सम्पादकीय

केरल में आखिर कितने जेहाद?

Deepa Sahu
11 Oct 2021 6:31 PM GMT
केरल में आखिर कितने जेहाद?
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पिछले सप्ताह केरल फिर गलत वजहों से चर्चा में था।

एस श्रीनिवासन, वरिष्ठ पत्रकार। पिछले सप्ताह केरल फिर गलत वजहों से चर्चा में था। दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर उस समय सुर्खियों में आ गए, जब उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने के लिए केरल के छात्र 'माक्र्स जेहाद' मतलब अंक जेहाद कर रहे हैं। उक्त प्रोफेसर को केरल बोर्ड से 100 प्रतिशत अंकों के साथ पास होने वाले और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने वाले केरल के छात्रों से समस्या है। उनके कहने का मतलब यह था कि केरल के वामपंथी विचारधारा वाले छात्र कॉलेज प्रवेश के माध्यम से दिल्ली विश्वविद्यालय में 'वैचारिक स्थान' हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, प्रोफेसर के इस अजीबोगरीब दावे का कोई आधार नहीं है। पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि उन्होंने एक प्रवृत्ति देखी है, जहां केरल के छात्र बड़ी संख्या में दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश मांग रहे हैं, इससे उन्हें 'आशंका' हुई और वह मात्र सचेत कर रहे हैं। वैसे प्रोफेसर के पास अपने दावे का समर्थन करने के लिए कोई आंकड़ा नहीं था। उन्होंने कहा कि अधिकारी ही उनकी आशंकाओं की जांच करें।

तथ्य यह है कि केरल ही नहीं, अन्य राज्य बोर्डों के छात्रों ने भी अपने अंतिम स्कूली परीक्षा में 100 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं, उनमें से कुछ भाजपा शासित व अन्य राजनीतिक विपक्ष द्वारा शासित राज्य हैं। हालांकि, यह अकल्पनीय है कि एक राज्य बोर्ड एक विश्वविद्यालय के खिलाफ साजिश कर रहा होगा, यह दावा या आरोप सिर्फ भ्रम व कट्टरता ही दर्शाता है। उन्होंने इसे 'माक्र्स जेहाद' कहना क्यों चुना, क्योंकि यह 'लव जेहाद' के विपरीत एक 'तटस्थ शब्द' है। दरअसल, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर केवल वामपंथ का वैचारिक विरोध कर रहे हैं। भारतीय राजनीति का ध्रुवीकरण अब स्कूल पास छात्रों के कैंपस में प्रवेश से पहले ही उनका राजनीतिकरण करने की कोशिश करता दिख रहा है।
वाम और कांग्रेस नेताओं ने इस घटना की कड़ी निंदा की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इस विवाद से खुद को अलग कर लिया है, लेकिन यह पहली बार नहीं है, जब केरल को इतने गहरे रंगों से रंगा जा रहा है। केरल एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां वाम सरकार सत्ता में है और स्पष्ट रूप से वाम विरोधियों के आंख की किरकिरी है।
नतीजतन, जेहाद के कई ऐसे अन्य आख्यान भी, जिनमें से अधिकांश साफ तौर पर निराधार हैं, वामपंथ को कमजोर करने के लिए गढ़े जा रहे हैं। कथित लव जेहाद शब्द केरल में ही पैदा हुआ था। कहा जाता है, हिंदू लड़कियों के साथ मुस्लिम लड़के प्यार का ढोंग करते हैं और जब वे जाल में फंस जाती हैं, तब उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता है। जब उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए कानून बनाए गए, तब भी लव जेहाद का कोई तथ्यात्मक आधार नहीं था। लगता है, इसके जरिये अंतर-धार्मिक विवाहों को कलंकित करने का एक मकसद भर पूरा करने की कोशिश की गई है।
इसी तरह, कुछ दक्षिणपंथ समर्थकों की धारणा में केरल मानो आईएसआईएस जेहादियों की मांद है। पिछले सप्ताह राष्ट्रीय जांच एजेंसी या एनआईए ने केरल से कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया, जो राज्य में सक्रिय इस्लामिक स्टेट के 'स्लीपर सेल' बताए गए। ऐसी खबरें भी राज्य के प्रति गलत धारणा को मजबूत करती हैं, हालांकि, इस्लामिक स्टेट से जुड़े संदिग्धों को भाजपा शासित कर्नाटक में भी गिरफ्तार किया गया है।
उधर, पिछले सप्ताह उत्तर भारत में दो संदिग्ध आतंकियों की माता और पत्नी के खिलाफ भी पुलिस प्राथमिकी दर्ज कर गिरफ्तार किया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि उन्होंने लखनऊ में एक नहर के किनारे बैठी महिलाओं और उनके बच्चों को हिरासत में ले लिया, क्योंकि वे अजीब भाषा में बात कर रही थीं। वे न तो अंग्रेजी जानती हैं और न हिंदी। इससे पहले यूपी पुलिस ने दो संदिग्धों को गिरफ्तार किया था, जो चरमपंथी इस्लामिक संगठन 'पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया' के पदाधिकारी थे। दोनों जेल में बंद थे और उनके रिश्तेदार उनसे मिलने केरल से लखनऊ गए थे। बाद में पुलिस ने उन्हें कथित रूप से आरटीपीसीआर रिपोर्ट 'फर्जी' होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। दरअसल, केरल अपनी अनूठी जन-सांख्यिकी के कारण बहुत से लोगों की नजर में संदिग्ध है। राज्य में 52 प्रतिशत हिंदू आबादी है, शेष ईसाई व मुस्लिम हैं। इस अनूठी जन-सांख्यिकी ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ और सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ को एकाध अपवाद छोड़कर बारी-बारी से मौका दिया है। हाल में हुआ चुनाव भी अपवाद है, जब वामपंथी गठजोड़ सत्ता बनाए रखने में कामयाब रहा है।
इस बार पारंपरिक रूप से कांग्रेस समर्थक ईसाइयों का एक वर्ग यूडीएफ से अलग होकर एलडीएफ का समर्थन कर रहा था। परंपरागत रूप से जब अधिकांश ईसाई और मुसलमानों ने यूडीएफ का समर्थन किया, तब वाम मोर्चे को हिंदू आधार का बड़ा समर्थन मिला। समर्थन आधार में इस मामूली बदलाव ने वामपंथियों की चुनाव जीतने में मदद की। ईसाइयों के एक तबके को शायद संदेह था कि यूडीएफ की वापसी के साथ मुस्लिम नेताओं को बढ़त मिल सकती है, वे मंत्री बन सकते हैं और सत्ता का आनंद ले सकते हैं। वे इसे रोकना चाहते थे।
दरअसल, तुर्की में एक प्रसिद्ध चर्च को मस्जिद में बदलने से भी केरल में दो समुदायों के बीच तनाव बढ़ा है। मामला तब और बदतर हो गया, जब केरल में चर्चों के बिशप और पुजारियों ने अपने अनुयायियों को लव जेहाद के बारे में चेतावनी देना शुरू कर दिया। कहा गया कि युवा ईसाई महिलाएं मुस्लिम पुरुषों का लक्ष्य थीं। इससे राज्य में अचानक आक्रोश पैदा हो गया, हालांकि, वाम मोर्चा सरकार ने इन दावों को खारिज कर दिया। पर राज्य के बाहर, विशेषकर उत्तर भारत में, इसने लव जेहाद की गैर-मौजूद अवधारणा को और मजबूत करने में मदद की। दक्षिणपंथियों ने बताया कि देखो, अब ईसाई भी मुस्लिमों का विरोध कर रहे हैं। दिलचस्प बात है कि नन भी अपने वरिष्ठों द्वारा फर्जी प्रचार के खिलाफ बहादुरी से खड़ी हो गईं। नन ने 'लव जेहाद' और 'नारकोटिक्स जेहाद' जैसे प्रचार का भी विरोध किया।
दक्षिणपंथी दलों और उनके समर्थकों को अपने प्रतिद्वंद्वियों का वैचारिक रूप से विरोध का पूरा अधिकार है, लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि धर्म के आधार पर समुदायों पर दाग लगाने से कट्टरता को बढ़ावा मिलता है, जो किसी आपदा पर ही समाप्त होती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


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