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कंगना रनौत की फिल्म ‘थलाईवी’ हाल ही में रिलीज़ हुई है
कंगना रनौत की फिल्म 'थलाईवी' हाल ही में रिलीज़ हुई है. साउथ वर्जन के रिलीज को लेकर तो कोई समस्या नहीं आई, लेकिन हिंदी वर्जन का मामला बिगड़ गया. हुआ यूं कि निर्माताओं ने तय किया कि फिल्म का हिंदी वर्जन थिएटर में रिलीज़ के दो हफ्ते बाद ही नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम कर दिया जाए. जो हो भी गया. विवाद की जड़ में यह दो हफ्ते की समयावधि ही थी. टॉकीज़ और ओटीटी की इस बहस के बीच हम यह जानने की कोशिश करते हैं फिल्में कैसे कमाई करती हैं.
पहले 'थलाईवी' विवाद को समझ लें. देश के तीन बड़ी सिने चेन ने फिल्म के हिंदी वर्जन को रिलीज़ करने से इंकार कर दिया. उनका कहना था कि जब तमाम फिल्में थिएटर रिलीज़ के चार हफ्ते बाद ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज़ हो रही हैं तो 'थलाईवी' अपना अलग राग कैसे अलाप सकती है? वो दो हफ्ते बाद ओटीटी पर कैसे जा सकती है? सिने चेन में पीवीआर, सिनेपोलिस और आईनॉक्स शामिल थे.
दूसरी तरफ निर्माता का कहना था कि चूंकि दो हफ्ते बाद रिलीज़ करने से हमें अच्छा अमाउंट मिल रहा है, इसलिए हमने इसे जल्दी लाने का सोचा. अगर हम चाहते तो डायरेक्ट ओटीटी प्लेटफार्म पर ला सकते थे, इसके लिए हमें लाभदायक डील मिलती, लेकिन हमने ऐसा नहीं किया. जवाब में सिनेचैन का कहना था कि हिंदी बेल्ट के सिनेमाघर वैसे ही खाली जा रहे हैं, ऐसे में अगर फिल्म दो हफ्ते बाद नेटफ्लिक्स पर देखने को मिल जाएगी तो दर्शक आएंगे ही नहीं.
सिनेमाघर वैसे ही घाटे में चल रहे हैं. हम अगर दो हफ्ते की शर्त को मान जाते तो बाकी निर्माता भी यही मांग करते, उन्हें कैसे मना करते. बता दें फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप हो गई है. इस फ्लॉप ने पहले से ही परेशान चल रहे सिनेमाघरों की कमर तोड़ दी है
अब असल कहानी पर आते हैं. फिल्में कमाई कैसे करती हैं. पहले फिल्म की कमाई और उसके बॉक्स ऑफिस हिट और फ्लॉप के बारे में जानते हैं. हिट और फ्लॉप का तो सीधा सा गणित है. फिल्म ने अगर लागत से ज्यादा कमाकर निर्माता को दिया तो हिट और कम कमाकर दिया तो फ्लॉप. और ज्यादा कमाई सुपर हिट, कम से कम कमाई सुपर फ्लॉप.
फिल्म निर्माण की शुरूआत आइडिया से होती है, जिसका जनक राइटर होता है. फिल्म का स्क्रीनप्ले फाइनल होने के बाद प्रोड्यूसर की देखरेख में प्री प्रोडक्शन शुरू होता है. जिसमें तकनीकी बातों के साथ यह भी तय किया जाता है कि फिल्म के कलाकार कौन से होंगे? लोकेशन कौन सी होगी? इसके बाद फिल्म शूट की जाती है. सबसे अंत में एडिटिंग, साउंड मिक्सिंग वगैरह होती है. अंतत: फिल्म रिलीज़ के लिए तैयार होती है. रिलीज़ के लिए तैयार होने के बाद एक और बड़ा खर्च इसमें जुड़ता है वो है मार्केटिंग और प्रमोशन. यह खर्च या तो प्रोड्यूसर खुद वहन करता है या डिस्ट्रीब्यूटर. ये डिस्ट्रीब्यूटर कौन होता है, हम आगे समझेंगे.
फिल्म दो तरह से रिलीज़ होती है. पहला प्रोड्यूसर खुद फिल्म रिलीज़ करे या फिर डिस्ट्रीब्यूटर को बेच दे. बताते चलें प्रोड्यूसर फिल्म में पैसे लगाता है और उसी के पास इसकी ऑनरशिप होती है. प्रोड्यूसर अगर खुद रिलीज़ करता है तो उसके हिट होने पर मिलने वाले लाभ पर उसका एकमात्र अधिकार होता है. इसी तरह फ्लॉप होने पर हानि भी वही सहन करता है. ये काम बड़े प्रोड्यूसर ही करते हैं, जैसे यशराज, करण जौहर की धर्मा आदि. अगर वो रिस्क नहीं लेना चाहता तो लागत में एक सीमित लाभ की राशि जोड़कर डिस्ट्रीब्युटर को फिल्म बेच देता है. यानि प्रोड्यूसर पिक्चर से एक्जि़ट और डिस्ट्रीब्यूटर चैन एंटर.
डिस्ट्रीब्यूटर चैन, जिस पर हिंदुस्तान की पूरी फिल्मी इंडस्ट्री टिकी हुई है, जो ऊपर से शुरू होती है और नीचे तक जाते हुए फिल्म को थिएटर तक पहुंचाती है. इसमें बड़ा फायदा ये है कि लाभ और हानि ऊपर से नीचे तक डिस्ट्रीब्यूट होता है.
डिस्ट्रीब्यूटर (या प्रोड्यूसर) पहले तो फिल्म के सैटेलाइट या ओटीटी स्ट्रीमिंग के राइट बेचता है. म्युजिक और ओवरसीज़ राइट बेचता है. सेटेलाइट राइट यानि विभिन्न टीवी चैनल पर प्रदर्शन के अधिकार. अब चैनल तो उस तरह पापुलर रहे नहीं सो अब ये राइट ओटीटी प्लेटफार्म को बेचे जाते हैं. थिएटर के बाद यह कमाई बहुत बड़ा जरिया है. ज्ञात हो कि कोविड से पहले फिल्में सिनेमा रिलीज के आठ हफ्ते बाद ओटीटी पर जाती थीं. कोविड के कारण यह घटकर चार हफ्ते हो गया. थलाइवी इसे घटाकर दो हफ्ते करना चाह रही थी, असफल रही. एक और परंपरा शुरू हुई है फिल्म थिएटर के बजाय सीधे ओटीटी प्लेटफार्म पर ही रिलीज़ हो. कोविड के चलते इसने बहुत जोर पकड़ा.
डिस्ट्रीब्युटर फिल्म को देश भर में फैले सब डिस्ट्रीब्युटर को बेचता है, जिनके माध्यम से फिल्म थिएटर तक पहुंचती है. थिएटर में टिकिट बेचकर जो इन्कम होती है उसका बंटवारा डिस्ट्रीब्युटर (या सब डिस्ट्रीब्युटर) और सिनेमा मालिक के बीच होता है. सिंगल स्क्रीन थिएटर के मामले इन्कम का अनुपात थिएटर मालिक को कम और डिस्ट्रीब्यूटर को ज्यादा मिलता है). ज्यादातर मामलों में यह अनुपात थोड़े हेरफेर के साथ 25:75 रहता है. मल्टी स्क्रीन में इसका गणित अलग होता है. पहले हफ्ते में स्क्रीन ओनर को कम बाद के हफ्तों में ज्यादा, जो 50 प्रतिशत से 70 प्रतिशत तक होता है. टैक्स वगैरह काटकर जो नेट एमाउंट निकलता है उसे ही डिस्ट्रीब्यूट किया जाता है.
अब सवाल ये है कि ओटीटी प्लेटफार्म मंहगे दाम में फिल्म खरीदकर अपना पैसा कहां से वसूल करते हैं. यह जुदा कहानी है, सो उस पर अलग से बात.
चलते चलते बात कर लेते हैं ज्यादा कमाई करने वाली फिल्में कौन सी हैं. यह सूची कमाई के क्रम में नहीं है. इनमें शामिल हैं, बाहुबली 2, दंगल, पीके, बजरंगी भाईजान, सीक्रेट सुपरस्टार, रोबोट, सुलतान, संजू, धूम, टाईगर जिंदा है, पद्मावत आदि. लेकिन अगर बात करें हॉलीवुड की फिल्मों की तो बॉलीवुड कमाई के मामले में उनके सामने कहीं नहीं टिकता. फिलहाल बाय.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
शकील खान, फिल्म और कला समीक्षक
फिल्म और कला समीक्षक तथा स्वतंत्र पत्रकार हैं. लेखक और निर्देशक हैं. एक फीचर फिल्म लिखी है. एक सीरियल सहित अनेक डाक्युमेंट्री और टेलीफिल्म्स लिखी और निर्देशित की हैं.
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