सम्पादकीय

कैसे ओमप्रकाश चौटाला के अहंकार ने देवीलाल की विरासत को तहस नहस कर दिया

Rani Sahu
26 May 2022 10:11 AM GMT
कैसे ओमप्रकाश चौटाला के अहंकार ने देवीलाल की विरासत को तहस नहस कर दिया
x
इतिहास गवाह है कि अहंकार किसी भी साम्राज्य के पतन का सबसे बड़ा कारण रहा है

अजय झा |

इतिहास गवाह है कि अहंकार किसी भी साम्राज्य के पतन का सबसे बड़ा कारण रहा है. 1999 में ओमप्रकाश चौटाला (Om Prakash Chautala) भारतीय जनता पार्टी (BJP) के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गए और 2000 के विधानसभा चुनाव में इंडियन नेशनल लोक दल को अपने दम पर बहुमत मिलने के बाद चौटाला में अहंकार कूट-कूट कर भर गया. होता भी क्यों ना, उनके नाम के साथ एक नया इतिहास जुड़ चुका था. अब तक किसी भी व्यक्ति ने हरियाणा (Haryana) में पांच बार मुख्यमंत्री पद की शपथ नहीं ली थी हरियाणा के तीन प्रसिद्ध लाल (बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल) ने भी नहीं. चौटाला यह मानने लगे कि वह तीनों लालों से आगे निकल चुके हैं, और अपने पिता देवीलाल से भी बड़े नेता बन चुके हैं. फिर शुरू हुआ हरियाणा में भ्रष्टाचार और तानाशाही का ऐसा दौर कि देवीलाल-चौटाला साम्राज्य का अंत भी होना ही था, जिसकी शुरुआत 2005 के विधानसभा चुनाव से हुयी.
किसानों पर गोली चलवाने के आरोप से खत्म हुई राजनीति
किसानों की राजनीति करने वाले देवीलाल के पुत्र ओमप्रकाश चौटाला की सरकार ने आन्दोलनकारी किसानों पर 2002 में गोली चलायी जिसमे 17 किसानों की मौत हो गयी. किसान इंडियन नेशनल लोक दल से खफा हो गए और इंडियन नेशनल लोक दल 47 सीटों से लुढ़क कर 9 सीटों पर पहुंच गयी. कांग्रेस पार्टी को 90 सदस्यों वाली विधानसभा में 67 सीटों के साथ अभूतपूर्ण जीत हासिल हुयी. नए मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने चौटाला के खिलाफ जूनियर बेसिक टीचर (जेबीटी) घोटाले में जांच का आदेश दिया और सीबीआई चौटाला के खिलाफ ढेर सरे सबूत इकट्ठा करने में सफल रही जिस कारण 2013 में चौटाला को 10 वर्षों के लिए कारावास की सजा मिली और अब आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के केस में वह एक बार फिर से जेल जाने वाले हैं. अब उनकी सजा कितने वर्षों की होगी, इसका निर्णय दिल्ली की एक अदालत 26 मई दिन-गुरुवार को सुनाएगी.
जेल जाते ही पतन का सिलसिला
2013 में चौटाला के जेल जाते ही इंडियन नेशनल लोक दल के पतन का सिलसिला शुरू हो गया. 2014 के विधानसभा चुनाव में 19 सीट और फिर 2019 में चुनाव में मात्र एक सीट पर विजय. 2019 के चुनाव की सबसे बड़ी खासीयत थी कि जहाँ इंडियन नेशनल लोक दल को सिर्फ एक सीट पर ही जीत हासिल हुयी, इंडियन नेशनल लोक दल से अलग हो कर बने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) 10 सीटों पर विजय रही. जेजेपी का गठन चौटाला के दो पोतों दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला ने 2018 में की थी, जो उनके बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला के बेटे हैं. दुष्यंत 2014 में सांसद चुने गए थे और उन्हें इंडियन नेशनल लोक दल के उभरते हुए सितारे के रूप में देखा जाने लगा था और पार्टी की बागडोर अभय सिंह चौटाला के असक्षम हाथों में चली गयी थी. चाचा अभय सिंह और भतीजा दुष्यंत चौटाला दोनों चाहते थे कि उन्हें मुख्यमंत्री का दावेदार घोषित किया जाए.
परिवार में विघटन
2018 में चौटाला परोल कर जेल से बहार आये थे और कुछ युवाओं ने एक जनसभा में जहां चौटाला भी उपस्थित थे, ने दुष्यंत के समर्थन में नारेबाजी शुरू कर दी, जिसके परिणाम स्वरुप चौटाला ने अनुशासनहीनता के आरोप में दुष्यंत और दिग्विजय को पार्टी से बर्खास्त कर यह साबित कर दिया कि भले भी इंडियन नेशनल लोक दल का चुनाव चिन्ह ऐनक (चश्मा) हो, पर चौटाला के पास दूर दृष्टि का अभाव हैं. अजय सिंह अपने बेटों के समर्थन के खड़े हो गए, लिहाजा उन्हें भी पार्टी ने बर्खास्त कर दिया गया. अजय सिंह के परिवार ने जेजेपी का गठन किया और इंडियन नेशनल लोक दल में नेताओं और कार्यकर्ताओं का पलायन शुरू हो गया, सभी जेजेपी में शामिल होने लगे. उन्हें अभय सिंह के नेतृत्व में भरोसा नहीं था और दुष्यंत के दावे को कि वह अपने परदादा देवीलाल के राजनीतिक धरोहर के असली उत्तराधिकारी हैं लोगों ने मानना शुरू कर दिया. गठन होने के 10 महीने बाद ही जेजेपी को 14.80 प्रतिशत वोट मिले और इंडियन नेशनल लोक दल को सिर्फ 2.44 प्रतिशत मत. जेजेपी ने बीजेपी को समर्थन दिया और दुष्यंत हरियाणा के गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं.
इनेलो का क्या है भविष्य
चूंकि अब चौटाला एक बार फिर से जेल जाने वाले हैं और आज बस उनके सजा की अवधि का फैसला होना है, सवाल यह उठने लगा है कि अब इंडियन नेशनल लोक दल का भविष्य क्या होगा. चौटाला ने जेल से परोल पर छूट कर 2019 के चुनाव में अपनी पार्टी के लिए जम कर प्रचार भी किया था, अपने पोतों को गद्दार कहना शुरू कर दिया और अड़े रहे कि जब तक वह सार्वजानिक रूप से माफ़ी नहीं मांगते, उन्हें पार्टी में वापस नहीं लिया जाएगा. एक तरह से चौटाला ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली. उन्हें इसका आभास भी नहीं था कि दुष्यंत और दिग्विजय की रगों में भी उनका ही खून दौड़ रहा है और वह माफ़ी नहीं मांगेंगे. जब चौटाला के रहते हुए ही इंडियन नेशनल लोक दल को लोगों ने नकार दिया था और देवीलाल के समर्थक चौटाला से मुहं फेर कर दुष्यंत से जुड़ने लगे. चौटाला पिछले वर्ष जेल से रिहा होने के बाद परिवार को इकठ्ठा करने की हर पहल को अपनी जिद और अहंकार के कारण नकारते रहे थे, जिससे जेजेपी के इंडियन नेशनल लोक दल में विलय की सम्भावना ख़त्म हो गयी.
चौटाला अब 87 वर्ष के हो चुके हैं
अगर यह मान भी लिया जाए कि उन्हें कम से कम तीन वर्ष के लिए कारावास की सजा सुनाई जाएगी, तो जब वह जेल से बाहर आएंगे, उनकी उम्र 90 वर्ष की हो चुकी होगी. उस उम्र में यह उम्मीद करना कि वह इंडियन नेशनल लोक दल को नए सिरे से पुनर्जीवित कर पाएंगे सही नहीं होगा. इंडियन नेशनल लोक दल अब और भी कमजोर हो जायेगा और पार्टी के बचे-खुचे नेता और कार्यकर्ता भी अब जेजेपी का रुख कर सकते हैं. हां, इंडियन नेशनल लोक दल का अंत नहीं होगा, बस कागजों पर पार्टी जिन्दा रहेगी.
अगर चौटाला सिर्फ एक बार भी अपने पोतों को गले लगा लें और यह मान लें कि देवीलाल के असली वारिस अभय सिंह नहीं बल्कि दुष्यंत हैं तो इंडियन नेशनल लोक दल इतिहास पन्नों में सिमटने से बच सकती है. पर ओमप्रकाश चौटाला का अहंकार उन्हें ऐसा करने नहीं देगा. देवीलाल की इंडियन नेशनल लोक दल चौटाला के अहंकार की बलि चढ़ जाएगी.

सोर्स - tv9hindi.com

Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story