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इंटरनेट आधारित सूचना-संवाद के प्लेटफॉर्म किस तरह सरकार की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहे हैं,
संजय पोखरियाल | इंटरनेट आधारित सूचना-संवाद के प्लेटफॉर्म किस तरह सरकार की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहे हैं, इसका प्रमाण है वाट्सएप की ओर से केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना। फेसबुक के स्वामित्व वाले वाट्सएप ने यह दलील दी है कि केंद्र सरकार के दिशानिर्देश मानने से निजता का उल्लंघन होगा। पहली बात तो लोगों की निजी जानकारियां लीक करने और बेचने वालों के मुंह से निजता की बातें सुनना अच्छा नहीं लगता और दूसरे, यह शरारत के अलावा और कुछ नहीं कि वाट्सएप निजता की आड़ में यौन अपराधों के साथ अन्य गंभीर अपराधों में लिप्त लोगों के बारे में जानकारी देने से इन्कार करे। क्या वाट्सएप अपराधी और आतंकी तत्वों की निजता की परवाह कर रहा है?
यदि नहीं तो फिर वह सरकार के दिशानिर्देश मानने से क्यों इन्कार कर रहा है। इससे भी बड़ा सवाल यह है कि जब वह और अन्य इंटरनेट मीडिया कंपनियां अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया आदि देशों में ऐसे ही दिशानिर्देशों का पालन करने को तैयार हैं तो फिर भारत में उन्हें क्या समस्या है? स्पष्ट है कि ये कंपनियां या तो भारत के प्रति दुराग्रह से ग्रस्त हैं या फिर यहां अपनी मनमानी चलाना चाहती हैं। यह मनमानी के अलावा और कुछ नहीं कि वाट्सएप निजता संबंधी अपनी नई नीति के तहत अपने सभी यूजर्स का डाटा फेसबुक के साथ तो साझा करना चाह रहा है, लेकिन फर्जी खबरों पर अंकुश लगाने से हाथ खड़े कर रहा है।
वाट्सएप की तरह ट्विटर भी मनमानी पर आमादा है। उसे यकायक भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में दिखने में लगी है। यह बहानेबाजी के अलावा और कुछ नहीं। ट्विटर ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ने की जैसी मनमानी व्याख्या पेश की, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। नि:संदेह इसकी भी मिसाल नहीं मिल सकती कि वह कम आपत्तिजनक ट्वीट करने वालों के खिलाफ तो कार्रवाई करे, लेकिन घोर आपत्तिजनक और घृणा भरे ट्वीट करने वालों को बख्श दे। क्या वह इसे ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समझता है? यदि नहीं तो लंपट और नफरती तत्वों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की परवाह क्यों कर रहा है?
यह अच्छा हुआ कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की फर्जी आड़ ले रहे ट्विटर को दिल्ली पुलिस ने न केवल खरी-खरी सुनाई, बल्कि उसे बेनकाब भी किया। ट्विटर जैसी कंपनियों को यह समझना होगा कि आज का भारत उन्हें ईस्ट इंडिया जैसी कंपनी बनने की इजाजत नहीं दे सकता। उन्हें भारत में यहां के नियमों के हिसाब से चलना होगा। इंटरनेट मीडिया कंपनियों को इस मुगालते में भी नहीं रहना चाहिए कि वे भारत के साथ दोयम दर्जे के देश की तरह व्यवहार कर सकती हैं
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