सम्पादकीय

देश के सबसे बड़े बैंक घोटाले के बारे में मीडिया ने आपको कितना सही बताया!

Gulabi
14 Feb 2022 9:01 AM GMT
देश के सबसे बड़े बैंक घोटाले के बारे में मीडिया ने आपको कितना सही बताया!
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देश के सबसे बड़े बैंक घोटाले के बारे में
गिरीश मालवीय.
देश का सबसे बड़ा बैंक घोटाला एबीजी शिपयार्ड का मामला वैसा बिलकुल नहीं है, जैसा मीडिया बताने की कोशिश कर रहा है. सबसे पहले यह समझिए कि घोटालेबाज कौन है. ऋषि अग्रवाल इस कंपनी के कर्ता धर्ता हैं. जो इस घोटाले के मुख्य किरदार हैं. ऋषि अग्रवाल रवि और शशि रुइया की बहन के लडके हैं. फोर्ब्स के अनुसार रुईया ब्रदर्स 2012 में देश के सबसे अमीर व्यक्ति थे. उनकी कंपनी एस्सार ग्रुप हैं, जो अब बिखर चुकी हैं. मुख्य कंपनी एस्सार ऑयल भी 2018 में रूस के कंपनी के हाथो बिक चुकी हैं, यानी यह घोटाला एस्सार से भी जुड़ा हुआ है, मीडिया यह तथ्य बता ही नही रहा है.
एबीजी शिपयार्ड जहाज बनाने वाली देश की सबसे बड़ी प्राइवेट कंपनी हैं, इसके शिपयार्ड गुजरात के दहेज और सूरत में स्थित है. भारतीय नौसेना के लिए युद्धपोतों और विभिन्न अन्य जहाजों का निर्माण के लिए यह कंपनी अधिकृत है. इस श्रेणी में सिर्फ तीन कंपनिया ही आती हैं, जिसमें से अनिल अंबानी की रिलायंस नेवल ( पुराना नाम पीपापाव शिपयार्ड ) भी एक थी. अनिल अंबानी ने भी 2017 में एबीजी को खरीदने की कोशिश की थी.
अभी जो ख़बर आई हैं वो यह है कि सीबीआई ने मामला दर्ज किया है. लेकिन इसकी शिकायत बैंकों के कंसोर्टियम ने आठ नवंबर 2019 को दर्ज कराई थी. डेढ़ साल से अधिक समय तक जांच करने के बाद सीबीआई ने इस पर कार्रवाई की हैं. मामला जरूर एसबीआई के कहने पर दर्ज हुआ है, लेकिन इस घोटाले में आईसीआईसीआई सबसे ज्यादा नुकसान में है. क्योंकि एबीजी पर सबसे अधिक राशि ₹7,089 करोड़ उसकी ही बकाया है. इसके अलावा आईडीबीआई बैंक का ₹3,639 करोड़ फंसा हुआ है. आईडीबीआई को जबरदस्ती मोदी सरकार ने एलआईसी के हाथों खरीदवाया है. इसलिए एलआईसी भी इस घोटाले से नुकसान में हैं. एबीजी पर एसबीआई का ₹2,925 करोड़ बकाया है.
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एबीजी का मामला नीरव मोदी की तरह नही हैं. क्योंकि आज की तारीख में एबीजी शिपयार्ड में आईसीआईसीआई बैंक की 11 फीसदी हिस्सेदारी है. जबकि आईडीबीआई बैंक, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और पंजाब नैशनल बैंक में से प्रत्येक की 7 फीसदी हिस्सेदारी है. इसी प्रकार देना बैंक की हिस्सेदारी 5.7 फीसदी है. यानी बैंको की पूरी रकम डूब चुकी हैं.
रिजर्व बैंक ने जून 2017 में बैंकों को जिन 12 कंपनियों को बैंकरप्सी कोर्ट में ले जाने को कहा था, उनमें एबीजी शिपयार्ड भी शामिल थी. उस वक्त एबीजी शिपयार्ड के लिए सिर्फ लिबर्टी हाउस ने ही बोली लगाई थी. लिबर्टी हाउस ने 10 साल में इतना पैसा चुकाने की बात कही थीं वो कैश बिलकुल भी नहीं दे रहा था. इसलिए ऑफर को बैंक रिजेक्ट कर दिया था.
यह ग्रुप पहले से ही मुश्किल मे था. 2014 में जब मोदी सत्ता में आए थे, तब आईसीआईसीआई बैंक के नेतृत्व में 22 बैंकों के समूह ने एबीजी शिपयार्ड के 11,000 करोड़ रुपये के कर्ज को पुनर्गठित करने के लिए सहमति जताई थी.
ताकि पुनर्भुगतान के लिए कंपनी को अतिरिक्त समय मिल जाए. यानी उस वक्त भी उसे और लोन दिया गया. इस प्रक्रिया को एवरग्रीनिंग कहा जाता है. यानी लोन वसूलने के लिए और लोन देना. 2014 में 11 हजार करोड़ का लोन, 2022 में 23 हजार करोड़ का कैसे हो गया ? साफ़ है कि मोदी सरकार के सात सालो में उसे हजारों करोड़ रुपयों का और लोन दिया गया?
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.
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