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अमेरिका में ‘सार्वजनिक नैतिकता’ के पैरोकारों ने वर्ष 1920-33 के बीच एक बड़ा फैसला लिया
ब्रज मोहन सिंह अमेरिका में 'सार्वजनिक नैतिकता' के पैरोकारों ने वर्ष 1920-33 के बीच एक बड़ा फैसला लिया. समाज से अपराध, भ्रष्टाचार और सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के लिए देश में शराबबंदी लागू करवा दिया गया. इसके पीछे एक तर्क यह भी था कि शराब से होने वाली मौतों को रोका जाए और आम नागरिकों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जाए. हालांकि, पूर्ण शराबबंदी के लिए अमरीकी टेम्परेन्स सोसाइटी (Amerikan Temperance Society) 1826 से ही लगातार संघर्षरत था, सौ वर्ष के संघर्ष के बाद प्रतिबंध लगाने में सफलता मिली, संयोगवश तब भी आंदोलन की सफलता के मूल में महिलाएं ही थीं.
ये कोई आसान फैसला नहीं था, चूंकि उस समय अमेरिका में बेरोजगारी काफी बढ़ रही थी और अपराध का ग्राफ भी लगातार बढ़ता जा रहा था. वर्ष 1933 आते-आते अमेरिका में अमेरिका में अन्य नशों का उपभोग चरम पर पहुंच गया, जिसकी कीमत राज्य को भुगतनी पड़ रही थी. स्थिति इतनी विकट हो गई कि 1933 में 21वें संविधान संशोधन के जरिये शराब बंदी कानून को उठा लेना पड़ा. अमेरिका के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस द्वारा पारित किए गए किसी कानून को दोबारा निरस्त करना पड़ा हो.
इस घटना के कई पहलू थे, कई सबक थे, लेकिन इसका ये मतलब ये कतई नहीं था कि शराबबंदी फेल हो गया था. इसका मतलब ये नहीं था कि पॉलिसी अपने आप में गलत थी. उस समय अमेरिका में एक वर्ग ऐसा था जो शराब पीना अपना अधिकार समझता था, चाहे वो कहीं से भी मिले. पहला वर्ग, जो सुविधा सम्पन्न था, आसानी से शराब हासिल कर लेता था, उसमें पुलिस वाले भी थे, सीनेटर भी शामिल थे, कांग्रेसमेन भी शामिल थे. वहीं दूसरी तरफ एक दूसरा अमेरिका था, आम लोगों का, जो शराब माफिया के चंगुल में फंसा था और घटिया शराब पीता था.
जिस समय अमेरिका में शराबबंदी लागू थी, वहाँ के सबसे बड़े गैंगस्टर अल कपोने ने उस समय कानून की धज्जियां उड़ा दीं. मज़ाक-मज़ाक में ये भी कहा जाता था कि अमेरिका में शराब की उपलब्धता कई गुना ज़्यादा बढ़ गई थी, प्रतिबंध के बाद लोग पहले से कहीं ज़्यादा पीने लगे थे. अमेरिका में जहां सभी राज्यों ने शराबबंदी वापस कर ली, वहीं मिसीसिपी ने इसे 1966 तक किसी न किसी तरह से जारी रखा. आखिर कड़े कानून के बावजूद भी अमेरिका शराबबंदी वापस लेने के लिए क्यों मजबूर हुआ?
'वार ऑन अल्कोहल' नमक किताब में लिखते हुए इतिहासकार लीज़ा मैकगिर लिखती हैं कि इस कानून में गलती यही थी कि इसने आम लोगों की ज़िंदगी में 'तांक-झांक' करना शुरू कर दिया था. प्रतिबंध के कारण वैसे लोग पुलिस के हत्थे चढ़ने लगे जो कमजोर थे या कम सुविधा-सम्पन्न थे. गरीब, प्रवासी या बेघर लोग सताये जाने लगे थे. अफ्रीकन-अमेरिकन समुदाय के खिलाफ शराब निषेद कानून का सबसे ज़्यादा प्रयोग किया गया. यही वो दौर था जब बुटलेगिंग का उदय हुआ. शराबबंदी के दौरान हिंसक घटनाओं में 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई, चोरी और सेंधमारी में 9 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई. हत्या में 12.7 का इजाफा हुआ वहीं, नाशुईली दवाओं की लत में 44 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई.
हालांकि, उस समय के आंकड़े यह भी बताते हैं कि अमेरिका में लीवर सोरोसिस, शराबजनित बीमारियों और शिशु मृत्यु दर में भारी कमी आई, लेकिन हर गुजरते वर्ष के साथ शराबबंदी के समर्थकों की तादाद कम होती गई, पशोपेश में फंसे तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलीन रूज़वेल्ट ने अनमने ढंग से अधिनियम पर अपने हस्ताक्षर कर दिये और 3.2 प्रतिशत अल्कोहल के साथ बीयर को बेचने और पीने की अनुमति दे दी गई. बीसवीं सदी का पूर्वार्ध कई मायनों में प्रयोगों का दौर था, न सिर्फ अमेरिका में बल्कि कनाडा, सोवियत संघ और यूरोप के कई देशों में शराब निषेध रहा. आज भी ज़्यादातर इस्लामी देशों में शराब पर पाबंदी ही है.
अमेरिका में आखिरकार शराब निषेध के युग का अंत हो गया क्योंकि आधी से ज़्यादा आबादी वहाँ शराब बेचने और पीने के पक्ष में खड़े थे. निषेध युग के अंत के बाद शराब पीना सामाजिक तौर पर ज़्यादा स्वीकार्य हुआ, महिलाओं के बीच बैठकर भी लोग शराब पीने लगे. लेकिन इस नीति के अंत होते होते कम से कम 10,000 लोग नकली शराब पीने से मर चुके थे. शराब से जुड़ी वर्जनाएँ को खत्म होने में 13 वर्ष लगे गए लेकिन तब तक अमेरिकी समाज बदल चुका था. 'सोशल ड्रिंकिंग' के साथ साथ जिम्मेवारी पूर्वक पीने (responsible drinking) का नया समय आ चुका था.
खैर, 1920 के दौर के बाद पूरी दुनिया में महामंदी का दौर आया, अमेरिका भी इससे अछूता नहीं था. आज सौ वर्ष के बाद जब मुड़कर देखते हैं तो शराब निषेध के दौर से बहुत कुछ सीखने और समझने का मौका मिलता है. दुनिया निश्चित तौर पर काफी आगे बढ़ चुकी है.
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