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आग के बम भले ही केवल यूक्रेन पर गिर रहे हैं
प्रो. लल्लन प्रसाद ।
आग के बम भले ही केवल यूक्रेन पर गिर रहे हैं, परंतु महंगाई के बम सारी दुनिया पर। पेट्रोल जैसी आवश्यक पदार्थ की कीमत पिछले 14 वर्षों के रिकार्ड तोड़ गई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल 139 डालर प्रति बैरल तक चला गया, कीमत ऊपर नीचे हो रही है, किंतु 100 डालर से नीचे जाने की अभी कोई उम्मीद नहीं है। दिल्ली में पिछले चार सप्ताह में पेट्रोल की कीमतें 15 बार बढ़ाई गई हैं। 22 मार्च से कीमत बढऩी शुरू हुई, अब कुछ स्थिर है। देश के विभिन्न शहरों में पेट्रोल 105 से 123 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। एलपीजी की कीमत भी निरंतर बढ़ रही है।
भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत कच्चा तेल विदेश से आयात करता है, रूस और यूक्रेन दोनों ही कच्चे तेल और गैस के दुनिया के बड़े उत्पादकों में हैं। युद्ध के कारण सप्लाई चेन में जो बाधा आई है और अमेरिका तथा अन्य यूरोपीय देशों ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उनका असर कीमतों पर तेजी से पड़ा है जो युद्ध जारी रहने तक रह सकता है। विकसित देशों की अपेक्षा भारत में पेट्रोल, डीजल, एलपीजी आदि सभी की कीमतें अधिक हंै। इनकी कीमतों में और वृद्धि होने से वायु, जल, थल सभी यातायात और महंगे हो हो रहे हैं। एयरलाइंस का 30 से 40 प्रतिशत खर्च ईंधन पर होता है। कारों में पेट्रोल, रेल ईंजन और ट्रकों में डीजल का बड़ी मात्रा में उपयोग होता है। रसोई गैस महंगी होने से आम आदमी का बजट तेजी से प्रभावित हुआ है।
खाने के तेलों की कीमतों में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई है। यूक्रेन सूर्यमुखी के फूलों, जिससे तेल बनाए जाते हैं, उसका दुनिया के बड़े उत्पादकों में एक है। युद्ध के बाद से भारत में खाने के तेलों की कीमतों में 20 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हो चुकी है। थोक कीमतों का सूचकांक 14.5 प्रतिशत पर है जो पिछले 10 वर्षों में दूसरी बार इतनी ऊंचाई पर आया है। खुदरा कीमतों का सूचकांक भी 6.95 प्रतिशत पर पहुंच गया है जो 17 माह बाद इस स्तर पर फिर आया है। ईंधन की कीमतों में वृद्धि सारी चीजों की कीमतों में उछाल लाती है। रोजमर्रा के उपभोग की चीजें- खाद्य पदार्थ, कपड़े, जूते, गाडिय़ां, सीमेंट, पेंट-वार्निश, आटो एवं ऊर्जा उत्पादन के लागत में वृद्धि होने लगी है। सेमीकंडक्टर जिसका इस्तेमाल आटो और इलेक्ट्रानिक सहित कई उद्योगों में होता है, पहले से ही महंगाई से जूझ रहा है, अब और तेजी से इनकी कीमतें बढ़ेंगी।
दुनिया भर की चिप इंडस्ट्री काफी हद तक रूस और यूक्रेन पर निर्भर है। उर्वरक बनाने में उपयोग किए जाने वाले अमोनियम नाइट्रेट की आपूर्ति रूस से बड़ी मात्रा में होती है, लेकिन इसके महंगे होने से खेती से संबंधित सभी उत्पादों की कीमतें प्रभावित होंगी। तांबा और प्लेटिनम आदि का भी रूस बड़ा उत्पादक और निर्यातक है। इन धातुओं की महंगाई से आटो, इलेक्ट्रानिक और कई सारे उद्योग प्रभावित होंगे। युद्ध के चलते रहने से खेत से लेकर कारखाने तक उत्पादन लागत में वृद्धि हो रही है।
युद्ध से भारत का विदेश व्यापार प्रभावित हो रहा है। यूक्रेन में बनी चीजें एशिया में सबसे अधिक भारत में आयात होती है। इनमें तांबा, निकेल, केमिकल्स, मशीनरी, लकड़ी और लकड़ी के सामान, रक्षा सामग्री, प्लास्टिक, शीशा, कीमती पत्थर, खाने के तेल, मेवों, फलों, दूध और शक्कर से बनी खाने पीने की चीजें सम्मिलित हैं। भारत यूक्रेन को फार्मास्यूटिकल्स, टेलीकाम के कलपुर्जे, सेरेमिक्स, लोहा और इस्पात आदि का निर्यात करता है। दोनों देशों के बीच में लगभग 2.8 अरब डालर का व्यापार प्रतिवर्ष होता है।
वहीं दूसरी ओर रूस भारत का महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार रहा है। भारत रूस से कच्चा तेल, रक्षा उपकरण, रासायनिक खाद, धातुएं, कीमती पत्थर आदि आयात करता रहा है। औसतन दो लाख बैरल कच्चा तेल भारत प्रतिदिन रूस से आयात करता है। रूस की बड़ी कंपनियां भारी संयंत्र उत्पादक- उरालमास, गैस उत्पादक- गाजप्रोम, न्यूक्लियर पावर फैसिलिटी उत्पादक- रोसआतम, पनबिजली एवं अणु ऊर्जा उत्पादक- शिलवीय मशीन और मिसाइल बनाने वाली ब्रह्मोस आदि का भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ बड़ी कंपनियों के साथ ज्वाइंट वेंचर भी है। ओएनजीसी, इंडियन आयल आदि का रूसी कंपनियों में भारी निवेश है। तीन सौ के लगभग छोटी भारतीय कंपनियां रूस में पंजीकृत हैं। भारत रूस को मुख्य रूप से चावल, चाय, काफी, मसाले, दवाएं, चमड़े के सामान, ग्रेनाइट आदि निर्यात करता है। वर्ष 2021 में भारत ने रूस को 3.3 अरब डालर के सामान निर्यात किए थे। वैसे भारत के कुल विदेश व्यापार में रूस और यूक्रेन अमेरिका, चीन और यूरोपिय संघ के देशों से बहुत पीछे हैं। रूस भारत का 25वां बड़ा कारोबारी साझेदार है।
युद्ध छिडऩे के बाद रूस ने भारत को कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय कीमतों से 35 प्रतिशत कम पर देने का प्रस्ताव किया है और भुगतान डालर की जगह रूबल में लेने को भी तैयार है जो भारत के हित में है। रुपया और रूबल के माध्यम से पहले भी भारत और रूस के बीच व्यापार होता रहा है। अमेरिका और नाटो देशों के प्रतिबंध के कारण रूस इस समय अंतरराष्ट्रीय अंतर बैंक सिस्टम से अलग कर दिया गया है जिससे उसके लिए डालर में लेन-देन की समस्या खड़ी हो गई है। अंतरराष्ट्रीय करेंसियों- डालर, यूरो आदि की तुलना में रूबल काफी नीचे जा चुका है। भारत से रूबल-रुपया के माध्यम से व्यापार करने में रूस का भी हित है। भारत के रुपये की कीमत में भी कुछ गिरावट आई है, किंतु भारत के पास विदेशी मुद्रा का अच्छा भंडार है, चीन जापान और स्विट्जरलैंड के बाद सबसे अधिक विदेशी मुद्रा भारत के पास है। भारत की मुद्रा और वित्त नीति निवेश बढ़ाने, बजटीय और व्यापार घाटे को सीमित रखने में सक्षम है। भारत की निर्यात क्षमता बढ़ी है, वर्ष 2021-22 में 400 अरब डालर का लक्ष्य पूरा हुआ जो अर्थव्यवस्था के निर्यातोन्मुख होने के संकेत दे रहा है।
हालांकि इस युद्ध का एक अन्य पहलू यह भी है कि अनाज की कीमतें विश्व बाजार में तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसी स्थिति में भारत के कृषि पदार्थों की मांग विश्व बाजार में बढ़ सकती है। देश के किसानों को इसका लाभ मिल सकता है। देश के कई हिस्सों में निजी कंपनियों द्वारा गेहूं की खरीद सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक कीमत पर की जा रही है।
Rani Sahu
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