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सम्पादकीय
हमारे जीवन के अधिकार में कैसे दखल दे रहा है लाउडस्पीकर, शोर का स्वास्थ्य पर पड़ता प्रतिकूल प्रभाव
Gulabi Jagat
15 April 2022 5:00 AM GMT
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वर्तमान में अनेक प्रकार के प्रदूषण निरंतर बढ़ते जा रहे हैं
लालजी जायसवाल। वर्तमान में अनेक प्रकार के प्रदूषण निरंतर बढ़ते जा रहे हैं। वायु प्रदूषण से तो मानवता जूझ ही रही है, अनेक कारणों से ध्वनि प्रदूषण भी लगातार बढ़ता जा रहा है। इससे जन स्वास्थ्य के समक्ष खतरे बढ़ते ही जा रहे हैं। यातायात के साधनों से लेकर फैक्टरियों आदि तक से निकलने वाला ध्वनि प्रदूषण हमें इसलिए भी बर्दाश्त करना पड़ता है, क्योंकि विकास की वर्तमान परिभाषा को सार्थक करने के लिहाज से ऐसा काफी हद तक आवश्यक भी है, यह बात अलग है कि नवोन्मेष के माध्यम से अब इनमें भी ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा रहा है। इसके अलावा, कई ऐसे अन्य कारक भी हैं जिनसे ध्वनि प्रदूषण की गंभीरता बढ़ रही है।
ऐसे में धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर से जुड़े विवाद के साथ विचार मंथन भी शुरू हो गया है कि कहीं धर्म की आड़ में लाउडस्पीकर का बढ़ता चलन मानव के जीवन के अधिकार में खलल तो नहीं डाल रहा है। ध्यातव्य है कि जिस प्रकार देश का सभी विधान सभी लोगों पर समान रूप से लागू होता है, उसी प्रकार ध्वनि प्रदूषण संबधी विधान भी सभी पर समान रूप से लागू होना चाहिए। ईश्वर की आराधना में शोर-शराबे और लाउडस्पीकर जैसे आडंबर की क्या आवश्यकता? गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वर्ष 2020 में फैसला दिया कि अजान इस्लाम का एक हिस्सा है, लेकिन लाउडस्पीकर से अजान देना इस्लाम का हिस्सा नहीं है।
चिंता की बात यह है कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर ध्वनि प्रदूषण फैलाया जाता है जो वास्तव में हमारे सभ्य और शिक्षित समाज में चौंकाने वाला है। चूंकि लाउडस्पीकर यानी ध्वनि विस्तारक यंत्र एक हालिया वैज्ञानिक नवाचार है, इसलिए इस तरह के यंत्र के उपयोग का किसी भी पवित्र ग्रंथ में कोई उल्लेख नहीं मिलता है। हमें विदित होना चाहिए कि सबसे पहले मनुष्य आया फिर धर्म और उसके बाद लाउडस्पीकर जैसे यंत्र। इसलिए हकीकत है कि लाउडस्पीकर का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष किसी भी प्रकार से धर्म से कोई संबंध नहीं है। यह तो हम सबकी मानसिकता ही धीरे-धीरे ऐसी बनती गई कि मानो अब बिना लाउडस्पीकर के ईश्वर की पूजा आराधना ही नहीं की जा सकती।
लाउडस्पीकर और जीवन का अधिकार : शायद ही कभी हम सबने सोचा हो कि लाउडस्पीकर किसी भी व्यक्ति के जीवन के अधिकार में बाधा भी डालता है। मालूम होना चाहिए कि ध्वनि प्रदूषण जीवन के अधिकार से जुड़ा हुआ मामला है और संविधान के तहत प्रत्येक नागरिक को यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार वहीं रुक जाता है, जहां दूसरे व्यक्ति का अधिकार शुरू होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो कर्तव्य और अधिकार साथ-साथ चलते हैं। बता दें कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (1) ए और अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को बेहतर वातावरण और शांतिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है। लेकिन बढ़ता शोर आज मानव जीवन के साथ जीव-जंतु और पेड़-पौधों को भी प्रभावित करने के साथ जीवन के अधिकार में बाधा बन रहा है।
धार्मिक कार्यों के नाम पर ध्वनि प्रदूषण : अक्सर देखा जाता है कि लोग अपने आसपास बजने वाले लाउडस्पीकर या डीजे को गंभीरता से नहीं लेते हैं। इससे तेज आवाज को प्रसारित करने वालों का हौसला बढ़ता है और वह रात या दिन यानी कभी भी लाउडस्पीकर बजाने लगता है। मंदिरों में सुबह और शाम लाउडस्पीकर बजाना धार्मिक कृत्य माना जाता है, जबकि वास्तविकता में यह बच्चों के पढऩे का समय होता है। इसी प्रकार एक सवाल सदैव से उठता रहा है कि जिसे नमाज या पूजा भक्ति करनी होगी या जिसे रोजे में सुबह से पहले भोजन लेना होगा, उसे लाउडस्पीकर पर कहने का क्या औचित्य है? वैसे लाउडस्पीकर केवल मस्जिदों पर ही नहीं बजते, मंदिरों के साथ अन्य धार्मिक स्थलों पर भी खूब बजाए जाते हैं। फिलहाल अब धार्मिक संगठन के लोगों को सोचना होगा कि क्या ऐसे कृत्य समाज के लिए कल्याणकारी हैं? अगर नहीं, तो फिर लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध का सहयोग करना चाहिए, न कि उसका विरोध।
ध्वनि प्रदूषण पर लगाम के लिए प्रविधान : पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 15 को ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) नियमावली 2000 के नियम 5/6 के साथ पढऩे पर यह ध्वनि प्रदूषण संज्ञेय और गैर जमानती अपराध है, जिसमें पांच वर्ष तक की सजा और एक लाख रुपये तक के हर्जाने की व्यवस्था की गई है। मालूम हो कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रस्तावित ध्वनि प्रदूषण मानदंडों के उल्लंघन के लिए भारी जुर्माने को मंजूरी भी दी है। सीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार, लाउडस्पीकर और सार्वजनिक पता प्रणाली के दुरुपयोग के लिए उपकरण जब्त करने के अलावा दस हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया जा सकता है। एक हजार से अधिक केवीए क्षमता के डीजल जनरेटर से ध्वनि प्रदूषण से एक लाख का जुर्माना लगेगा और उपकरण भी सील किए जा सकते हैं। निर्माण स्थलों पर निर्धारित स्तर से परे शोर करने पर 50 हजार का जुर्माना और उपकरण जब्त करना संभव होगा।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पटाखे फोडऩे पर भी भारी जुर्माने का प्रविधान किया है। ध्यातव्य है कि रिहायशी इलाकों में पटाखे फोडऩे पर एक व्यक्ति पर हजार रुपये और साइलेंस जोन में तीन हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। साथ में, ध्वनि की सीमाएं भी निर्धारित की गई हैं। ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) 2000 के अंतर्गत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने चार अलग-अलग प्रकार के क्षेत्रों के लिए ध्वनि मानदंड रखा है। औद्योगिक क्षेत्र के लिए क्रमश: दिन व रात में 75 और 70 डेसिबल, वाणिज्यिक क्षेत्रों के लिए 65 और 55, आवासीय क्षेत्र के लिए 55 और 45 व शांत क्षेत्रों के लिए 50 व 40 डेसिबल की मात्रा निर्धारित की है।
ऐसा नहीं है कि भारत में विधायिका और कार्यपालिका ध्वनि प्रदूषण के खतरे से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। तमाम कानून बनाए गए हैं और कानून के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कार्यपालिका द्वारा नियम भी बनाए गए हैं। असली मुद्दा कानूनों को लागू करने का है। बहरहाल, जब भी कभी किसी चीज को धर्म से जोड़ दिया जाता है तो उसकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है और उस पर कार्रवाई करना कठिन हो जाता है। इसी वजह से कठोर कानून के बावजूद जनता को ध्वनि प्रदूषण से राहत नहीं मिलती दिख रही है। ऐसे में लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध के लिए एक देश एक कानून होना चाहिए और सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू भी होना चाहिए, क्योंकि धर्म के नाम पर किसी भी व्यक्ति के जीवन के अधिकार को नहीं छीना जा सकता। लगातार बढ़ता हुआ ध्वनि प्रदूषण जीवनशैली में बाधा खड़ी कर रहा है।
इसलिए अस्पताल और आवासीय क्षेत्रों के पास किसी प्रकार की धार्मिक गतिविधि, राजनीतिक रैली या विवाह समारोह आदि के जरिये शोर की अनुमति कदापि नहीं देनी चाहिए। केवल उन्हीं समूहों को अनुमति दी जानी चाहिए जो ध्वनि प्रदूषण प्रतिबंधों का पालन करने के लिए सहमत हों। वैसे उचित तो यही होगा कि सभी संप्रदाय के लोग लाउडस्पीकर को धर्म से जोड़ कर न देखें तथा इस पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने बाबत मिलकर पहल करें। हमें सदैव ध्यान रखना चाहिए कि लाउडस्पीकर हिंदू, मुस्लिम या किसी भी धर्म का प्रतिबिंब नहीं है, क्योंकि ईश्वर से जुडऩे के लिए किसी आधुनिक यंत्र की कोई दरकार नहीं होती है। इसलिए लाउडस्पीकर के त्याग अथवा उसकी ध्वनि को धीमा करने पर आपत्ति जताना सही नहीं है।
जीवन के लिए महंगी स्वास्थ्य की अनदेखी । एक शोध के द्वारा पता चला है कि पिछले तीन दशकों के दौरान किशोरों में श्रवण हानि में वृद्धि हुई है। इससे भी अधिक भयावह बात यह है कि उच्च स्तर के शोर के लंबे समय तक संपर्क में रहने के बाद कई वर्षों तक श्रवण हानि का पता नहीं चल सकता है। लाउडस्पीकर के नियमित दिन और रात प्रयोग होने से नींद पूरी न होने के कारण मनुष्य में अनेक प्रकार की शारीरिक और मानसिक बीमारी घर कर जाती है। जैसे बहरापन, उच्च रक्तचाप, अवसाद, चिड़चिड़ापन, थकान, एलर्जी, पाचन संबंधी समस्याएं व मानसिक विकार। पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका पर पारित आदेश का हवाला देते हुए अनुपालन सुनिश्चित करने और धार्मिक पाठ या अजान के लिए लाउडस्पीकर के नियमित उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिए जाने की मांग की गई थी। बहरहाल, यह केवल उत्तर प्रदेश की समस्या नहीं है अपितु यह देशव्यापी समस्या है। ध्वनि प्रदूषण का शिशुओं और महिलाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी ध्वनि की तेज गति के कारण महिलाओं का गर्भपात होने का खतरा बढ़ सकता है या भू्रण का विकास रुक सकता है और शिशु का पूरा व्यवहार बदल सकता है। सीखने और व्यवहार सहित बच्चे के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए यह गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।
अत्यधिक शोर के कारण हृदय, मस्तिष्क, किडनी एवं यकृत को काफी नुकसान होता है। मनुष्य में भावनात्मक विसंगतियां उत्पन्न हो जाती हैं। कार्य करने की क्षमता में धीरे-धीरे कमी होने लगती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि मनुष्य का शरीर अधिकतम 80 डेसिबल के तरंगों को झेल सकता है। जबकि 100 डेसिबल से अधिक की ध्वनि तरंगों के बीच रहने वालों में कम सुनने की समस्या उत्पन्न हो जाती है। विज्ञानियों ने लंबे समय तक अध्ययन करने के बाद पाया है कि ध्वनि प्रदूषण के कारण शरीर का मेटाबालिक अर्थात उपापचयी प्रक्रियाएं बुरी तरीके से प्रभावित होती हैं। इससे एड्रीनल हार्मोन का स्राव बढ़़ जाता है। नतीजन धमनियों में कोलेस्ट्रोल का जमाव होने लगता है और इससे हार्टअटैक हो सकता है।
ध्वनि प्रदूषण के चलते हैं जैव विविधता पर भी प्रभाव पडऩा कोई बड़ी बात नहीं है। शोध से पता चला है कि ध्वनि प्रदूषण के चलते कुछ जीव अपने शिकारियों से नहीं बच पर रहे हैं। वहीं इसके विपरीत कुछ जीवों के लिए अपना शिकार खोजना भी मुश्किल साबित हो रहा है। उदाहरण के रूप में चमगादड़ और उल्लू को देख सकते हैं, उनके जैसे जीव संभावित शिकार को उनकी आवाज से पहचानते हैं। पर ध्वनि प्रदूषण उस आवाज को सुनने में दिक्कत पैदा कर रहा है। यही वजह है कि उन्हें अपना शिकार खोजने और भोजन जुटाने में अधिक समय लग रहा है, जिससे आने वाले समय में इन प्रजातियों में गिरावट की आशंका है। अत: सभी प्रकार के संकटों को देखते हुए जल्द से जल्द बढ़ते प्रदूषण पर काबू पाने के लिए समाज को आगे आना चाहिए और सरकार के साथ मिलकर ध्वनि प्रदूषण जैसे मुद्दे पर साथ देना चाहिए।
( शोधार्थी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय)
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