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एक लंबे इंतजार के बाद पंचायती राज ने नाम मात्र की स्थानीय स्वशासन की इकाई से एक संवैधानिक वास्तविक शक्ति संपन्न स्वशासन की इकाई होने तक का सफर तय किया है। शुरू में पंचायती राज कानूनों में यह लिखा रहता था कि पंचायतें राज्य सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करेंगी। पंचायतें राज्य सरकारों के रहम पर निर्भर थीं। अपनी इच्छा से पंचायतों का चुनाव होता था। कोई निश्चित अवधि नहीं थी। बजट का भी निश्चित प्रावधान नहीं था। हालांकि महात्मा गांधी पंचायतों को शासन की रीढ़ बनाना चाहते थे, किन्तु संविधान में पंचायती राज को राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में स्थान देकर भविष्य में स्थापित करने के संकल्प के रूप में स्थापित किया गया। 73वें संविधान संशोधन के बाद पंचायतों को संवैधानिक दर्जा मिला। हर पांच साल में चुनाव होने लगे, राज्य वित्तायोग के माध्यम से निश्चित बजट मिलने लगा। पंचायत की विकास योजना बनाने की जिम्मेदारी पंचायत की ग्रामसभा के हवाले की गई। पंचायतों का वास्तविक स्वतंत्रता से कार्य करने का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस बड़ी उपलब्धि के बावजूद पंचायती राज की मूल भावना के अनुरूप ग्रामसभा को वास्तविक रूप से असली शक्ति हस्तांतरित करने का मूल कार्य अभी होना बाकी है।
By: divyahimachal
