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फाइल फोटो
जनता से रिश्ता वबेडेस्क | प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ़्त अनाज दिसंबर के बाद भी एक साल तक मिलता रहेगा। कथित गरीबों के लिए एक और सुखद ख़बर है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत 2 रुपए किलो गेहूं और 3 रुपए किलो चावल के तौर पर जो अनाज उपलब्ध कराया जा रहा था, वह भी अब जनवरी, 2023 से एक साल तक 'बिल्कुल मुफ़्त' बांटा जाएगा। सरकार के रिकॉर्ड में जो लोग 'गरीब' के तौर पर दर्ज हैं, उनकी बल्ले-बल्ले हो गई है। दरअसल भारत सरकार का यह सरोकार नहीं है कि मुफ़्त अनाज के कितने लाभार्थी ऐसे गेहूं, चावल को बाज़ार में बेच देते हैं, क्योंकि उन्हें वह अनाज 'घटिया' लगता है। मोदी सरकार अपना डाटा 'जनवादी' बनाए रखना चाहती है कि वह 81.35 करोड़ गरीब नागरिकों को बिल्कुल मुफ़्त अनाज मुहैया करा रही है। बेशक अर्थव्यवस्था पर इसके व्यापक विपरीत प्रभाव न पड़ें और वित्तीय घाटा भी परिधियों के बाहर न हो, लेकिन कुछ सवाल लगातार पूछे जा रहे हैं कि कोरोना-काल के बाद आर्थिक गतिविधियां सामान्य होने के बावजूद मुफ़्त अनाज बांटते रहना क्या और क्यों जरूरी है? यदि 81 करोड़ से अधिक लोगों को 5 किलो मुफ़्त अनाज, प्रति व्यक्ति प्रति माह, मुहैया नहीं कराया जाएगा, तो क्या वे भूखे मर जाएंगे? क्या भारत में इतनी गरीबी और संभावित भुखमरी के हालात हैं?