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- फर्जी खबरों पर कसे...

पवन दुग्गल। यू-ट्यूब, वेबसाइट समेत सोशल मीडिया पर प्रकाशित-प्रसारित होने वाली फर्जी खबरों और रिपोर्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट की चिंता बेजा नहीं है। वाकई, ऑनलाइन माध्यमों से अब सत्य से अधिक असत्य सूचनाएं प्रसारित की जाती हैं। इसका एक बड़ा कारण यह है कि तमाम डिजिटल मंच समझ चुके हैं कि सच की तुलना में वे फर्जी खबरों के प्रकाशन-प्रसारण से अधिक पैसा कमा सकते हैं। इसीलिए, वे अपने हितों को साधने का प्रयास करते हैं और ऊल-जुलूल खबरों को सच का चोला पहनाकर परोसने की कोशिश में लगे रहते हैं। शीर्ष अदालत का यह कहना वाजिब है कि फेक न्यूज के माध्यम से सोशल मीडिया पर 'नैरेटिव' गढ़ी जाती है। देखा जाए, तो यह एक वैश्विक चुनौती है। इंटरनेट ने भूगोल को इतिहास बना दिया है और तमाम उपभोगकर्ताओं को छद्म वेश में अपनी गतिविधियां करने की छूट दे दी है। चूंकि लोगों को लगता है कि उनकी पहचान इंटरनेट पर जाहिर नहीं हो सकती, इसलिए वे आभासी दुनिया में ऐसी तमाम हरकतें करते रहते हैं, जो असल जीवन में कतई नहीं कर सकते।
