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सम्पादकीय
कोविड मुक्त भारत के लिए पारंपरिक ज्ञान-विज्ञान का उपयोग कितना महत्वपूर्ण है हमारे लिए
Gulabi Jagat
21 April 2022 2:08 PM GMT

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पारंपरिक ज्ञान-विज्ञान का उपयोग कितना महत्वपूर्ण है हमारे लिए
डा. राजदीप राय। कोरोना वायरस जनित महामारी की तीसरी लहर में ओमिक्रान वेरिएंट ने विश्व के अधिकांश हिस्से को प्रभावित किया है। इस बीच देश में कोरोना संक्रमण की चौथी लहर आने की आशंका भी जताई जा रही है। कोरोना संक्रमण के लगातार बने रहने की एक बड़ी वजह है बहुत सारी चीजों या वस्तुओं की वे सतहें जिनके संपर्क में हम दिन-रात आते हैं। इन सतहों पर अनेक प्रकार के बैक्टीरिया, जम्र्स और वायरस चिपके होते हैं। इसके साथ जाने-अनजाने में उन्हीं हाथों से हम अक्सर अपने मुंह, नाक, आंखों आदि को छूते हैं और इसके चलते हम अपने अंदर न जाने कितनी तरह की बीमारियां ले जाते हैं, जिसमें कोरोना भी शामिल होता है।
तो क्या है इसका इलाज और कैसे हम चिंतामुक्त रहें कि इन सतहों को छूने से हमें बीमारियां न हों? इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढने के लिए हमें अपने पारंपरिक मूल्यों और गौरवशाली अतीत की ओर लौटना होगा जहां स्वच्छता की बात सबसे पहले होती थी।
यह बहुत पुरानी बात नहीं है, जब हमारे घरों में खाने के लिए तांबा, कांसा या पीतल से बने बर्तनों, थालियों और लोटे आदि का उपयोग होता था। वर्ष 1980-85 से पहले पैदा हुए ज्यादातर भारतीय तो इन्हीं बर्तनों का उपयोग करते-करते बड़े हुए हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता रहा है कि तांबे या तांबा-मिश्रित धातु मसलन पीतल और कांसे के बर्तनों में हानिकारक जीवाणु या विषाणु नहीं टिक पाते हैं। यह तो आज भी माना जाता है कि तांबे के बर्तन में रात को पानी रखकर सुबह उसी पानी का खाली पेट सेवन करने से पाचन तंत्र मजबूत रहता है और यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है।
ऋग्वेद और अथर्ववेद सहित कई प्राचीन ग्रंथों में ताम्र यानी तांबा को सबसे महत्वपूर्ण धातुओं में गिना गया है। भारतीय चिकित्सा पद्धति के जनक सुश्रुत द्वारा रचित सुश्रुत संहिता में शरीर के आंतरिक और बाहरी, दोनों तरह की बीमारियों के इलाज में तांबे के उपयोग का उल्लेख है। आयुर्वेद में 'ताम्र भस्मÓ का उल्लेख एक चमत्कारी औषधीय घटक के रूप में किया गया है।
सदियों से मौजूद इस भारतीय पारंपरिक ज्ञान की पुष्टि अब आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान भी कर रहे हैं। पिछले साल फरवरी में, अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (यूनाइटेड स्टेट्स एन्वायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी) ने सर्टिफिकेट देते हुए कहा कि तांबा 'दो घंटे के भीतरÓ कोरोना वायरस को 99.9 प्रतिशत तक खत्म कर देता है। इस सर्टिफिकेट को जारी करते वक्त यूएस-ईपीए (जिसके प्रमाणपत्रों को गोल्ड स्टैंडर्ड माना जाता है) ने कहा कि तांबे से बने वह पदार्थ जिनमें 95.6 प्रतिशत या उससे अधिक तांबा होता है, वह कोरोना वायरस को दो घंटे के भीतर 99.9 प्रतिशत तक खत्म कर सकते हैं और उसके बाद भी कोरोना वायरस को खत्म करने की यह प्रक्रिया सतत जारी रहती है।
इससे पहले न्यू इंग्लैंड जर्नल आफ मेडिसिन में वर्ष 2020 में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में कहा गया था कि कोरोना वायरस तांबे की सतहों पर चार घंटे के भीतर समाप्त हो जाता है, जबकि स्टेनलेस स्टील, गत्ते और प्लास्टिक की सतहों पर यह 72 घंटे तक जीवित रह सकता है।
साक्ष्यों और आंकड़ों द्वारा प्रमाणित ये सभी वैज्ञानिक अनुंसधान और शोध-अध्ययन पारंपरिक भारतीय ज्ञान-विज्ञान की बहुत बड़ी जीत है और इस 'जीतÓ का बड़े पैमाने पर उपयोग महामारी से बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके स्वास्थ्य, अन्य प्रणालियों और रोजमर्रा के जीवन को फिर से पटरी पर लाने में किया जा सकता है।
उदाहरण के तौर पर अगर हम देखें तो स्वास्थ्य केंद्रों के जरिये फैलने वाले संक्रमण के मामले में भारत की गिनती दुनिया में पहले स्थान पर होती है। शायद ही कोई भारतीय अस्पताल हो, जहां बीमारियों से संक्रमित होने का खतरा न हो। ऐसे में, तांबा और तांबा-मिश्रित धातुओं का बड़े पैमाने पर उपयोग करके अस्पतालों और चिकित्सा सुविधाओं को सुदृढ़ बनाया जा सकता है। मसलन, अस्पतालों के अंदर लगे दरवाजों की घुंडियों, स्ट्रेचर के हैंडल, आइसीयू बेड, आइवी-स्टैंड, ट्रे टेबल, कुर्सियों के बाजुओं वगैरह को तांबे का बनाकर अस्पताल के अंदर होने वाले संक्रमण के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
तांबे का इस्तेमाल अन्य जगहों पर भी बड़े पैमाने पर किया जा सकता है, ताकि कोरोना सहित जाने-अनजाने वायरस और बैक्टीरिया का खतरा कम किया जा सके। उदाहरण के रूप में हम सार्वजनिक परिवहन या पार्क, ऐतिहासिक स्मारकों, पर्यटन स्थलों जैसे सामूहिक उपयोग की जगहों को ले सकते हैं। इनके अंदर हर उस जगह, जो सबसे ज्यादा छुई जाती हो, उसे तांबा या तांबा-मिश्रित धातुओं का बनाया जा सकता है, ताकि लोगों को तमाम कीटाणुओं-विषाणुओं के खिलाफ हर समय सुरक्षा मुहैया कराई जा सके और संक्रमित होने के डर को काफी हद तक कम किया जा सके।
आधुनिक विज्ञान की ओर से मान्यता : यह हम सभी भारतीयों के लिए गर्व की बात है कि तांबे के गुणों को अब आधुनिक विज्ञान भी मान्यता दे रहा है। ऐसे में, पारंपरिक भारतीय ज्ञान-विज्ञान पर हंसने के बजाय सोच बदलने की जरूरत है। यह भी आवश्यक है कि हमारा सरकारी तंत्र तांबे का उपयोग बढ़ाने के लिए कटिबद्ध हो और इसे देश के विकास के दीर्घकालीन विजन और लक्ष्य का हिस्सा बनाए, ताकि भविष्य में इस प्रकार की किसी भी महामारी की आशंका से निपटने की तैयारियों को अभी से शुरू किया जा सके। तांबे जैसी धातुओं का उपयोग बढ़ाना समय की मांग भी है और यह इसलिए भी जरूरी है, ताकि हम अपने पारंपरिक ज्ञान-विज्ञान को हेय दृष्टि से देखने की भूल फिर से न करें।
( आर्थोपेडिक सर्जन और असम के सिलचर से लोकसभा सदस्य )
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