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इमरान खान भले ही एक महान क्रिकेटर रहे हों और अपने देश को वन डे का विश्व कप दिलवाया हो, लेकिन
Faisal Anurag
इमरान खान भले ही एक महान क्रिकेटर रहे हों और अपने देश को वन डे का विश्व कप दिलवाया हो, लेकिन राजनीतिक पिच पर उनके पांव पूरी तरह टिक नहीं पा रहे हैं. इमरान खान ने पहले विदेशी साजिश का आरोप लगाया और गुरूवार की रात पाकिस्तानियों को टीवी पर सम्बोधित करते हुए साजिशकर्ता के रूप में अमेरिका का नाम ले लिया.यानी अमेरिका ही वह विदेशी ताकत है जो विपक्ष के साथ मिल कर उन्हें हटाने का षडयंत्र कर रहा है.इमरान खान के इस आरोप ने राजनैतिक हंगामा खड़ा कर दिया है.
एक ओर अमेरिका ने इमरान के आरोप का खंडन किया हैं वहीं पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी राजदूत को तलब कर संकेत दिया है कि मामला खंडन से आगे जा चुका है. विदेशी ताक़त के दख़ल का हवाला देते हुए इमरान ख़ान ने कहा है कि अमेरिका चाह रहा कि अगर यह अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले सत्ता में आ जाएं तो सबकुछ ठीक हो जाएगा. एक दस्तावेज का हवाला देते हुए इमरान ख़ान ने कहा, "यह एक आधिकारिक दस्तावेज़ है. जिसमें यह कहा गया है कि अगर इमरान ख़ान प्रधानमंत्री रहते हैं तो हमारे आपके साथ(यानी पाकिस्तान) संबंध ख़राब हो जाएंगे और आपको मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.
"इमरान खान ने अपने भाषण में अमेरिका का नाम लेकर यह दिखाने का प्रयास किया कि वह महाशक्तियों से नहीं डरते. पाकिस्तानी विपक्ष ने इमरान खान के आरोप को संभावित हार की बौखलाहट करार दिया है. गुरूवार को एसेंबली की बैठक में 174 सदस्य विपक्ष के साथ बैठे देखे गए. बहुमत के लिए 172 की ही जरूरत है. यानी इमरान खान ने अपना बहुमत खो दिया है. माना जा रहा है कि इमरान भविष्य की राजनीति की लड़ाई की दिशा तय कर रहे हैं. एक ओर जहां वे रियासते मदीना के बहाने इस्लाम का कार्ड खले रहे हैं जो विपक्ष के नेताओं से उन्हें भिन्न साबित करे, वहीं दूसरी ओर दुनिया को यह बताना चाह रहे हैं कि पहली बार पाकिस्तान की एक सरकार स्वतंत्र विदेश नीति पर चल रही थी और नतीजा यह हुआ कि उसे हटाने की साजिश को अंजाम दिया जा रहा है. वैसे अमेरिका पर साजिश कर सरकार गिराने का यह कोई पहला आरोप नहीं है.
लातिनी अमेरिका और अफ्रीका की अनेक सरकारों का भविष्य अमेरिका ही निर्धारित करता रहा है. अर्जेटींना की पहली निर्वाचित समाजवादी सल्वादोर आयेदें सरकार को अमेरिका के निर्देश पर ही सैन्य हस्तक्षेप से बेदखल किया गया था और आयेंदे की हत्या राष्ट्रपति निवास में ही कर दी गयी थी. हाल ही में वेनेजुएला में वहां की चुनी गयी समाजवादी मुदरो सरकार के खिलाफ अमेरिकी इशारे पर विपक्ष की भूमिका की चर्चा हुयी. वेनेजुएला में तो एक फर्जी राष्ट्रपति तक का एलान कुछ समय पहले कर दिया गया था. पूर्वी यूरोप के छोटे देशों में सरकारों का भविष्य पश्चिमी यूरोप और अमरिका के इशारों पर तय होते हैं. यूक्रेन भी इसका एक उदाहरण माना जाता है. लोकतंत्र के नाम पर सरकारों को बैठाने और हटाने का खेल बताता है कि छोटे देशों के सैन्य महत्व को लेकर महाशक्तियां किस तरह सक्रिय रहती हैं.
दरअसल विदेशी साजिश और दखल के आरोप को आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता. इसका एक बड़ा कारण दुनिया की एकध्रुवीय संकट से भी पैदा हुयी है. 1990 के बाद की दुनिया में अमेरिका की एकतरफा चली है. लेकिन पिछले दस सालों में चीन और रूस की बढ़ती आर्थिक ताकत वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी है. यूक्रेन में रूस के हस्तक्षेप के बाद तो एक बहुध्रुवीय दुनिया फिर से बनती नजर आ रही है और एक नए किस्म के शीतयुद्ध का माहौल पुख्ता हुआ है.यूक्रेन युद्ध के सवाल पर भारत,पाकिस्तान और चीन ने रूस की निंदा नहीं की और संयुक्त राष्ट्र संघ में वोट नहीं दिया.
अफगानिस्तान में डोनाल्ड ट्रंप के अंतिम दौर से ही अमेरकिा पाक के संबधों में तनाव है. जो बाइडन ने तो चुनाव जीतने के बाद इमरान को शिष्टाचार फोन भी नहीं किया. लेकिन इन तमाम बातों की रोशनी में इमरान खाने के आरोप को लेकर पाकिस्तान की मीडिया में खूब चर्चा हो रही है. एक चैनल पर पाकिस्तान के इमरान विरोधी पत्रकार हामीद मीर का यह कथन महत्वपूर्ण है कि इमरान खान जिस दस्तावेज का उल्लेख कर रहे हैं उसे खारिज करना जल्दबाजी का सौदा साबित होगा. इमरान खान रविवार के बाद प्रधानमंत्री रहेंगे या नहीं यह तय हो जाएगा. लेकिन इमरान का विदेशी यानी अमेरिकी साजिश का आरोप पाक राजनीति के केंद्र में बना रहेगा.
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