमला में दो-तीन कवि सम्मेलनों में कविताएं पढ़ी थीं जिन्हें शर्मा जी ने कभी सुना था। तत्पश्चात यूएनओ सभागार को भीतर से देखने, अनेक देशों से आए हिंदी प्रतिनिधि लेखकों से मिलने का अवसर मिला। भारत के विदेश मंत्री का स्वागत भाषण अत्यंत प्रभावी था। यूएनओ के महासचिव का भाषण हिंदी के प्रति उनकी समर्पित भावना को संप्रेषित कर गया। उन्होंने कहा…मुझे हिंदी से प्यार है। मैं भारत में रहा हूं। मैंने अपनी बेटी की शादी भारत में की है। इसे संघ की मान्यता मिले, हम इसकी संस्तुति करते हैं। वहां रह रहे भारतीयों द्वारा दिन का आतिथ्य अत्यंत मधुर और अपनापन लिए था। इस सम्मेलन में डा. प्रत्यूष गुलेरी जी साहित्य आकादमी के सदस्य के रूप में गए थे। दो दिन अनेक विषयों पर अलग-अलग सभागारों में संवाद, चर्चा, परिचर्चाएं होती रहीं। अनेक ऐसे साहित्यकार भी मिले जिन्हें हम हिंदी पाठ्यक्रमों में पढ़ाते रहे हैं। साहित्यिक महाकुंभ सदृश्य होता है विश्व हिंदी सम्मेलन। अंतिम शाम को सांस्कृतिक संध्या में भारत से गए पंकज उदास की प्रस्तुतियां थीं, जिनमें चि_ी आई है, आई है, काफी संवेदित कर गई थी। वहां से विमान में लौटता सोच रहा था हिंदी पढऩे-पढ़ाने के कारण ही मुझे ऐसा सौभाग्य प्राप्त हुआ है। जय हिंदी दिवस। जय राष्ट्र भाषा हिंदी।
डा. गौतम शर्मा 'व्यथित'
वरिष्ठ साहित्यकार
By: divyahimachal
Rani Sahu
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