सम्पादकीय

एंटीलिया केस में अभी और कितने बड़े नाम आएंगे सामने, क्या 'हमाम में सब नंगे' की कहावत होगी सच?

Gulabi
22 March 2021 9:16 AM GMT
एंटीलिया केस में अभी और कितने बड़े नाम आएंगे सामने, क्या हमाम में सब नंगे की कहावत होगी सच?
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यह तो सभी जानते हैं कि

यह तो सभी जानते हैं कि पहले राजनीति (Politics) का अपराधीकरण हुआ और फिर अपराधियों (Criminals) का राजनीतिकरण. यह भी पता है कि पुलिस के अपराधीकरण का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि अंडरवर्ल्ड (Underworld) का, लेकिन अगर यह जानना है कि पुलिस का राजनीतिकरण कब और कहां शुरू हुआ तो इसके लिए मुंबई से आगे देखने और सोचने की ज़रुरत नहीं है. 25 फरवरी को खबर आई कि उद्योगपति मुकेश अम्बानी (Businessman Mukesh Ambani) के घर के नजदीक एक बारूद से भरी गाड़ी मिली जिसके अन्दर एक धमकी भरा पत्र भी था, सभी ने सोचा कि यह आतंकवादियों की एक चेतावनी हो सकती है कि अभी भी वह मनचाहे स्थान और मनचाहे समय पर धमाका कर सकते हैं. दिल्ली के तिहाड़ जेल से एक मोबाइल भी बरामद हुआ जिससे इस आतंकी धमकी को अंजाम देना का क्लेम किया गया था.


पर एक लाश की बरामदगी ने पुरे केस को एक नया ट्विस्ट दे दिया. लाश उस गाड़ी के मालिक की थी जो मुकेश अम्बानी के घर के बहार मिला थी. केस की जांच, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपी गई. उसके बाद एक जासूसी उपन्यास की तरह एक के बाद एक नाटकीय खुलासे होते गए. मुंबई पुलिस ऑफिसर सचिन वाजे की गिरफ़्तारी, फिर मुंबई पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह का तबादला, परमवीर सिंह का एक पत्र जिसने महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख को लपेटे में ले लिया और अब शक की सुई महाराष्ट्र के सुपर हैवीवेट नेता और एनसीपी प्रमुख शरद पवार पर जा कर अटक गयी है.


राजनीतिक दलदल में फंसा केस
बारूद से भरी गाड़ी की बरामदगी और गाड़ी के मालिक की हत्या का पवार से कुछ लेना देना नहीं है. पर एक आपराधिक मामला राजनीति के दलदल में जा कर फंस गया है, जिसमे हो सकता है कि बड़े-बड़े नेताओं की मिट्टीपलीद हो जाए. परमवीर सिंह ने गृहमंत्री अनिल देशमुख पर आरोप लगा दिया कि उन्होंने सचिन वाजे को हर महीने मुंबई के बार और रेस्टोरेंट से 100 करोड़ रुपयों की उगाही का काम सौपा था. सवाल जायज है कि अगर परमवीर सिंह को यह पता था तो पद पर रहते हुए वह चुप क्यों थे?

खोई हुई शाख पाना चाहते थे वाजे
सबसे मज़ेदार बात यह है कि सचिन वाजे एक फर्जी एनकाउंटर केस में निलंबित थे, पर वर्तमान महाराष्ट्र सरकार ने निलंबन का आदेश वापस ले कर पिछले साल उनकी पद पर बहाली कर दी थी. कहा गया वाजे ने बारूद से भरी गाड़ी मुकेश अम्बानी के निवास एंटीलिया के बहार इसलिए खड़ा किया था ताकि वह इस केस के इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर बन कर फिर से अपनी खोई हुई साख वापस पा सकें. निलंबन के दौरान वाजे शिवसेना में शामिल हो गए थे और पैसा उगाही का काम उन्हें एनसीपी के एक बड़े नेता ने सौंपा था.

क्या 100 करोड़ देशमुख अपने लिए ले रहे थे?
महाराष्ट्र का गृह मंत्रालय एनसीपी को चाहिए था, जो मिलीजुली सरकार में मिला, और गृहमंत्री बने शरद पवार के एक चहेते नेता. यह सोचना कि देशमुख 100 करोड़ रुपये हर महीने अपने लिए ले रहे थे, गले से नीचे नहीं उतरती, खास कर यह जानते हुए की पवार परिवार देश के सबसे धनाढ्य राजनीतिक परिवारों में यूं ही नहीं शामिल है, और भ्रष्टाचार के मामले में पवार या उनका परिवार दूध का धुला नहीं है. पवार की सांसद बेटी सुप्रिया सुले ने ऐसे ही नहीं एक साल में 9 एकड़ ज़मीन पर 12.4 करोड़ रूपये की कमाई की थी!

उद्धव ठाकरे पर छोड़ा फैसला
वाजे का शिवसेना से जुड़ा होना और एनसीपी के लिए मुंबई के बार और रेस्टोरेंट से पैसों की उगाही का आरोप इस केस को दिन प्रतिदिन उलझाता जा रहा है. एनसीपी की सोमवार को एक उच्चस्तरीय बैठक हुई, पवार ने आरोप को गंभीर बताया और देशमुख पर आखिरी फैसला मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर छोड़ दिया है. अभी तक सवाल सिर्फ यही किया जा रहा है कि परमवीर सिंह इतने दिनों तक चुप क्यों थे और ईमेल किस अकाउंट से भेजा गयै, जबकि किसी ने यह नहीं कहा है कि आरोप निराधार है.

हमाम में सब नंगे
पवार ने देशमुख को मंत्री पद से हटाने का फैसला नहीं किया और यह उम्मीद करना कि उद्धव ठाकरे देशमुख को मंत्रिमंडल से निकाल देंगे सही नहीं है. अगर वह ऐसा करते हैं तो या तो उनकी सरकार जाएगी या फिर यह भी संभव है कि देशमुख भी परमवीर सिंह की तरह मुंह खोल दें और पवार तथा ठाकरे भी उस दलदल में फंसते नज़र आएं. वैसे भी मुंबई पुलिस का राजनीतिकरण उसी समय शुरू हो गया था जब उद्धव ठाकरे पर आरोप लगाने वालों पर मुंबई पुलिस ने एक के बाद एक केस ठोकना शुरू कर दिया था. लगता है कि वह कहावत की 'इस हमाम में सभी नंगे हैं', मुंबई में ही दिखने वाला है.


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