सम्पादकीय

कांग्रेस के 60 साल पर कितना भारी है मोदी सरकार का 8 साल?

Rani Sahu
25 May 2022 9:43 AM GMT
कांग्रेस के 60 साल पर कितना भारी है मोदी सरकार का 8 साल?
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200 साल की तबाही और लूट की औपनिवेशिक पृष्ठभूमि के बाद 1947 में अस्तित्व में आए एक लोकतांत्रिक देश के तौर पर भारत के सामने चुनौतियों का बड़ा पहाड़ खड़ा था

प्रवीण कुमार |

200 साल की तबाही और लूट की औपनिवेशिक पृष्ठभूमि के बाद 1947 में अस्तित्व में आए एक लोकतांत्रिक देश के तौर पर भारत के सामने चुनौतियों का बड़ा पहाड़ खड़ा था. इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत के तत्कालीन नीति निर्माताओं ने भारत की एक मजबूत बुनियाद रखी और बाद की सरकारों ने भी इसे और मजबूत करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया. आजादी के ठीक बाद की तुलना में साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को विरासत में एक मजबूत अर्थव्यवस्था, एक क्रियाशील लोकतंत्र और हौसले से भरे कारोबारी मिले. विकास, हर साल 2 करोड़ नौकरियां और लाल फीताशाही समाप्त करने के जिस वादे को पूरा करने की उम्मीद जगाकर नरेंद्र मोदी ने 2014 में भारत का सबसे बड़ा चुनाव जीता था वह अब 8 साल की हो गई है.
हालांकि 2014 से पहले अपने चुनावी अभियान में मोदी ने देश की जनता से कांग्रेस (Congress) के 60 साल के मुकाबले सिर्फ 60 महीने ही मांगे थे, लेकिन जनता ने 2019 में 60 महीने की एक और किस्त थमा दी. ऐसे में लोग अब 60 साल बनाम 8 साल के फर्क को समझना चाहता है. हालांकि 60 साल की तुलना में 8 साल का वक्त बहुत छोटा होता है, लेकिन इस बात का विश्लेषण जरूर किया जाना चाहिए कि 2014 से पहले की सरकारों ने 60-65 सालों में देश के विकास के लिए जो कुछ किया उसे इन 8 सालों में और कितना आगे बढ़ाया गया और 8 सालों में मोदी सरकार ने ऐसा क्या नया किया जो पूर्व की सरकारें कर सकती थी, नहीं किया गया.
75 फीसदी गरीबी से 10 फीसदी
आजाद भारत की पहली जनगणना 1951 में हुई थी और उसके आंकड़े बताते हैं कि तब देश की आबादी 35.90 करोड़ थी, जिसमें से करीब 75 फीसदी गरीब थे, जबकि आज 130 करोड़ की आबादी में करीब 10 फीसदी ही गरीब बचे हैं. कोरोना महामारी के बावजूद 8 साल की मोदी सरकार के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है. मोदी सरकार ने जब 2014 में सत्ता संभाली थी तब गरीबी का आंकड़ा 21 प्रतिशत के आसपास थी. ये अलग बात है कि कोरोना महामारी के बाद से सरकार लगातार देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दे रही है. मतलब 80 करोड़ लोगों की इतनी कमाई नहीं है कि वह राशन का जुगाड़ कर सकें.
सड़क और बिजली निर्माण में अनुमान से अधिक डेवलपमेंट
सड़क निर्माण की बात करें तो 1951 में भारत में 3.99 लाख किलोमीटर सड़कें थी. 2014 में यह बढ़कर 54 लाख किलोमीटर हो गईं. मोदी सत्ता के 8 साल की बात करें तो यह करीब 65 लाख किलोमीटर तक पहुंच गई है. सड़क नेटवर्क में भारत का स्थान अमेरिका का बाद दूसरा है. उम्मीद की जा रही है कि 2025 तक भारत का सड़क नेटवर्क अमेरिका को पीछे छोड़ा दुनिया में सबसे बड़ा हो जाएगा.
1947 में जब देश आजाद हुआ था तब बिजली उत्पादन की क्षमता मात्र 1362 मेगावॉट थी. 2013-14 में यह बढ़कर लगभग 1.75 लाख मेगावॉट यानी 175 गीगावाट हो गई थी. भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक, इस वक्त भारत के पास 3 लाख 99 हजार 497 मेगावॉट यानी करीब 400 गीगावॉट बिजली बनाने की क्षमता है. जबकि पीक डिमांड 205 गीगावॉट के करीब होती है. कहने का मतलब यह कि मोदी सरकार में बिजली का सरप्लस उत्पादन है. बीते 8 सालों में बिजली उत्पादन की क्षमता में 225 गीगावॉट की वृद्धि हुई है, जो चमत्कारिक है. तो फिर एक सवाल यह उठता है कि देश में बार-बार बिजली संकट क्यों पैदा होता है? इसका सीधा सा जवाब यही है कि सरकार की इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन मैनेजमेंट सिस्टम दुरुस्त नहीं हैं. इसे ठीक करने की जरूरत है.
जहां तक गांवों में बिजली पहुंचाने की बात है तो 1950 तक 3061 गांवों में बिजली पहुंचाई गई थी. 2013-14 तक यह संख्या बढ़कर 5.60 लाख गांव हो गई. मोदी सरकार का दावा है कि देश के शत-प्रतिशत गांवों में बिजली पहुंच चुकी है. हालांकि जमीनी हकीकत यह है कि देश के बहुत सारे दुर्गम व सुदूर गांव बिजली की सुविधा से अभी भी वंचित हैं. हर गांव तक बिजली पहुंचाने के आंकड़ों में पूर्व की सरकारों ने भी खेल किया और मौजूदा सरकार के आंकड़े भी दुरुस्त नहीं हैं.
पिछले 8 सालों में दोगुना हुए प्राइमरी स्कूल
प्राइमरी स्कूलों की बात करें तो 1950-51 के दौरान देश में करीब 2.10 लाख प्राइमरी स्कूल थे जो 2014 तक 8.47 लाख पर पहुंच गई. आज यह संख्या करीब 15 लाख को छू गई है. हालांकि इसमें सरकारी, सरकार से वित्त पोषित और निजी स्कूल भी शामिल हैं. बीते 8 साल में प्राइमरी स्कूलों में 6 लाख से अधिक की वृद्धि को सरकार की बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जाना चाहिए. इसी तरह से साक्षरता दर की बात करें तो 1950-51 में भारत की साक्षरता दर 18.33 प्रतिशत थी. 2014 में यह दर बढ़कर 69 प्रतिशत हो गई. 2022 की बात करें तो यह आंकड़ा 75 प्रतिशत के करीब है. पिछले 8 वर्षों में साक्षरता दर में 6 प्रतिशत की वृद्धि को कमतर नहीं आंका जा सकता है.
नवीकरणीय ऊर्जा की बात करें, तो सौर और पवन ऊर्जा में भारत की क्षमता बीते पांच सालों में दोगुनी हुई है. इस समय यह 100 गीगावॉट से अधिक है, जिसके 2023 तक 175 गीगावॉट की क्षमता होने की संभावना है. देश ने पीएम मोदी की अधिकतर जन कल्याणकारी व लोकलुभावन योजनाओं को काफी पसंद किया है. इन योजनाओं में खुले में शौच से मुक्ति के लिए शौचालय बनाना, घरों के लिए कर्ज देना, सब्सिडी पर कुकिंग गैस और गरीबों को घरों तक पाइप के जरिए पानी पहुंचाना शामिल है. लेकिन दिक्कत इस बात की है कि पानी की कमी की वजह से अधिकतर शौचालय इस्तेमाल नहीं हो पा रहे हैं. दूसरी तरफ ईंधन के दाम बढ़ने से सब्सिडी के लाभ को कम कर दिया गया है. सिलेंडर के महंगे होने से उज्जवला योजना फ्लॉप साबित हो रही है.
22 एम्स के नेटवर्क और दो गुना से भी ज्यादा मेडिकल सीटें
जहां तक स्वास्थ्य सेवा की बात है तो पिछले 60 साल के मुकाबले मोदी सरकार के 8 वर्षों के कार्यकाल में हैल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर का आकार काफी सशक्त और बड़ा हुआ है. पहली बार दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना 'आयुष्मान भारत' के तहत 2 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त उपचार की सुविधा प्राप्त हो चुकी है. आयुष्मान भारत डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत 21.9 करोड़ आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाता आईडी बनाई गई है. चाहे प्राइमरी हैल्थ सेंटर हों, मेडिकल कॉलेज हों या फिर एम्स जैसे सुपर स्पेशियल्टी अस्पताल हों, बीते 8 सालों में इनका नेटवर्क तेजी से फैला है. हम बड़े गर्व के साथ कह सकते हैं कि 6 एम्स से आगे बढ़कर आज भारत 22 से ज्यादा एम्स के सशक्त नेटवर्क की तरफ बढ़ रहा है. इनमें से 7 एम्स (नागपुर, कल्याणी, मंगलागिरी, गोरखपुर, बठिंडा, बिलासपुर और देवघर) मोदी सरकार के कार्यकाल में काम करना शुरू किया है.
बीते 8 वर्षों में 170 से अधिक नए मेडिकल कॉलेज तैयार हुए हैं और 100 से ज्यादा नए मेडिकल कॉलेज पर तेजी से काम चल रहा है. मतलब, मेडिकल कॉलेजों की संख्या में लगभग 45 प्रतिशत का इजाफा इस दौर में हुआ है. डॉक्टरों की संख्या भी 12 लाख से ज्यादा बढ़ी है. लेकिन डब्ल्यूएचओ मानक के हिसाब से प्रति एक लाख आबादी पर बेड और डॉक्टरों की संख्या अभी भी कम है. हालांकि आजादी के वक्त की बेड संख्या की बात करें तो यह 90 हजार भी नहीं थी. आज यह संख्या 20 लाख को पार कर चुकी है. इस समय एक लाख की आबादी पर करीब 90 डॉक्टर और 60 के करीब बेड उपलब्ध हैं.
रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन
खाद्यान्न उत्पादन : कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा 2021-22 के लिए जारी मुख्य फसलों के उत्पादन आंकड़ों की बात करें तो देश में 316.06 मिलियन टन (31 करोड़ 60 लाख टन) रिकार्ड खाद्यान्न उत्पादन हुआ है. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की मानें तो देश में खाद्यान्न उत्पादन लगातार नया रिकार्ड बना रहा है. शायद इसीलिए कोविड काल से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मोदी सरकार ने देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने की जो शुरूआत की थी वह आज भी निरंतर जारी है. अगर आजादी के बाद 1950-51 की बात करें तो तब देश में खाद्यान्नों का कुल उत्पादन 51 मिलियन टन था जो बढ़ते-बढ़ते 2012-13 में 255 मिलियन टन हो गया. कहने का मतलब यह कि खाद्यान्न उत्पादन के मामले में भी बीते 8 सालों में करीब 56 मिलियन टन का इजाफा हुआ है.
निर्यात में नए कीर्तिमान
विश्व व्यापार की बात करें तो कोविड महामारी से उत्पन्न मंदी के बावजूद भरत के विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय प्रगति हुई है. वित्त वर्ष 2021-22 में भारत के वस्तुओं का निर्यात 418 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. यह सब संभव हुआ है पेट्रोलियम उत्पाद, इंजीनियरिंग वस्तुओं, रत्न एवं आभूषण और रसायन क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन से. आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2021-22 के दौरान भारत का वस्तु व्यापार (निर्यात एवं आयात) एक खरब डॉलर के पार चला गया, क्योंकि देश का आयात भी 610 अरब डॉलर के अब तक के सर्वोच्च स्तर तक पहुंच गया. लिहाजा व्यापार घाटे को कम करना मुश्किल हो रहा है. साल 1947 की बात करें तो तब भारत ने 403 करोड़ रुपये मूल्य के उत्पादों का निर्यात किया था जो 2013-14 में बढ़कर 312.60 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया था.
सैन्य साजो-सामान में आत्मनिर्भरता की ओर
भारत का रक्षा बजट 49 अरब 60 करोड़ डॉलर का है यानी लगभग 3.7 लाख करोड़ रुपये का. इस दृष्टि से भारत दुनिया के 140 देशों में छठे स्थान पर है. 770 अरब डॉलर के डिफेंस बजट के साथ सबसे आगे अमेरिका है. उसके बाद चीन दूसरे, रूस तीसरे, ब्रिटेन चौथे और जर्मनी 5वें स्थान पर है. साल 2014 से 2022 तक भारत ने रक्षा क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए कई अहम बदलाव भी किए हैं. आत्मनिर्भर भारत और मेक फॉर वर्ल्ड अभियान के तहत यह हर भारतीय के लिए गर्व करने का विषय है कि अब भारत में बन रहे रक्षा उपकरणों को विदेशों में खरीदा जा रहा है. रक्षा क्षेत्र में किए गए सुधारों का नतीजा ही है कि आज भारतीय रक्षा उत्पादों का कुल निर्यात मूल्य 2014-15 में 1,941 करोड़ रुपए से बढ़कर 2020-21 में 10 हजार करोड़ रुपए को पार कर गया है. रक्षा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 49% से बढ़ाकर 74% कर दिया है. लिहाजा 2014 में 1330 करोड़ के विदेशी निवेश का आंकड़ा बढ़कर 3000 करोड़ के करीब पहुंच चुका है.

सोर्स- tv9hindi.com

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