सम्पादकीय

कितनी बदलेगी सियासत

Subhi
11 Aug 2022 3:06 AM GMT
कितनी बदलेगी सियासत
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बिहार में मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार और उप-मुख्यमंत्री के रूप में तेजस्वी यादव के शपथ ग्रहण के साथ ही एनडीए के हाथ से एक अहम राज्य निकल गया। करीब डेढ़ महीना पहले महाराष्ट्र में शिवसेना के एक धड़े का समर्थन लेकर बीजेपी ने वहां की महाविकास आघाड़ी सरकार गिराई थी।

नवभारत टाइम्स: बिहार में मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार और उप-मुख्यमंत्री के रूप में तेजस्वी यादव के शपथ ग्रहण के साथ ही एनडीए के हाथ से एक अहम राज्य निकल गया। करीब डेढ़ महीना पहले महाराष्ट्र में शिवसेना के एक धड़े का समर्थन लेकर बीजेपी ने वहां की महाविकास आघाड़ी सरकार गिराई थी। महाराष्ट्र जैसे एक प्रमुख राज्य पर फिर से कब्जा करना उसकी बड़ी सफलता थी तो बिहार काबिहार में बीजेपी की मुश्किलहाथ से निकलना उतना ही बड़ा झटका है। महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं तो बिहार में 40 सीटें। पिछले लोकसभा चुनावों में बिहार की इन 40 में से 33 सीटें जेडीयू-बीजेपी को मिली थीं। जाहिर है, 2024 में महागठबंधन से लोहा लेते हुए इतनी सीटें हासिल करना बीजेपी के लिए मुश्किल होगा। इसके अलावा नीतीश कुमार के रूप में विपक्ष को एक प्रभावशाली चेहरा भी मिला है, जिसके अपने फायदे हैं। जाहिर है, इन सबसे विपक्ष का मनोबल बढ़ा है। इसी साल मार्च में पांच राज्यों में हुए चुनावों में बीजेपी ने यूपी, गोवा और उत्तराखंड में सत्ता बनाए रखी थी, तब लगा था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सामने शायद ही कोई टिक पाएगा। इस स्थिति में बिहार की सत्ता में महागठबंधन की वापसी के बाद कुछ बदलाव हुआ है।

मार्च में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के बाद विपक्षी खेमे में जो निराशा घर कर गई थी, बिहार में बीजेपी के सत्ता से बाहर होने के बाद वह जरूर कम होगी। इसी साल गुजरात और हिमाचल में विधानसभा चुनाव होने हैं। दोनों ही राज्यों में बीजेपी सत्ता में है। बिहार के बाद हो सकता है विपक्ष इन राज्यों में अधिक ताकत से उसका मुकाबला करे। वैसे, बिहार में हुए बदलाव ने बीजेपी को भी एक मौका दिया है। महागठबंधन के सत्ता में आने के बाद वह वहां विपक्ष की अकेली आवाज बन गई है। बीजेपी को यह भी लगता है कि जेडीयू और आरजेडी की कास्ट पॉलिटिक्स का तोड़ हिंदुत्व हो सकता है। पार्टी का दावा है कि बिहार में हिंदुत्व की अपील बढ़ी है। तथ्य यह भी है कि नीतीश की लोकप्रियता में भी पहले की तुलना में कमी आई है। पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी अलायंस के मजबूत प्रदर्शन का यही कारण था। अब आरजेडी, नीतीश के साथ है, इसलिए यह सवाल भी मौजूं है कि कहीं लोकसभा चुनाव में नीतीश के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का महागठबंधन को नुकसान ना उठाना पड़े! इसके साथ, सत्ता छिन जाने की वजह से बीजेपी के आगामी लोकसभा चुनाव में बिहार में कमजोर प्रदर्शन का अनुमान लगाना भी अभी जल्दबाजी होगी। उसकी वजह यह है कि लोकप्रियता के मामले में अभी देश में कोई भी नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला नहीं कर सकता। इसके बावजूद यह कहना गलत नहीं होगा कि जातीय समीकरण महागठबंधन के पक्ष में है, जिससे बिहार की राजनीति तय होती आई है।


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