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- कैसे पलटी बिहार चुनाव...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। समय और किस्मत बदलने में देर नहीं लगती. बिहार विधानसभा चुनाव में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला. 28 अक्टूबर को 71 सीटों पर पहले चरण में चुनाव हुआ और अगले 10 दिनों में सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो गया. जो ताजपोशी की तैयारी कर रहे थे, उन्हें अब विपक्ष में बैठना पड़ेगा. जिनके मुंह में सत्ता के नाम पर पानी आ रहा था, उनका अब गला सूख रहा है. जो गद्दी छोड़ कर राजनीति से संन्यास लेने की सोच रहे थे, वे राज करते रहेंगे और जो चुनाव विशेषज्ञ प्रदेश में एनडीए सरकार के पतन की जोर शोर से भविष्यवाणी कर रहे थे, अब मुंह छुपाने की जगह ढूंढ रहे हैं.
चुनाव जीत-हार का खेल है, पर चुनाव के मध्य में ही वोटर का मूड बदल जाना और पासा पलट जाना, जैसा कि बिहार में दिखा, शायद ही पहले कभी देखा गया हो. पहले चरण में जिन 71 सीटों पर चुनाव हुआ, वह उत्तर प्रदेश और झारखंड से सटे इलाके थे जिसे राष्ट्रीय जनता दल और मार्क्सवादी दलों का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है. आशा के अनुरूप आरजेडी और महागठबंधन में उसके सहायक दलों को इन क्षेत्रों में भारी विजय मिली. उसके बाद सब कुछ बदल गया. चुनाव आयोग ने चुनाव खत्म होने से पहले एग्जिट पोल के परिणाम दिखने पर रोक लगा रखी है, न कि एग्जिट पोल पर. लगता है कि पहले चरण के चुनाव के बाद एग्जिट पोल के परिणाम को जानबूझ कर लीक कर दिया गया, जिससे दूसरे क्षेत्रों में मतदान प्रभावित हुआ. यह लीक किसने किया यह जांच का विषय हो सकता है पर यह दोधारी तलवार की तरह सामने आया. महागठबंधन की सोच रही होगी कि इस खबर के लीक होने से उनको फायदा मिलेगा क्योंकि ऐसे बहुत सारे मतदाता होते हैं जिनका किसी पार्टी या नेता ने विशेष लगाव नहीं होता. वह अपना वोट खराब नहीं करना चाहते और जीतने वाली पार्टी को ही अपना वोट देते हैं. वहीं एनडीए को इस खबर से जनता के बीच जंगलराज की वापसी का खौफ पैदा करने का सुनहरा मौका मिल गया.
जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता को आकर्षित करने की कोशिश में संघर्ष करते दिख रहे थे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूसरे चरण के मतदान से पहले तेजश्वी यादव को जंगलराज का युवराज कहना शुरू कर दिया. डबल इंजन की सरकार बनाम दो युवराज की चर्चा छेड़ दी. 15 वर्ष गुजर जाने के बाद भी बिहार की जनता को जंगलराज भूला नहीं था. बीजेपी की एक खासियत है 'माउथ कैंपेनिंग' की, जो अक्सर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी होती है. वह घर-घर और मोहल्ले-मोहल्ले जा कर आखिरी मिनट तक प्रचार और प्रसार का काम करते हैं. उनके जरिये जंगलराज की वापसी और इसके दुष्परिणाम की बात जनता तक पहुंचाई गई और इसका नतीजा हुआ महागठबंधन के बैलून का पंचर हो जाना. 7 नवंबर को हुए तीसरे और आखिरी चरण के मतदान तक महागठबंधन की हवा निकलने लगी थी और एनडीए का पतंग आसमान में बुलंदियों को छूने के प्रयास में लगा था
पहले चरण के मतदान के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि नीतीश कुमार से जनता बहुत खुश नहीं है और उनके नाम पर वोट शायद न मिले. बीजेपी ने बड़ी चतुराई के साथ अपने कैंपेन मटेरियल से नीतीश कुमार की फोटो गायब कर दी और पूरा फोकस नरेंद्र मोदी पर दिया गया, जिसका प्रत्यक्ष लाभ मिला. जंगलराज की वापसी का इतना खौफ हो गया था कि लोगों को लगने लगा कि भले ही नीतीश कुमार में ढेर कमियां हों, पिछले पांच साल में वे जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे हों पर वे आनेवाले जंगलराज से कहीं बेहतर ही हैं. जनता को याद दिलाया गया कि एनडीए की सरकार में सरेआम सरकारी लूट और भष्टाचार पर लालू-राबड़ी के 15 साल की सरकार के मुकाबले गिरावट देखी गई. सबसे महत्वपूर्ण बात, बीजेपी अगर मजबूत रही तो नीतीश कुमार के ऊपर मोदी का अंकुश रहेगा. मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र में AIMIM की उम्मीदवारी से आरजेडी के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लग गई. नतीजा रहा सीमांचल से AIMIM की अप्रत्याशित 5 सीटों पर जीत और महागठबंधन को आशा से कम सीटों पर जीत.
जंगलराज वापसी की बात निकली और दूर तक गई. बीजेपी ने कहा कि तेजश्वी यादव की सभा में देखी जाने वाली भीड़ उन्ही लोगों की है जो एक बार फिर से जंगलराज की आस में बैठे हुए हैं. जंगलराज का खौफ बढ़ता गया, तेजश्वी यादव को अपने पिता लालू प्रसाद यादव के कुकर्मों की सजा मिली और बिहार की जनता, चाहे वह नीतीश कुमार से नाखुश रही हो, को यथास्थिति (status quo) बहाल रखना बदालव से कहीं बेहतर विकल्प दिखा और नीतीश कुमार की सरकार जाते जाते बच गई.