सम्पादकीय

कमजोर नेतृत्व और गलत नीतियों के कारण कैसे गैर-बीजेपी राष्ट्रीय दलों का प्रभाव घटता जा रहा है?

Gulabi Jagat
20 Aug 2021 5:53 AM GMT
कमजोर नेतृत्व और गलत नीतियों के कारण कैसे गैर-बीजेपी राष्ट्रीय दलों का प्रभाव घटता जा रहा है?
x
गैर-बीजेपी राष्ट्रीय दलों का प्रभाव घटता जा रहा है?

अजय झा।

जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी (BJP) पूरे देश में लगातार पांव पसार रही है और विपक्ष बैक फुट पर दिख रहा है, सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या कुछ प्रमुख विपक्षी दलों का अंत नजदीक है. विपक्षी एकता की बात इस बात का सबूत है कि कुछ बड़े दल अपने भविष्य को ले कर परेशान हैं. कांग्रेस पार्टी (Congress Party) द्वारा विपक्षी एकता का प्रयास और वामदलों का कहना कि वह अपने धुर विरोधी ममता बनर्जी के साथ बीजेपी को हराने के प्रयास में उनका साथ देने को तैयार हैं साबित करता है कि अगले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के ढाई वर्ष पहले ही विपक्ष को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है. अभी से यह सवाल उठने लगा है कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद कुछ दलों का नामोनिशान ख़त्म हो जाएगा?


पहले बात करते हैं वामदलों की. वामदलों का भारत की राजनीति में शुरू से ही दबदबा था. हर राज्य में उनकी पैठ होती थी. जहां पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा को वामदलों का गढ़ माना जाता था, दूसरे राज्यों में भी वाममोर्चा कुछ सीटें जीत ही जाती थी. दो प्रमुख वामदल सीपीएम और सीपीआई देश के मुट्ठी भर राष्ट्रीय दलों की सूची में शामिल हैं. पश्चिम बंगाल में लगातार 34 वर्षों तक शासन. त्रिपुरा में लगातार 15 वर्षों तक सत्ता में रहना, केरल में मजबूत स्थिति और केंद्र की सत्ता में दखल – वामदलों की तूती बोलती थी. लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव से वामदलों के पतन का जो सिलसिला शुरू हुआ वह थमने का नाम नहीं ले रहा है.
वाममोर्चा और कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है
2004 के चुनाव में चार दलों के वाममोर्चा के लोकसभा में 59 सांसद थे जो घटकर 2009 में 24 हो गए, 2014 में 11 वाममोर्चा के सांसद चुने गए और 2019 में 6 सांसदों का चुना जाना, दिखाता है कि कैसे वाममोर्चा धीरे-धीरे पतन की ओर बढ़ रहा है. 2011 में पश्चिम बंगाल में 34 वर्षों के बाद सत्ता से छुट्टी और 2018 में त्रिपुरा में सत्ता का अंत, अब आलम यह है कि कुछ महीने पहले हुए पश्चिम बंगाल चुनाव में वाममोर्चा एक भी सीट नहीं जीत पाई. वाममोर्चे की लाज केरल के कारण बच गयी और कांग्रेस पार्टी के अंतरकलह और स्थानीय कारणों के कारण केरल में 2016 से वाममोर्चा, जिसे प्रदेश में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट के नाम से जाना जाता है, सत्ता पर काबिज है. अगर केरल धोखा ना दे तो वह दिन दूर नहीं कि भारत की राजनीति में सीपीएम और सीपीआई को चिराग ले कर ढूंढना पड़ेगा.

कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस पार्टी का भी है. लगातार 10 वर्षों तक केंद्र की सत्ता में रहने के बाद 2014 में बीजेपी की नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी. कांग्रेस पार्टी 206 सीटों से लुढ़क कर 44 सीटों पर पहुंच गयी और 2019 में 52 पर कांग्रेस पार्टी का कांटा टिक गया. पिछले सात वर्षों में पार्टी की हालत बद से बदतर होती गयी और अब सिर्फ तीन राज्यों में ही कांगेस पार्टी सत्ता में है – पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़. इन तीनो प्रदेशों में गुटबाजी के कारण कांग्रेस पार्टी दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है और केन्द्रीय नेतृत्व के खिलाफ असंतोष बढ़ता जा रहा है.

क्या 2024 का चुनाव बीजेपी बनाम क्षेत्रीय दल होने वाला है?
अगले वर्ष सात राज्यों में चुनाव होना है, जिसमे पंजाब के सिवा बाकी के सभी राज्यों में बीजेपी की सरकार है. अगर कांग्रेस पार्टी पंजाब में सत्ता बचाने में कामयाब नहीं रही और किसी अन्य राज्य में बीजेपी से सत्ता नहीं छीन पायी तो कांग्रेस पार्टी के भविष्य पर लगा ग्रहण और अंधकारमय हो जाएगा. लिहाजा कांग्रेस पार्टी की उत्सुकता कि किसी तरह पूरा विपक्ष एकजुट हो जाए समझी जा सकती है, क्योंकि 2024 के चुनाव में ना सिर्फ कांग्रेस पार्टी का भविष्य दाव पर लगा होगा बल्कि पार्टी के सर्वोच्च गांधी परिवार का भविष्य भी 2024 के चुनाव में तय हो सकता है.

दिलचस्प बात है कि कांग्रेस पार्टी, सीपीएम और सीपीआई की तरह क्षेत्रीय दलों का बीजेपी के बढ़ते प्रभाव से अभी अंत नहीं दिख रहा है, कारण है कि जबतक देश में क्षेत्रवाद और जातिवाद का बोलबाला रहेगा तब तक क्षेत्रीय दल टिके रहेंगे. बीजेपी को अपने राज्यों में क्षेत्रीय दल ही टक्कर देते नज़र आएंगे. हां, बीजेपी के बढ़ते प्रभाव से उनकी ताकत में कमी आ सकती है. पर यह सोचना कि कांग्रेस पार्टी या फिर सीपीएम और सीपीआई का अंत हो जाएगा जल्दबाजी होगी. सीपीएम और सीपीआई और लुढ़क सकती है पर उनका अस्तित्व अभी ख़त्म नहीं होगा. कांग्रेस पार्टी अगर नेतृत्व के विवाद को सुलझा ले और एकजुट हो जाए तो पार्टी के पतन को रोका जा सकता है. पर जिस तरह नेतृत्व के मुद्दे पर विवाद बढ़ता जा रहा है और अगर गांधी परिवार बिना चुनाव कराए और बिना चुनाव जीते हुए ही पार्टी चलती रही तो कांग्रेस को अभी और भी बुरे दिनों का सामना करना पड़ सकता है.

अगर समय रहते कांग्रेस पार्टी अपने घर को एकजुट नहीं कर पाई तो विपक्षी एकता के प्रयास से पार्टी की सत्ता में वापसी नहीं होने वाली है. और अगर यही हाल रहा तो 2024 का चुनाव बीजेपी बनाम क्षेत्रीय दल बन जाएगा और कांग्रेस पार्टी असहाय बन कर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए क्षेत्रीय दलों पर आश्रित हो जायेगी
Next Story