सम्पादकीय

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध किस प्रकार से महिलाओं के जीवन को कर सकता है दुष्‍प्रभावित

Rani Sahu
7 March 2022 2:01 PM GMT
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध किस प्रकार से महिलाओं के जीवन को कर सकता है दुष्‍प्रभावित
x
विश्व के हर हिस्से में घर-परिवार से लेकर राष्ट्र तक को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली स्त्रियां युद्ध और अस्थिरता जैसी दशाओं का सर्वाधिक शिकार होती हैं

डा. मोनिका शर्मा।

विश्व के हर हिस्से में घर-परिवार से लेकर राष्ट्र तक को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली स्त्रियां युद्ध और अस्थिरता जैसी दशाओं का सर्वाधिक शिकार होती हैं। ऐसे पीड़ादायी हालातों के मामले में विकसित हो या विकासशील, हर देश में औरतों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं। युद्ध के हालातों से जूझने वाले समाज का रुख प्रगतिशील हो या परंपरागत, आधी आबादी को घाव ही मिलते हैं। ऐसे जख्म जो युद्ध खत्म हो जाने के बाद भी स्त्री जीवन में अपनी स्थायी मौजूदगी दर्ज करवाते हैं, वर्तमान के छीजने का कारण बनते हैं और भावी पीढिय़ों पर दुष्प्रभाव डालते हैं। राष्ट्र और समाज का पूरा ढांचा बिखेरकर रख देते हैं। शिक्षा और सुरक्षा के मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि स्त्री होने के नाते बर्बरता झेलने के मामले में भी औरतों को अमानवीय स्थितियों का सामना करना पड़ता है।

दुर्भाग्यपूर्ण है कि युद्ध की विभीषिका के रूप में सामने आने वाली विस्तारवाद की नीति औरतों के हिस्से की जमीन के सिमटने का कारण बनती रही है। इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम है- एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता। पर आज की बर्बर स्थितियां आने वाले समय के लिए कई चिंताओं का कारण ही बन रही हैं, क्योंकि जंग के हालात आने वाले कल में औरतों के मन और मान के मोर्चे पर सब कुछ बदलकर रख देते हैं। दुखद है कि युद्ध के हालातों में विस्थापन के चलते महिलाएं वेश्यावृत्ति, आपराधिक गतिविधियों, मानव तस्करी और गुलामी के जाल में भी फंस जाती हैं। यूक्रेन से ऐसे समाचार आने भी लगे हैं। यूरोपीय संघ के अधिकारियों और संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जताई है कि लगभग 70 लाख लोग यूक्रेन से पड़ोसी देशों पोलैंड, माल्डोवा, रोमानिया, स्लोवाकिया और हंगरी जा सकते हैं। शरणार्थी के रूप में दूसरे देशों में पहुंचने वाले लोगों के शोषण का एक रूप मानव तस्करी के अपराधों में तेजी से बढ़ोतरी के तौर पर भी सामने आ सकती है। इन हालातों में दुष्कर्म की घटनाओं और यौन दासता की अंधेरी सुरंग में औरतों को हमेशा के लिए धकेल दिए जाने की आशंका बढ़ जाती है।
दुनिया भर में पहले और दूसरे विश्व युद्ध की विभीषिका को जब भी याद किया गया है, महिलाओं के साथ हुई बर्बरता का जिक्र अवश्य होता है। अफसोस यह कि युद्ध में शक्ति प्रदर्शन का एक तरीका स्त्रियों के साथ दुव्र्यवहार करने की सोच से भी जुड़ा है। यही वजह है कि बरसों पहले हुई जंग के दौरान ही नहीं, बल्कि युद्ध खत्म होने के बाद भी, औरतों के साथ हुई अमानवीयता की चर्चा आज भी दिल दहला देने को काफी है। हमेशा से ही युद्धग्रस्त इलाकों में संगठित आपराधिक गिरोह सक्रिय रूप से महिलाओं और बच्चों को अपना शिकार बनाते रहे हैं। विडंबना ही है कि 1917 में रूसी महिलाओं ने पहले विश्व युद्ध के प्रति विरोध जताकर महिला दिवस मनाया था। इस वर्ष महिला दिवस पर दुनियाभर में महिलाएं यूक्रेन पर रूस के हमलों का विरोध कर युद्ध रोकने के लिए प्रदर्शन कर सकती हैं।
कितना त्रासद है कि इंसानियत को पोषित करने वाली औरतें हिंसा और अमानवीयता की पीड़ा सबसे ज्यादा झेलती हैं। आज के दौर में जब महिलाओं की कुशलता चाहने, सशक्त बनाने और सम्मानजनक जीवन का अधिकार मिलने को लेकर बात होनी चाहिए। युद्ध की त्रासदी से उपजे हालातों में फंसी औरतों की चिंता करने की परिस्थितियां बनी हुई हैं। अफसोस कि ऐसा उन्मादी संघर्ष महिलाओं के जीवन को बरसों पीछे धकेल देता है। कितना सुख हो कि महिला दिवस का विशेष दिन जंग की नहीं, बल्कि जज्बाती जुड़ाव की बातें लिए हो। बारूद के धुएं से उपजी जद्दोजहद के बजाय स्त्रियों का जीवन सहज बनाने की रणनीति पर संवाद करने का अवसर बने।


Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story