सम्पादकीय

कितना प्रभावशाली होगा ममता बनर्जी-सुब्रमण्यम स्वामी और प्रशांत किशोर की तिकड़ी का दिल्ली वाला 'खेला'

Rani Sahu
25 Nov 2021 7:04 AM GMT
कितना प्रभावशाली होगा ममता बनर्जी-सुब्रमण्यम स्वामी और प्रशांत किशोर की तिकड़ी का दिल्ली वाला खेला
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पिटारे में लगता है काफी ‘खेला’ है

अजय झा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पिटारे में लगता है काफी 'खेला' है, जहां जाती हैं, कुछ ना कुछ नया खेला हो ही जाता है. पिछले मंगलवार से वह नई दिल्ली के तीन दिनों के दौरे पर हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलकर सीमा सुरक्षा बल यानि बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को अंतर्राष्ट्रीय सीमा से 8 किलोमीटर से बढ़ा कर 50 किलोमीटर करने के केंद्र सरकार के फैसले और त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमले की घटनाओं का विरोध करना तो मात्र बहाना था, असली उद्देश्य था दिल्ली में खेला करना और एक धमाका करना ताकि कांग्रेस पार्टी, खास कर गांधी परिवार को पता चल जाए कि विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से दीदी पीछे नहीं हटने वालीं हैं. अगर कांग्रेस पार्टी विपक्षी एकता चाहती है तो सोनिया गांधी को राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का सपना भूलना पड़ेगा.

मंगलवार को दिल्ली आगमन के कुछ घंटों के अन्दर ही पहला खेला हो गया. तीन पूर्व सांसद– पूर्व भारतीय क्रिकेटर कीर्ति आजाद, पूर्व राजदूत पवन वर्मा और हरियाणा कांग्रेस कमिटी के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया. कीर्ति आजाद बीजेपी के सांसद थे और अपनी ही पार्टी के वरिष्ट नेता स्वर्गीय अरुण जेटली से पंगा लेना उन्हें महंगा पड़ गया था. जो व्यक्ति देश के रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री के पदों पर रहा हो और उस पर भ्रष्टाचार का आरोप ना लगा हो, उस व्यक्ति पर डीडीसीए के अध्यक्ष पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार का आरोप लगाना बहुतों के गले नहीं उतरा. बीजेपी ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया.
प्रशांत किशोर की वजह से पवन वर्मा टीएमसी में शामिल हुए
वापस कांग्रेस पार्टी की डूबती नाव में सवार हुए और बिहार के दरभंगा सीट पर 2019 के लोकसभा चुनाव में कीर्ति आजाद की नाव डूब ही गयी. पिछले वर्ष के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया, पर आजाद फिर से फिस्सडी रहे और कांग्रेस पार्टी लगातार दूसरी बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोल पाई. चूंकि कांग्रेस पार्टी का ना तो दिल्ली में और ना ही बिहार में फिलहाल कोई भविष्य है, लिहाजा कीर्ति आजाद अपनी नई पारी की शुरुआत करने तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए.
पवन वर्मा की भी राजनीतिक पारी का अंत हो गया था. 2013 में भारतीय विदेश सेवा से रिटायर हुए, अगले वर्ष ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें अपना सलाहकार नियुक्त किया था. जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता बने. राज्यसभा के सदस्य भी बन गए, पर धीरे धीरे उनकी नीतीश कुमार से खटास बढ़ने लगी. पवन वर्मा को नीतीश कुमार ने अपने सलाहकार प्रशांत किशोर के कहने पर पद और सम्मान दिया और दोनों को नीतीश कुमार ने एक साथ ही बाहर का दरवाज़ा दिखया. अब प्रशांत किशोर ममता बनर्जी के सलाहकार हैं, तो पवन वर्मा का तृणमूल कांग्रेस के शामिल हो जाना कोई अचरज की बात नहीं हैं.
सुब्रमण्यम स्वामी को टीएमसी में शामिल करके बड़ा खेला करना चाहती हैं दीदी
अशोक तंवर को भी लोग पिछले सवा दो वर्षों में भूल चुके थे. राहुल गांधी के करीबी और पढ़े लिखे दलित नेता, 6 वर्षो तक हरियाणा प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष रहे. कारण जो भी हो, 6 साल में तंवर हरियाणा कांग्रेस में किसी पदाधिकारी को भी नियुक्त नहीं कर पाए, ब्लॉक और जिला कमेटी भी नहीं बना पाए और जब 2019 में विधानसभा चुनाव से पूर्व उन्हें अध्यक्ष पद से मुक्त कर दिया गया तो नाराज़ हो कर तंवर कांग्रेस पार्टी से दूर हो गए. यानि मंगलवार को जो तीनों नेता तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए उनका राजनीतिक सफ़र कहीं रुक गया था. अब दीदी का पल्लू पकड़ कर अब वह आगे बढ़ना चाहते हैं.
मंगलवार का धमाका अगर कांग्रेस पार्टी को डराने के लिए था तो बुधवार का धमाका बीजेपी की हवा निकालने ने लिए किया गया था. मामता बनर्जी की प्रधानमंत्री से मुलाकात के ठीक पहले बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ममता बनर्जी से मिलने पहुचे. स्वामी का समय पिछले कुछ सालों से ठीक नहीं चल रहा है. मोदी ने उन्हें मंत्री नहीं बनाया और बीजेपी ने उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी यानि नेशनल एग्जीक्यूटिव से भी बाहर कर दिया. दीदी से उनकी क्या बात हुई इसकी जानकारी अभी नहीं है, पर मीटिंग से निकल कर जिस तरह से स्वामी दीदी की तारीफ के पुल बांधते दिखे, लगता तो ऐसा ही है कि किसी बड़े खेला की तैयारी शुरू हो गयी है.
पर्दे के पीछे सारा खेल प्रशांत किशोर कर रहे हैं
स्वामी अपने खुराफाती दिमाग के लिए कुख्यात हैं. सभी को याद है कि किस तरह वह 1998 में जयललिता और सोनिया गांधी को एक साथ लाने में सफल हुए थे और अटल बिहरी वाजपेयी की सरकार लोकसभा में एक वोट से गिर गयी थी. फिलहाल स्वामी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर भ्रष्टाचार और गबन का मुकदमा दायर कर रखा है और गांधी मां बेटे को जेल भेजने की सौगंध खा रखी है. तो क्या कोई सौदा तय हुआ कि अगर कांग्रेस पार्टी ममता बनर्जी को संयुक्त विपक्ष का प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदार बनाने को तैयार हो जाती है तो क्या स्वामी सोनिया और राहुल गांधी के खिलाफ मुकदमा वापस ले लेंगे, और उसके एवज में जब कि अगले वर्ष अप्रैल में उनकी राज्यसभा की सदस्यता ख़त्म हो जाएगी तो क्या तृणमूल कांग्रेस स्वामी को राज्यसभा भेजेगी?
सब कुछ संभव है. अगर ममता बनर्जी ड्रामा क्वीन हैं तो स्वामी खलनायक की भूमिका के लिए जाने जाते हैं. पर्दे के पीछे से निर्देशक का काम प्रशांत किशोर कर रहे हैं. और जब तीन शातिर दिमाग एक साथ इकट्ठा हो जाए तो खेला तो होगा ही, कुछ और बड़ा धमाका भी हो सकता है. क्या यह तिकड़ी जो मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाना चाहते हैं, सफल हो पाएंगे? फिलहाल इंतज़ार करना होगा कि क्या उनका धमाका कारगर होगा या फिर दीपावाली के बम की तरह सिर्फ शोर मचा कर ही बुझ जाएगा.
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