सम्पादकीय

" नवां पंजाब भाजपा दे नाल" नारे को कितना समर्थन मिलेगा पंजाब में ?

Gulabi
31 Oct 2021 12:52 PM GMT
 नवां पंजाब भाजपा दे नाल नारे को कितना समर्थन मिलेगा पंजाब में ?
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कैप्टन अमरिंदर सिंह के कांग्रेस छोड़ने के बाद पंजाब बीजेपी में फिर से उत्साह जाग गया है

संयम श्रीवास्तव।

कैप्टन अमरिंदर सिंह के कांग्रेस छोड़ने के बाद पंजाब बीजेपी में फिर से उत्साह जाग गया है. किसान आंदोलन के प्रभाव के चलते पार्टी नेताओं को अलग-थलग पड़ने की चिंता सता रही थी पर पार्टी को लगता है कि जैसे उसे प्राणवायु मिल गई है. केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने पंजाब यात्रा के बाद जैसा खम ठोका है उससे तो कम से कम यही लगता है. शेखावत ने एक तरफ तो केंद्र सरकार द्वारा पंजाब के लिए किए गए काम को गिनाया गया दूसरी ओर पंजाब की सभी विधानसभा सीटों पर बीजेपी की तैयारियों का ऐलान किया. इस बीच समान विचारधारा के नाम पर अमरिंदर के साथ संभावनाओं को नकारा भी नहीं गया.

यह सही है कि अमरिंदर सिंह ने भी बीजेपी के साथ किसी भी तरह संभावनाओं से इनकार नहीं किया है पर हाल ही में जिस तरह नई दिल्ली में बीजेपी की ओर से उनको अवॉयड किया गया है उससे लगता है कि अब बीजेपी कैप्टन को उतना महत्व नहीं दे रही है. हालांकि बीजेपी के बड़े नेताओं से अमरिंदर के मुलाकात में व्यवधान के कई मायने हो सकते हैं इसलिए अभी संशय की बात करना ठीक नहीं है. पर इतना तय है कि कैप्टन अमरिंदर अगर बीजेपी के साथ आते हैं तो पंजाब में जीत का सुख भले न मिले, पर कम से कम मंच तो मिल ही जाएगा. इस बीच " नवां पंजाब भाजपा दे नाल" नारा देकर बीजेपी ने अपने इरादे स्पष्ठ कर दिए हैं.

नया नारा, नई स्ट्रेटेजी पर पार्टी को भरोसा
किसान आंदोलन के बाद पंजाब में भारतीय जनता पार्टी के नेता और कार्यकर्ता किसानों के टार्गेट पर हैं. कई विधायकों और नेताओं के साथ किसानों के दुर्व्यवहार की खबरें आ चुकी हैं. नेताओं का सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत करना दूभर हो गया है. पर एक बार फिर बीजेपी नए नारे'नवां पंजाब-भाजपा दे नाल' के साथ चुनावी मोड में आ गई है. हालांकि पार्टी की राज्य इकाई को यह भरोसा निश्चित तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के जुबानी सपोर्ट पर आई है. अगर अमरिंदर से वाकई समझौतै होता है तो बीजेपी के लिए एक बहुत बड़ा सहारा मिलने की उम्मीद है.
भाजपा के पंजाब चुनाव प्रभारी और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने पंजाब आकर राज्य के नेताओं से लंबी बातचीत के बाद कहा कि पार्टी राज्य विधानसभा चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार है. पार्टी कार्यकर्ता 'नवां पंजाब-भाजपा दे नाल' नारे के साथ राज्य भर में घूमेंगे और नशा माफिया से मुक्ति तथा भ्रष्टाचार के खात्मे के संकल्प के साथ चुनाव में वोट मांगेंगे. शेखावत ने कहा कि राज्य की जनता कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी से दुखी हो चुकी है. भारतीय जनता पार्टी प्रदेश की सभी 117 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

पार्टी को केंद्र के कामों पर भरोसा
पिछले 7 वर्षों में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पंजाब के लोगों के लिए कई ऐतिहासिक काम किए हैं. 1984 के दंगाइयों को एसआईटी बनाकर सजा दिलवाना हो या श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर बनाना, काली सूची को खत्म करना, लंगर को जीएसटी से बाहर करना, श्री हरमंदिर साहिब को एफटीआरए देना, बठिंडा में एम्स, अमृतसर में आईआईएम, संगरूर और फिरोजपुर में पीजीआई के सैटेलाइट सेंटर, दो नए एयरपोर्ट, टूरिज्म के नए सर्किट आदि की घोषणा को पार्टी भुनाना चाहती है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह केंद्र की बीजेपी सरकार का हमेशा से सपोर्ट करते रहे हैं. जाहिर है कि मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उनका सुर मिलाना कुछ ज्यादा ही होना था. मामला चाहे बीएसएफ का दायरा बढ़ाने का हो या किसान आंदोलन का अमरिंदर खुलकर बीजेपी सरकार के साथ हैं. बीएसएफ का दायरा बढ़ाने के विरोध में पंजाब सरकार ने पहले सर्वदलीय बैठक बुलाई, जिसमें तमाम गैरभाजपाई दलों ने शिरकत की पर कैप्टन नदारद रहे.

हिंदू वोटों का खेल
दरअसल कैप्टन और बीजेपी दोनों का आधार पंजाब के 38.5 फ़ीसदी हिंदू वोटर्स रहे हैं. कैप्टन कांग्रेस में रहकर हिंदू वोटर्स के बल पर ही सत्ता में आ रहे थे. दरअसल बीजेपी का गठबंधन अकालियों के साथ होने के चलते हिंदू वोट कांग्रेस के साथ जाते थे. उम्मीद की जा रही है कि अकालियों से गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी के साथ आएंगे हिंदू वोटर्स. इसके साथ ही अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह और बीजेपी का साथ हो जाता है तो हिंदुओं के शत-प्रतिशत वोट पर दावा कर सकती है पार्टी. दरअसल शिरोमणि अकाली दल के साथ गठजोड़ में रहते हुए बीजेपी ने ग्रामीण पंजाब में अपनी पैठ बनाने की खूब कोशिश की. अकाली दल ने कई बार इसके लिए बीजेपी को चेताया भी. लेकिन आरएसएस के चलते बीजेपी ने अपना अभियान जारी रखा. ये भी कहा जाता है कि इस अभियान के चलते पहले से ही तय था कि बीजेपी और अकालियों का गठबंधन टूटेगा, क्योंकि बीजेपी महाराष्ट्र की तरह अब पंजाब में भी बड़े भाई के भूमिका में आने के सपने देख रही थी. अकाली दल को किसान आंदोलन का बहाना मिल गया बीजेपी से अलग होने का. सभी जानते हैं कि राज्य की 45 शहरी सीटों पर हिंदू या तो बहुसंख्यक हैं या फिर हार जीत का फैसले को प्रभावित करते रहे हैं.

क्या अमरिंदर से खेल रही है बीजेपी
कैप्टन अमरिंदर की मुश्किल ये है कि जब तक मुख्यमंत्री थे सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली आते थे पर वो नहीं मिलती थीं, गृहमंत्री अमित शाह जरूर मिल लेते थे. मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद दिल्ली आते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से मिलने पर अब ये लोग नहीं मिलते. बताया जा रहा है कि दिल्ली में अपने साथ कई नेताओं को लेकर कैप्टन दिल्ली में कैंप कर रहे हैं. कहा जा रहा कि किसान आंदोलन के हल के लिए वे गृहमंत्री अमित शाह से अहम मुलाकात होने वाली है. अब जो भी है पिछले 3 बार से कैप्टन दिल्ली आ रहे हैं पर उनकी किसी से मुलाकात नहीं हो पा रही है.
दरअसल बीजेपी भी अब फूंक-फूंक कर पंजाब में कदम रख रही है. बीजेपी को पंजाब में चुनाव जिताने के हैसियत में होंगे कैप्टन अमरिंदर सिंह तभी बीजेपी उन्हें घास डालेगी. वैसे भी कांग्रेस पार्टी नेताओं के टूटकर अमरिंदर सिंह के साथ आने की जितनी उम्मीद थी वो पूरी नहीं हो सकी है. दूसरे अमरिंदर किसान आंदोलन की धार कितना कम कर पाते हैं इस पर भी बीजेपी के साथ गठबंधन का भविष्य तय करेगा. अमरिंदर भी अगर अपनी नई पार्टी बना लेते हैं और बीजेपी के साथ गठबंधन करते हैं तो बिना सीएम कैंडिडेट के वे मानेंगे नहीं . अब ऐसे समय बीजेपी कैप्टन अमरिंदर सिंह को कितना मान देती है यह देखने वाली बात होगी.


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