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- किसान कब तक इंतजार...
केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसानों को अब इस भ्रम से निकलना चाहिए कि उनके आंदोलन से घबरा कर, डर कर या एक लोकतांत्रिक आंदोलन का सम्मान करके केंद्र सरकार कानूनों को वापस ले लेगी। सरकार कानूनों को वापस लेने की बजाय कानूनों की खूबियां बताने का अभियान चला रही है। आंदोलनकारी किसानों से बात करने की बजाय गांव-घर में बैठे किसानों तक पहुंच कर उन्हें कानून समझाने का प्रयास कर रही है। आंदोलन से बाहर रहे किसान संगठनों और खाप पंचायतों के प्रधानों के सहारे आम लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। उसने एक महीने से किसान संगठनों से वार्ता बंद कर रखी है। ठीक एक महीने पहले 22 जनवरी को आखिरी बार किसानों के साथ सरकार की वार्ता हुई थी। तब से सरकार ने किसानों को उनके हाल पर छोड़ा है। खुद प्रधानमंत्री ने साफ किया है कि किसान आंदोलन खत्म करें फिर सरकार से बात करें। यानी यह एक तरह से वार्ता की शर्त हो गई है कि पहले आंदोलन खत्म हो।