सम्पादकीय

कैसे पीएम नरेंद्र मोदी को 'अंगूठाछाप' कहना कांग्रेस पार्टी पर भारी पड़ने वाला है?

Shiddhant Shriwas
21 Oct 2021 7:21 AM GMT
कैसे पीएम नरेंद्र मोदी को अंगूठाछाप कहना कांग्रेस पार्टी पर भारी पड़ने वाला है?
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नरेंद्र मोदी को गुजरात में लोकप्रिय बनाने का काम सोनिया गांधी ने किया तो 2014 में मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाने में राहुल गांधी का भी भरपूर सहयोग मिला

अजय झा

यथा राजा तथा प्रजा, यह लोकोक्ति तो सुनी ही होगी और इससे जुड़े किस्से भी. आइए इससे जुड़े एक तजा किस्से की आज बात करते हैं. बात है कांग्रेस पार्टी की. कभी मुगलों से भी बड़ा भारतवर्ष में कांग्रेस (Congress) का साम्राज्य होता था– कश्मीर से कन्याकुमारी तक तथा गुजरात से अरुणाचल प्रदेश तक. जहां भी भारत का तिरंगा लहराता था वहां कांग्रेस का ही राज होता था.

हालांकि जब बड़े-बड़े साम्राज्यों का पतन हो गया तो कांग्रेस पार्टी का भी होना ही था. एक के बाद एक प्रदेश में पार्टी चुनाव हारती गयी. जैसे आखिरी मुग़ल राजा बहादुर शाह जफ़र का राज्य सिमट कर दिल्ली तक ही रह गया था, कांग्रेस पार्टी की भी सरकार अब मात्र तीन राज्यों तक ही सिमट कर रह गई है. पिछले दो लोकसभा में पार्टी के इतने कम सांसद चुने गए कि 2014 से लोकसभा में कोई नेता प्रतिपक्ष भी नहीं है.
देश के प्रधानमंत्री को अंगूठाछाप कहा
राज ख़त्म हुआ पर राजा नहीं. उन्हें अभी भी यही आस है कि एक ना एक दिन उनके सुनहरे दिनों की वापसी होगी. पर जब ऐसा होता नहीं दिख रखा है तो कांग्रेस पार्टी के युवराज राहुल गांधी, जो देश का राजा बनने का सपना संजोये बैठे हैं, हताश होने लगते हैं. इस हताशा की स्थिति में कांग्रेस के युवराज कई बेतुके और मनगढ़ंत आरोप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लगाते रहते हैं. पर सभी को पार्टी में यह अधिकार तो नहीं दिया जा सकता कि वह ओदी के खिलाफ आरोपों की फैक्ट्री लगा दें, क्योंकि यह राहुल गांधी का विशेषाधिकार है.
पर पिछले दिनों दक्षिण के राज्य कर्णाटक में भी पार्टी के एक युवा कार्यकर्ता ने युवराज की नक़ल करने की कोशिश की और कांग्रेस पार्टी के लिए मुसीबतों का नया पहाड़ खड़ा कर दिया है. बात 18 अक्टूबर की है. कर्णाटक कांग्रेस कमिटी के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर राज्य की भाषा कन्नड़ में कुछ ऐसा पोस्ट किया गया जिससे हंगामा मच गया. ट्वीट में लिखा गया कि मोदी कभी स्कूल नहीं गए और उन्हें अंगूठाछाप करार दिया गया. फिर तो वह मोदी का कोई हमशक्ल होगा जो विदेशों में जा कर अंग्रेजी में भी भाषण देते सुना गया होगा. एक अंगूठाछाप और अंग्रेजी! इस पर हंगामा होना स्वाभाविक था और हुआ भी.
बाद में डिलीट किया ट्वीट
कर्णाटक बीजेपी ने पलटवार करते हुए जवाहरलाल नेहरु से ले कर राहुल गांधी तक को घेरे में ले लिया. बात जब आगे बढ़ती दिखी तो कर्णाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार को हस्तक्षेप करना पड़ा. शिवकुमार ने कहा कि वह राजनीति में असभ्य भाषा के इस्तेमाल के विरोधी हैं और मोदी के खिलाफ असभ्य भाषा का प्रयोग पार्टी के एक नौसिखिए सोशल मीडिया मैनेजर ने की थी. शिवकुमार ने इस पर खेद प्रकट किया और देर रात इस आपत्तिजनक ट्वीट को डिलीट भी कर दिया गया.
मोदी को बड़ा बनाने में कांग्रेस का बड़ा हाथ
दरअसल मोदी के इतना बड़ा और सशक्त नेता बनाने में कांग्रेस पार्टी का भरपूर सहयोग मिला है. 2001 के अक्टूबर महीने में मोदी पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने और कुछ ही महीनों में वहां साम्प्रदायिक दंगा शुरू हो गया, जिसमें हज़ार से भी अधिक लोग मारे गए. मोदी पर एक साम्प्रदाय विशेष को मरवाने का आरोप लगा जिसमें कांग्रेस के नेता सबसे आगे थे. 2002 के गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी हिन्दू ह्रदय सम्राट बन चुके थे और बीजेपी की भारी जीत हुई. मोदी पर आरोप लगा पर कोर्ट में साबित नहीं हो पाया.
फिर आया 2007 का विधानसभा चुनाव. ऐसा लगने लगा था कि बीजेपी चुनाव हार जाएगी. चुनाव प्रचार करने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी गुजरात पहुंची और मोदी को मंच से 'मौत का सौदागर' कह कर पुकारना शुरू कर दिया जिसका नतीजा ठीक उल्टा हुआ और मोदी के नेतृत्व में बीजेपी एक बार फिर से चुनाव जीत गयी.
अगर मोदी को गुजरात में लोकप्रिय बनाने का काम सोनिया गांधी ने किया तो 2014 में मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाने में सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी का भी भरपूर सहयोग मिला. राहुल गांधी ने बीजेपी पर निशाना साधने की जगह मोदी को टारगेट करना शुरू किया, रोज एक नया आरोप लगाने लगे. चुनाव आते आते राहुल गांधी के सहयोग के कारण पूरा देश मोदीमय हो गया और पहली बार बीजेपी केंद्र में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने में साफल हुई.
क्या 'अंगूठाछाप' बोल कर कांग्रेस ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है
चुनाव में आरोप प्रत्यारोप लगता ही रहता है. नेताओं पर भी टिपण्णी होती रहती है. राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार को एक नया आयाम दे दिया. वह बीजेपी की आलोचना करने की जगह मोदी पर भी आरोपों की बौछार करते रहे और मोदी मजबूत होते गए. लोगों के दिमाग में बस गया कि मोदी में कुछ ऐसी काबिलियत तो होगी ही कि कांग्रेस पार्टी जो पिछले दस वर्षों से सत्ता में थी इस तरह मोदी के पीछे हाथ धो कर पड़ गयी है. राहुल गांधी का पांसा उल्टा पड़ गया. उम्मीद यही की जाने लगी थी कि राहुल गांधी ने शायद सबक सीख लिया होगा, पर राहुल गांधी उनमें से बिल्कुल नहीं हैं जो अपनी गलती स्वीकार करें, नहीं की, और आज भी रोज सवेरे नीद से उठते ही सबसे पहले अपने ट्विटर एकाउंट से मोदी पर नया आरोप लगाते हैं.
शायद मोदी पर नित नए आरोप लगाना ही राहुल गांधी और अब उनकी बहन प्रियंका गांधी की भी नज़रों में सत्ता के वापसी की कुंजी बन गयी है. शायद बेतुके और मनगढ़ंत आरोप लगाना गांधी परिवार के DNA में है. कर्णाटक के अनुभवहीन और 'नौसिखिए' सोशल मीडिया मैनेजर ने भी तो वही काम किया जो राहुल गांधी करते हैं. राहुल गांधी के लिए सौ खून माफ़ और एक छोटे पदाधिकारी पर कार्यवाही, यह कहां तक उचित है. यह कांग्रेस पार्टी ही जाने. पर इतना तय है कि उस विवादास्पद ट्वीट को डिलीट करने से यह विवाद डिलीट नहीं हो गया है. कुछ भी महीनों में पांच राज्यों का चुनाव होने वाला है और उम्मीद की जानी चाहिए कि इस पर बीजेपी और 'अंगूठाछाप' मोदी कटाक्ष करते दिख सकते हैं. यह विवाद कांग्रेस पार्टी पर भारी भी पड़ सकता है, क्योंकि देश की जनता ऐसे आरोपों का जवाब चुनाव में देती रही है और शायद आगामी चुनावों में देगी भी.
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