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सर छोटू राम और चौ. चरण सिंह से पहले उनका सम्मान किया जाता रहा है
दिव्याहिमाचल.
पहली निर्वासित सरकार की घोषणा करने वाले एवं भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के गुमनाम सेनानी राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर अलीगढ़ में विश्वविद्यालय और रक्षा कॉरिडोर के शिलान्यास कई मायने रखते हैं। इसमें राजनीतिक स्वार्थ भी है और नाराज़ किसानों, जाटों को मनाने, साधने का प्रयास भी किया गया है। राजा महेंद्र प्रताप को जाट किसी 'महानायकÓ सेे कम नहीं आंकते। सर छोटू राम और चौ. चरण सिंह से पहले उनका सम्मान किया जाता रहा है। चौ. देवीलाल की जयंती पर 25 सितंबर को जींद में जो जमावड़ा किया जा रहा है, भाजपा की आंख उस पर भी है। पार्टी किसी भी तरह अपने जाट वोटबैंक को गंवाना नहीं चाहती है। एक तरफ उप्र का विधानसभा चुनाव है, तो दूसरी ओर किसान अब भी आंदोलित हैं और भाजपा के खिलाफ उनका प्रचार, मिशन की हद तक, पहुंच गया है। जाट और किसान परस्पर पर्यायवाची ही हैं। शिलान्यास के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने छोटी जोत के गरीब, कजऱ्दार किसानों के लिए अपनी सरकार के कामों का सारांश पेश किया। गन्ना किसानों का भुगतान कर उनकी परेशानियां कम करने का दावा किया और गन्ने के सरकारी दाम बढ़ाने का उल्लेख भी किया। बताया गया है कि गन्ना किसानों का बकाया भुगतान अब भी करीब 8000 करोड़ रुपए है। प्रधानमंत्री ने एक बार फिर किसान की आमदनी दोगुनी करने की घोषणा की। यही सबसे अहं, छद्म यथार्थ है, क्योंकि किसान की आय बढऩे की बजाय करीब 38 फीसदी घट गई है और उस पर औसतन कजऱ् 57 फीसदी बढ़ा है। यह भारत सरकार के ही राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के सर्वे की हालिया रपट का निष्कर्ष है। रपट करीब 4000 पन्नों की है और किसान, खेती, उनकी गरीबी, मज़दूरी आदि से जुड़े बेहद महत्त्वपूर्ण पहलुओं के खुलासे करती है। उसका एक-एक अध्याय वाकई इतिहास है।
रपट के मुताबिक, 2018-19 में, मोदी सरकार के ही दौरान, किसान की औसतन आय 8337 रुपए थी। उसमें से 4063 रुपए किसान मज़दूरी आदि से कमाता था, जबकि खेती, उपज से सिर्फ 3058 रुपए की ही आमदनी हो पाती थी। कुछ आमदनी पशुपालन बगैरह से भी होती थी, लेकिन 'ऊंट के मुंह में जीराÓ समान ही। वर्ष 2013 की तुलना में किसान की आमदनी करीब 38 फीसदी घटी है, लिहाजा महत्त्वपूर्ण सवाल है कि 2022 तो क्या, चुनावी वर्ष 2024 तक भी किसान की आय दोगुनी कैसे होगी? क्या किसान अब मज़दूर होता जा रहा है, क्योंकि 50 फीसदी से ज्यादा किसान परिवारों ने खेती करना छोड़ दिया है? किसान गांव से शहरों की तरफ पलायन कर रहा है अथवा उसे एक रणनीति के तहत शहरों की ओर धकेला जा रहा है? कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के दौरान 2013 में किसान पर औसतन कजऱ् 47,000 रुपए था। अब 2018-19 की रपट में वह बढ़कर 74,121 रुपए हो गया है। क्या कजऱ्माफी अभियानों के बावजूद किसान कजऱ्दार होता रहा है? तो सरकारों ने जिन किसानों के कजऱ् माफ किए हैं, वे कौन-से थे और किनके कजऱ् थे? आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, केरल और पंजाब में तो किसानों के हालात बेहद बदतर हैं, जहां किसानों पर औसतन कजऱ् 2 लाख रुपए से अधिक है। कृपया प्रधानमंत्री स्पष्ट करें कि किसान की कौन-सी आमदनी दोगुनी होगी? छोटी जोत के किसान 80 फीसदी से ज्यादा हैं। हमारा मानना है कि किसान आंदोलन भी एक राजनीतिक एजेंडा है और वह छोटे, सीमांत किसान को और भी कमज़ोर करेगा। प्रख्यात किसान नेता एवं पूर्व सांसद केसी त्यागी का सुझाव व्यावहारिक लगता है कि सरकार 'राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन करे और उसे संवैधानिक दर्जा दे। आयोग की रपट सरकार पर बाध्यकारी होनी चाहिए, यह प्रावधान भी रखा जाए। संभव है कि कुछ बेहतर परिणाम सामने आएं और किसानों का संकट कम होने लगे! जाट-किसान एक प्रभावशाली वोटबैंक है। हालांकि उप्र में उसकी 6-8 फीसदी आबादी है, लेकिन पश्चिम उप्र में वह 17 फीसदी से ज्यादा है। उसका असर 18 लोकसभा सीटों और 50 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर है। 2019 के आम चुनाव में करीब 91 फीसदी जाटों ने भाजपा को वोट दिया था। अब आंदोलन और अन्य ज्वलंत मुद्दों के कारण भाजपा के चुनावी समीकरण बिगड़ सकते हैं, लिहाजा राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम का बड़ा भरोसा है। किसानों का जो आंदोलन चल रहा है, वह भी आगे ही बढ़ता जा रहा है। इस कारण भी भाजपा की चिंताएं बढ़ जाना स्वाभाविक है। पार्टी के लिए यह हितकारी होगा कि किसानों की समस्याएं सुलझा ली जाएं।
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