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विश्व महिला दिवस को गुजरे कुछ रोज हो गए हैं
विश्व महिला दिवस को गुजरे कुछ रोज हो गए हैं. हर साल की तरह इस बार भी मुझे लगा कि इस बार लोग खुद से जरूर यह वादा करेंगे कि महिलाएं अपने देश और लोगों के बीच सुरक्षित रहेंगी. रेप, दहेज, कन्या भ्रूण हत्या जैसे शब्द अब सुनने को नहीं मिलेंगे. लेकिन मैं हर बार की तरह फिर निराश हूं. जिस दिन महिलाओं के सम्मान को लेकर समारोह कर रहे थे उनकी आजादी की कसमें खा रहे थे, उसी दिन बिहार की राजधानी पटना से रेप का एक ऐसा केस सामने आता है. जो महिला सुरक्षा के हर वादे को एक सिरे से खारिज करता है.
पटना के वूमेंस कॉलेज में पढ़ने वाली छात्रा को पांच लड़के पिस्टल दिखाकर कार में जबरन बैठाते हैं और छात्रा के साथ न केवल रेप करते हैं बल्कि उसका अश्लील वीडियो बनाकर उसकी मांग में सिन्दूर भी भर देते हैं. यह तो सिर्फ एक घटना है आंकड़ों के अनुसार भारत में औसतन हर दिन 88 बलात्कार होते हैं, जिनमें से सजा सिर्फ 30 प्रतिशत लोगों को ही मिल पाती है. मतलब अगर अनुपात निकाला जाए तो 62 बलात्कार सिर्फ लड़की के लिए सजा होते हैं. यह तो रही लड़कियों की सुरक्षा की बात.
महिलाओं को प्रॉपर्टी और निवेश में समझा जाता कमजोर
देवियों को नौ दिन पूजने वाले हमारे देश में महिलाओं को फैसले लेने की कितनी आजादी है सांख्यिकी मंत्रालय का एक सर्वे इसकी भी पोल खोलता है. सर्वे में कहा गया है कि महिलाओं की घरेलू सामान और कपड़े खरीदने तक तो खूब चलती है. लेकिन बच्चों को कौन से स्कूल में पढ़ाया जाए, कहा प्रॉपर्टी और निवेश किया जाए इस मामले में उन्हें थोड़ा कमजोर ही समझा जाता है. समझा जाता है की उनको इसकी कोई जानकारी नहीं होती है. सर्वे में यह भी कहा गया है कि अधिकतर महिलाओं को शहर से बाहर जाने के लिए पुरुष से अनुमति लेनी होती है.
खैर मैं देश की राजधानी दिल्ली में रहती हूं तो यहां के बारे में आपको बता दूं कि यूएन के एक सर्वे के अनुसार दिल्ली जैसे हाई एक्सपोजर वाले शहर में 95 फीसदी लड़कियां सार्वजनिक स्थानों पर खुद को सुरक्षित नहीं मानती हैं. सोचिए रात की स्थिति कितनी भयावह होगी. आज भी न जाने कितनी महिलाएं घर से निकलते समय अपने कपड़े और समय यह सोचकर देखती हैं कि कही उनके कपड़े और समय उनकी सुरक्षा के लिए खतरा तो नहीं
महिलाओं को न जाने कितनी दी जाती हैं हिदायत
आज भी अगर महिलाएं अपने हक की बात करती हैं तो उनको जुबान न चलाने से लेकर न जाने कितनी हिदायत दे दी जाती हैं. जॉब करने वाली अधिकतर लड़कियां घर और दफ्तर दोनों का काम करती हैं. कितने पुरुष ऐसा करते हैं? विश्व महिला दिवस के दिन जिस तरह से हम महिलाओं के अधिकारों और उनकी सुरक्षा को लेकर सजग रहते हैं कब हम हर रोज उसी तरह से जागरूक होंगे? कब हम दिन रात की सुरक्षा के भेद की खत्म कर पाएंगे. अखिर कब हम रेप जैसे शब्द को समाज से बर्खास्त कर पाएंगे?
अमेरिकी लेखक और फिल्म निर्माता जैक्सन कार्ट्ज ने एक बार अपने टेड टॉक में कहा था हम कहते हैं कि पिछली साल कितनी औरतों के साथ बलात्कार हुआ है, हम यह क्यों नहीं कहते कि बीते साल कितने मर्दों ने औरतों के साथ बलात्कार किया है. बोलने से नहीं अमल करने से बदलाव होते हैं.
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