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- कितने बदलेंगे हम?
जी हां, वो हम ही थे जो कभी इस जुमले पर मर मिटे थे कि बस जल्दी ही हमारे खाते में 15 लाख जमा होने वाले हैं, पर अब हमें ही वो पैसे नहीं चाहिए। सात साल पहले तक हमें सरकारी नौकरी चाहिए थी, पर अब हम लोग देश के एक बड़े नेता के कहने पर पकौड़े तलने के लिए भी तैयार हैं। कुछ ही साल पहले तक हमें डालर एक रुपए के बराबर चाहिए था, पर अब हम डालर का जिक्र ही भूल चुके हैं। तब हमें भ्रष्टाचारियों द्वारा जमा सारा काला धन वापस चाहिए था, पर अब कभी काले धन का जि़क्र उस तरह से नहीं करते। कुछ साल पहले तक हमें पेट्रोल 40 रुपए लीटर चाहिए था, पर अब पेट्रोल के दाम 100 रुपए लीटर से भी ऊपर हों, पर हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। आज हमारे मुद्दे यह हैं कि राम मंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है, जम्मू-कश्मीर का बंटवारा करके समस्या का हल हो चुका है, तीन तलाक कहने वाले को सजा देने का कानून लागू हो चुका है, विश्व में भारत को एक शक्ति के रूप में पहचाना जा रहा है, कोविड पर प्रभावी नियंत्रण से हम गर्वित हैं और आज हिंदू समाज खुद को हिंदू कहने में गर्व महसूस करता है, खुलकर खुद को हिंदू कहता है। अभी तीन साल पहले तक शासक दल के समर्थकों की ओर से ऐसे संदेश मिलते थे कि गाडि़यों के नए माडलों पर वेटिंग चल रही है, और ग्राहकों को 6-6 महीने तक गाडि़यों का इंतजार करना पड़ रहा है। रेस्टोरेंट में खाली टेबल नहीं मिल रहे हैं और शॉपिंग मॉल में इतनी भीड़ है कि पार्किंग की जगह नहीं है। सिनेमा हॉल अच्छा खासा बिजनेस कर रहे हैं, कई मोबाइल कंपनियों के माडल आउट ऑफ स्टाक हैं और एप्पल जैसे महंगे फोन का भी नया माडल लांच होते हुए ही आउट ऑफ स्टाक हो जाता है। ऑनलाइन शॉपिंग इंडस्ट्री अपने बूम पर है, मगर लोगों को कह रहे हैं कि पट्रोल एक रुपया बढ़ने से उनकी कमर टूट गई है।