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सिंधिया के गढ़ में सेंध लगाना?
ग्वालियर-चंबल संभाग की राजनीति में दो स्थापित शक्ति केन्द्र हैं. सिंधिया का महल और भारतीय जनता पार्टी का कद्दावर नेतृत्व. इस अंचल में कांग्रेस का शक्ति केन्द्र हमेशा से सिंधिया परिवार रहा है. पहले माधवराव सिंधिया और उसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के खेवनहार बने रहे. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की राजनीति राघोगढ़ की सीमा के बाद ठहर जाती थी. लेकिन,अब सिंधिया कांग्रेस में नहीं है. सिंधिया के गढ़ में सेंध लगाने के लिए दिग्विजय सिंह के पास अच्छा अवसर है. सिंधिया भी अवसर का लाभ उठा रहे हैं. सिंधिया ने राघोगढ़ के किले में सेंध लगाते हुए दिग्विजय सिंह समर्थकों को भाजपा में शामिल कराना शुरू कर दिया है. हीरेन्द्र सिंह बना का भाजपा में शामिल होना इस बात का साफ संकेत दे रहा है कि गढ़ बचाने की चुनौती दिग्विजय सिंह के सामने ज्यादा है.
हीरेन्द्र सिंह के पिता मूल सिंह राघोगढ़ विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक रह चुके हैं. गुना जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे. दिग्विजय सिंह के कट्टर समर्थक थे. हीरेन्द्र सिंह की राजनीति दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्द्धन सिंह के साथ चल रही थी. पिछले कुछ समय से दिग्विजय सिंह परिवार से हीरेन्द्र सिंह की दूरी साफ देखी जा रही थी. हीरेन्द्र सिंह यह जानते थे कि कांग्रेस में रहते उन्हें राघोगढ़ से एमएलए का टिकट नहीं मिल सकता. चाचौड़ा में भी संभावना नहीं बन रही थी. चाचौड़ा से दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह विधायक हैं. राघोगढ़ की सीट प्रदेश की उन चुनिंदा विधानसभा सीटों में एक है, जहां भारतीय जनता पार्टी जीत नहीं पाती है.
भारतीय जनता पार्टी इस सीट को जीतने के लिए हर बार कोई न कोई प्रयोग करती रहती है. वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह को घेरने के लिए शिवराज सिंह चौहान को मैदान उतारा गया था. शिवराज सिंह चौहान को लगभग 38 हजार वोट मिले थे. दिग्विजय सिंह की जीत लगभग 20000 वोटों से हुई थी. 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से मूल सिंह उम्मीदवार थे. उन्होंने लगभग आठ हजार वोटों से चुनाव जीता था. जयवर्द्धन सिंह ने वर्ष 2013 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा था. उनके राजनीति में आने के बाद साफ हो गया था कि राघोगढ़ विधानसभा सीट पर दिग्विजय सिंह परिवार का कब्जा बना रहेगा. परिवारवाद की इस राजनीति के कारण ही राघोगढ़ में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का पार्टी से मोह भंग हो रहा है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के जरिए भाजपा राघोगढ़ के किले पर कब्जा करने की योजना पर आगे बढ़ रही है.
सिंधिया के महल में सेंध लगाने का मार्ग खोज रहे पिता-पुत्र
ग्वालियर के राज महल और राघोगढ़ के किले के बीच दूरी आजादी से पहले की है. राघोगढ़, सिंधिया रियासत का एक हिस्सा ही था. रियासत का दौर समाप्त होने के बाद सियासत में महल और किले की दूरी नजर आने लगी. विजयाराजे सिंधिया यानी राजमाता ने कांग्रेस पार्टी से ही राजनीति में कदम रखा था. लेकिन, बाद में वे उससे अलग हो गईं. भारतीय जनता पार्टी के गठन में जिन नेताओं का योगदान रहा, उनमें राजमाता भी एक हैं. माधवराव सिंधिया ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से नहीं की थी. वे संजय गांधी के दबाव में कांग्रेस में शामिल हुए. राजीव गांधी के करीबी रहे हैं. माधवराव सिंधिया को जब भी मुख्यमंत्री बनाने की बात चली विरोध के मोर्चे पर दिग्विजय सिंह दिखाई दिए. वर्ष 2018 में पंद्रह साल बाद जब राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह में बड़ा रोड़ा दिग्विजय सिंह की ओर से अटकाया गया. तर्क दिया गया कि विधायकों का बहुमत कमलनाथ के साथ है. दिग्विजय सिंह की रणनीति अपने पुत्र की राजनीति के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह रोकने की थी.
सिंधिया का विरोध जयवर्द्धन के लिए क्यों जरूरी
2018 के विधानसभा चुनाव से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया, जयवर्द्धन सिंह के निमंत्रण पर राघोगढ़ के किले में गए थे. सिंधिया पहली बार राघोगढ़ गए थे. लग रहा था कि कांग्रेस की परंपरागत राजनीति नई पीढ़ी के साथ बदल जाएगी. लेकिन, सत्ता मिली तो दूरी और बढ़ गई. अब सिंधिया जब दूसरी बार राघोगढ़ पहुंचे तो दिग्विजय सिंह परिवार के सबसे करीबी समर्थक को वे अपने साथ ले आए. हीरेन्द्र सिंह के पार्टी छोड़ने का असर जयवर्द्धन सिंह की आगे की राजनीति पर पड़ेगा. सिंधिया राघोगढ़ यात्रा पर दिग्विजय सिंह और जयवर्द्धन सिंह कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. लेकिन, जयवर्द्धन सिंह ने ग्वालियर के कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक के एक वीडियो को शेयर कर सिंधिया से आमने-सामने की लड़ाई का संकेत जरूर दे दिया. वीडियो में प्रवीण पाठक सिंधिया पर जमीन पर कब्जा करने के आरोप लगा रहे हैं. यह वही आरोप हैं, जो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रहते प्रभात झा, सिंधिया पर लगाया करते थे. सिंधिया भाजपा में आ गए तो आरोप लगाने वाला चेहरा कांग्रेस विधायक का हो गया. प्रवीण पाठक को कांग्रेस की टिकट सुरेश पचौरी के कारण मिली थी. लेकिन, अब वे दिग्विजय सिंह के साथ हैं. ग्वालियर की राजनीति में वे महल विरोधी नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाने में लगे हुए हैं. दिग्विजय सिंह ने सिंधिया विरोधियों को एकजुट करने की जिम्मेदारी पुत्र जयवर्द्धन सिंह को दी हुई है.
महल विरोधियों के लिए मददगार हैं दिग्विजय सिंह ?
सिंधिया दिग्विजय सिंह के गृह नगर में थे. दिग्विजय सिंह का कार्यक्रम कुछ किलोमीटर दूर मधुसूदनगढ़ तहसील के ग्राम रघुनाथपुरा में था. यहां वे टेम नदी सिंचाई परियोजना से विस्थापित किसानों से मुलाकात के लिए गए थे. लेकिन, नजर राघोगढ़ के घटनाक्रम पर थीं. दिग्विजय सिंह लगातार ऐसे कई कांग्रेसियों के संपर्क में हैं, जो कि सिंधिया के साथ दल बदलकर भाजपा में चले गए हैं. ग्वालियर-चंबल अंचल में पहली बार ऐसा हो रहा है कि राज परिवार का कोई भी सदस्य कांग्रेस पार्टी में नहीं है. महल विरोधियों के लिए यह स्थिति अपने भविष्य के लिहाज से काफी लाभदायक दिखाई दे रही है. दिग्विजय सिंह भी अपने समर्थकों को मजबूत करने में जुटे हुए हैं. प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ अथवा कांग्रेस के अन्य किसी बड़े नेता का प्रभाव इस अंचल में नहीं है. दिग्विजय सिंह ने अपने खास समर्थक अशोक सिंह को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का कोषाध्यक्ष भी नियुक्त करा दिया है. कांग्रेस की सरकार में भी अशोक सिंह लाभ में रहे थे. उन्हें अपेक्स बैंक का अध्यक्ष बनाया गया था. जाहिर है कि दिग्विजय सिंह प्रवीण पाठक और अशोक सिंह जैसे समर्थकों के जरिए सिंधिया को कमजोर करने में लगे हैं. जबकि डॉक्टर गोविंद सिंह जैसे समर्थक तटस्थ भाव से राजनीतिक स्थिति का आकलन कर रहे हैं. डॉक्टर गोविंद सिंह की दावेदारी प्रतिपक्ष के नेता के पद पर हैं. लेकिन, कमलनाथ यह पद छोड़ नहीं रहे.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
ब्लॉगर के बारे में
दिनेश गुप्ता
दिनेश गुप्ता
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. सामाजिक, राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं. देश के तमाम बड़े संस्थानों के साथ आपका जुड़ाव रहा है.
Gulabi
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