सम्पादकीय

बिहार NDA में JDU-BJP के बीच शह और मात का खेल कैसे बढ़ने वाला है ?

Rani Sahu
26 July 2021 3:47 PM GMT
बिहार NDA में JDU-BJP के बीच शह और मात का खेल कैसे बढ़ने वाला है ?
x
बीजेपी साल 2025 में बिहार में फ्रंट सीट पर बैठकर ड्राइविंग की मंशा पाले हुए है तो जेडीयू भी उसकी काट के लिए योजना बनाने में पीछे नहीं है

बीजेपी साल 2025 में बिहार में फ्रंट सीट पर बैठकर ड्राइविंग की मंशा पाले हुए है तो जेडीयू भी उसकी काट के लिए योजना बनाने में पीछे नहीं है. बीजेपी कोटे से मंत्री सम्राट चौधरी नीतीश कुमार को नेता बनाने के पीछे की मजबूरियां गिनाते हैं वहीं जेडीयू मोदी कैबिनेट में आरसीपी सिंह को मंत्री तो बनाती है लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए ठीक उलट सोच रखने वाले उपेन्द्र सिंह कुशवाहा के नाम पर मुहर लगाने वाली है. ऐसे में जेडीयू की राजनीति की दशा और दिशा को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में भी असमंजस की स्थिती है.

उपेन्द्र कुशवाहा के हाल के बयानों को देखते हुए कहा जा सकता है कि वो बीजेपी के लिए सहज रहने वाले नहीं हैं. कल यानी रविवार को ही उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि वो इस्लाम स्वीकार कर लेंगे तो कोई उनको कैसे रोक सकता है. ज़ाहिर है बीजेपी ने इसे वोट वैंक की राजनीति करार देकर उपेन्द्र कुशवाहा की जमकर आलोचना की. लेकिन ये उनका अकेला बयान नहीं है. उपेन्द्र कुशवाहा इससे पहले नीट परीक्षा में आरक्षण की मांग कर चुके हैं.
यही नहीं बिहार के स्पेशल राज्य के दर्जे की मांग के अलावा बंगाल चुनाव में दीदी ममता बनर्जी की पीठ थपथपा अपनी मंशा को ज़ाहिर कर चुके हैं. इतना ही नहीं हाल ही में बिहार दौरे पर उन्हें पार्टी की ओर से संवाद स्थापित करने की जिम्मेदारी दी गई जिसमें जेडीयू को मजबूत करने की मंशा से उपेन्द्र कुशवाहा पार्टी को बीजेपी से अलग पहचान दिलाने की कोशिश करते नजर आए हैं. ऐसे में ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि जेडीयू की राजनीति की रूपरेखा उपेन्द्र कुशवाहा के नेतृत्व में बीजेपी के लिए सहज नहीं रहने वाली है.
कई मुद्दों पर बीजेपी और जेडीयू में है मतभेद
जाति आधार पर जनगणना की मांग जेडीयू करने लगी है. वहीं जनसंख्या नियंत्रण को लेकर यूपी में बनाए जाने वाले कानून के विरोध में बिहार के सीएम नीतीश कुमार खुलकर बोल चुके हैं. नीतीश कुमार कुछ मुद्दों पर मुंह खोलते हैं लेकिन संसदीय दल के नेता उपेन्द्र कुशवाहा अपने बयानों के जरिए कई मुद्दों पर अपनी मंशा ज़ाहिर कर चुके हैं. एक तरफ बीजेपी के सम्राट चौधरी सरीखे नेता नीतीश कुमार के नेतृत्व को परिस्थितियों की देन मानते हैं वहीं जेडीयू के भावी राष्ट्रीय अध्यक्ष के मुंह से उन मुद्दों को दोहराया जाना जो जेडीयू बीजेपी से अलग रहकर उठाती थी, अलग राजनीतिक विकल्प की संभावना की ओर इशारा करता है.
आरजेडी के सचिव अजय सिंह कहते हैं कि एनडीए भले ही एकजुट दिखाई पड़ रहा है लेकिन दोनों घटक दल एक दूसरे को संदेह की निगाह से देखते हैं. नीतीश कुमार बिहार विधानसभा चुनाव में देख चुके हैं कि बीजेपी उन्हें एलजेपी की मदद से किस तरह नुकसान पहुंचा चुकी है. इसलिए नीतीश कुमार संभावनाओं की तलाश ज़ारी रखे हुए हैं.
ज़ाहिर है केन्द्र में इस बार भी जेडीयू को एक कैबिनेट बर्थ मिला जबकि साल 2019 में एक मंत्रालय मिलने पर नीतीश कुमार नाराज होकर पटना लौट गए थे. इस बार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह हैं जबकि साल 2019 में राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर नीतीश कुमार खुद मौजूद थे. ऐसे में आरसीपी सिंह के सिर जिम्मेदारी डालकर कि मंत्रिमंडल में शामिल होने का फैसला आरसीपी सिंह का था ये राजनीतिक गलियारों में कौतुहल का विषय बना हुआ है.
बिहार के राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार कहते हैं कि राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी नीतीश कुमार पार्टी में दो उलट सोच रखने वाले को सामानांतर जगह देकर तमाम विकल्पों को खुला रख रहे हैं.
ज़ाहिर है एक तरफ उपेन्द्र कुशवाहा जो राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने वाले हैं वो बीजेपी से कई मुद्दों पर बिल्कुलअलग सोच रखते हैं वहीं आरसीपी सिंह बीजेपी के साथ जुड़े रहने के पक्षधर शुरू से रहे हैं.
बीजेपी और जेडीयू के बीच तू -तू, मैं-मैं इसलिए आता है सामने
जेडीयू और बीजेपी के बीच तनातनी चलने के मतलब ये कतई नहीं है कि दोनों फिलहाल रास्ते अलग चलने वाले हैं. लेकिन 20 साल से ज्यादा पुराना गठबंधन सहज रहने वाला है ऐसा दिखाई नहीं पड़ता है. राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उपेन्द्र कुशवाहा के नाम पर मुहर लगना तय है लेकिन पार्टी आगे चलकर किस रास्ते पर चलने की योजना बना रही है इसको लेकर पार्टी के अंदर भी दबी जुबान में चर्चा जोरों पर है.
जेडीयू के एक नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उपेन्द्र कुशवाहा को पदस्थापित करना आम पार्टी के कार्यकर्ताओं के मन में भी असमंजस पैदा कर रहा है . जेडीयू नेता कहते हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास राजनीतिक फैसले लेने की आजादी होती है ऐसे में बीजेपी के साथ रिश्ते को लेकर स्थितियां पहले जैसी रहेंगी इसको लेकर संदेह है.
ज़ाहिर है उपेन्द्र कुशवाहा राहुल गांधी और लालू प्रसाद दोनों के बेहद करीबी रहे हैं. ऐसे में दो अलग सोच रखने वालों में एक को मोदी के नेतृत्व में मंत्री और दूसरे को जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर बिठा भविष्य की राजनीति में किस ओर चलेंगे इसको लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं.


Next Story