सम्पादकीय

बच्चे पढ़ें तो कैसे?

Gulabi
15 Oct 2021 10:24 AM GMT
बच्चे पढ़ें तो कैसे?
x
भारत में शिक्षा का क्या हाल है, इसकी पोल यूनेस्को की ताजा रिपोर्ट से खुली है

तो जाहिर है, शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए शिक्षकों के रोजगार की शर्तों और ग्रामीण इलाकों में काम करने की स्थिति में सुधार करने की अविलंब आवश्यकता है। लेकिन यह सब तब होगा, ये बातें राजनीतिक मुद्दा बनेंगी। जब लोग उसकी मांग करेंगे। फिलहाल तो उसकी कोई संभावना नहीं दिखती। Teachers posts vacant schools


भारत में शिक्षा का क्या हाल है, इसकी पोल यूनेस्को की ताजा रिपोर्ट से खुली है। संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था ने बताया है कि देश में एक लाख स्कूल ऐसे हैं, जिनमें महज एक ही शिक्षक है। इसके अलावा स्कूलों में शिक्षकों के 11 लाख पद खाली हैं, जिनमें से 69 फीसदी ग्रामीण इलाकों में हैं। यूनेस्को की '2021: स्टेट ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट फॉर इंडिया- नो टीचर्स, नो क्लास' शीर्षक से आई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में करीब 1.10 लाख ऐसे स्कूल हैं, जो महज एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। लेकिन समस्या सिर्फ यह नहीं है कि शिक्षकों की कमी है। बल्कि उतनी ही बड़ी समस्या यह है कि स्कूलों के ज्यादातर शिक्षक कम योग्यता वाले हैं। कम योग्यता वाले शिक्षकों के 60 फीसदी तो सिर्फ बिहार में हैं। योग्य कर्मियों के अभाव का असर राज्य के आर्थिक विकास पर भी दिखता है। ऐसा समझा जाता है कि इस तरह की समस्याएं सिर्फ सरकारी स्कूलों में होती हैं। इसीलिए लोगों में निजी स्कूलों के प्रति आकर्षण बढ़ा है। लेकिन यूनेस्को की रिपोर्ट ने इस भ्रम को तोड़ा है।
उसके मुताबिक कम योग्यता वाले 60 फीसदी शिक्षक निजी स्कूलों में ही हैं। तो क्या किया जाए। इसके कुछ सुझाव यूनेस्को ने भी दिए हैँ। मसलन, रिपोर्ट में शिक्षकों के लिए करियर में बेहतरी के रास्ते बनाने, नौकरी से पहले पेशेवर कौशल के विकास, तकनीक और कंप्यूटर ट्रेनिंग देने जैसे सुझाव दिए गए हैं। 1968 के बाद जारी सारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति रिपोर्टों में कहा गया कि भारत को अपने सकल राष्ट्रीय उत्पादन का छह प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करना चाहिए। लेकिन 2019-20 के आर्थिक सर्वे के अनुसार पहली रिपोर्ट के 52 साल बाद भारत ने शिक्षा पर सिर्फ 3.1 फीसदी का खर्च किया है। सरकारी खर्च का बड़ा हिस्सा करीब 10 लाख सरकारी स्कूलों पर जाता है, जबकि उसका छोटा हिस्सा सरकारी सहायता से चलने वाले स्कूलों को जाता है। इसके बावजूद वहां शिक्षा का स्तर चिंताजनक ही है। तो जाहिर है, शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए शिक्षकों के रोजगार की शर्तों और ग्रामीण इलाकों में काम करने की स्थिति में सुधार करने की अविलंब आवश्यकता है। रिपोर्ट में उचित ही शिक्षकों को फ्रंटलाइन कार्यकर्ता के रूप में मान्यता देने की सिफारिश की गई है। लेकिन यह सब तब होगा, ये बातें राजनीतिक मुद्दा बनेंगी। फिलहाल तो उसकी कोई संभावना नहीं दिखती।
नया इण्डिया
Next Story