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कांग्रेस पार्टी ने बाल दिवस को कैसे बवाल दिवस बना दिया?
अजय झा. भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीतने के लिए शायद अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है. बीजेपी की जीत इस लिए सुनिश्चित नहीं है कि प्रदेश के मतदाता डबल इंजन की सरकार से बहुत खुश हैं, बल्कि कांग्रेस पार्टी एक ऐसा माहौल तैयार करने में जुट गयी है जिसका सीधा फायदा बीजेपी को ही मिलेगा. कांग्रेस पार्टी भले ही खुद चुनाव नहीं जीत पाई, पर समाजवादी पार्टी की लुटिया जरूर डुबो देगी.
कांगेस पार्टी ने अपने उत्थान के लिए जो रास्ता चुना है वह खतरों से भरी डगर है. पार्टी की शायद यही योजना है कि अगर उत्तर प्रदेश के 20 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या में से अधिकतर उसके साथ जुड़ जाएं तो पार्टी का कायाकल्प हो जाएगा. उत्तरप्रदेश के 403 विधानसभा क्षेत्रों में से लगभग 125 से 130 सीट ऐसे हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 20 प्रतिशत या उससे अधिक अधिक है और उनकी भूमिका इन क्षेत्रों में निर्णायक मानी जाती है.
अय्यर ने फिर छेड़ा एंटी हिंदू राग
अभी कुछ दिन पहले तक कांग्रेस पार्टी खासकर पार्टी के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी मंदिरों के चक्कर लगाते दिख रहे थे और अपने रगों में कश्मीरी पंडित का खून होने की बात कर रहे थे, पर कांग्रेस पार्टी को शायद यह अहसास हो गया कि मोदी और योगी के रहते हुए धर्म के नाम पर उसे हिन्दू वोट मिलने वाला नहीं है. वैसे भी अधिकतर हिन्दू कट्टरवादी नहीं होते हैं और सिर्फ धर्म के नाम पर वोट करने वाले हिन्दुओं की संख्या बहुत ही कम है. लिहाजा अब जबकि चुनाव मात्र तीन महीने दूर है, कांग्रेस पार्टी यू-टर्न ले कर अब उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने की कोशिश करती दिख रही है. राशीद अल्वी ने राम भक्तों को निशाचर बता कर मुस्लिम पटाओ योजना का श्रीगणेश किया, राहुल गांधी ने हिन्दू और हिंदुत्व का बवाल शुरू किया, सलमान खुर्शीद ने हिंदुत्व की तुलना इस्लामी आतंकवादी संगठनों से की और अब बारी थी पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर की. प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की जन्म तिथि 14 नवम्बर जिसे देश में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है, उसे अय्यर ने बवाल दिवस बना दिया. उन्होंने मुग़लों को सच्चा भारतीय बताया और कहा कि मुग़लकाल में हिन्दुओं पर कोई जोर-जबरदस्ती नहीं हुयी, अगर ऐसा होता तो जब अंग्रेजी हुकूमत ने 1872 में पहली बार जनगणना की तो भारत में 72 प्रतिशत हिन्दू और 24 प्रतिशत मुस्लिम होने की जगह 72 प्रतिशत मुस्लिम होते और 24 प्रतिशत हिन्दू. अय्यर ने आरोप लगाया कि बीजेपी को भारत के सिर्फ 80 प्रतिशत हिदू की चिंता है और 20 प्रतिशत अल्पसंख्यकों को वह देश में मेहमान ही मानती है.
हिंदुओं और सिखों की कुर्बानी को भूले
मणिशंकर अय्यर पढे लिखे हैं, भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रहे हैं. पर या तो उन्होंने इतिहास पढ़ा नहीं या फिर वह इतिहास का वह अध्याय भूल गये हैं जिसमे जजिया कर की बात है, धर्मांतरण की बात है और जिन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया कैसे उनका सर कलम कर दिया गया या उन्हें दीवार में चुनवा दिया गया. यह तो संभव नहीं है कि इतिहास गलत है और अय्यर सही हैं. उन्होंने एक झटके में हिन्दू और सिखों की कुर्बानी को नकार दिया.
वैसे बता दें कि अय्यर बीजेपी के सबसे अच्छे दोस्त और हितैषी हैं. बीजेपी कभी नहीं भूल सकती कि कैसे अय्यर ने कांग्रेस में रहते हुए 2014 में बीजेपी को चुनाव जीतने में मदद की थी. नरेन्द्र मोदी के चाय वाला होने की और चाय पर चर्चा कार्यक्रम की शुरुआत ही हुयी थी कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के अधिवेशन के बाहर, जो दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में हुआ था,अय्यर ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मोदी को चाय की दुकान खोलने का वह प्रबंध करेंगे. यह मजाक कांग्रेस पार्टी के लिए महंगा पड़ गया. देश की गरीब जनता ने इसे उनकी गरीबी के उपहास के रूप में देखा और चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस पार्टी को चाय पीने और पिलाने के भी लाले पड़ गए.
बेरोजगारी से परेशान हैं अय्यर
अय्यर ने शायद शोध किया होगा कि आज के भारतीय मुसलमानों के पूर्वज स्वेच्छा से हिदू धर्म छोड़ कर इस्लाम को कबूल किया था. बात सही भी है, अगर मुग़लों ने ज्यादती की होती तो वह अय्यर होने की जगह शायद अब्दुल होते. अय्यर शायद भूल गए कि कैसे अपनी जान की कुर्बानी दे कर भी लोगों ने हिन्दू धर्म की रक्षा की थी. वैसे अगर देखें तो अय्यर की भी अपनी मजबूरी है. बेरोजगारी से वह परेशान हैं. पार्टी में उन्हें अब कोई पूछता भी नहीं है. लिहाजा अगर पार्टी में किसी बड़े पद पर वापसी करनी है तो इसके लिए राहुल गांधी को खुश करना जरूरी है और उन्होंने बस राहुल गांधी के प्रयासों को गति प्रदान करने की कोशिश की.
मुस्लिम समुदाय के वोट बटोरने के चक्कर में अगर उत्तर प्रदेश में हिदू मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो जाता है तो इसका दोष बीजेपी का कतई नहीं होगा, हालांकि बीजेपी भी अयोध्या और अन्य ऐसे मुद्दों को उठा कर यही कोशिश कर रही है. पर अब इसकी जरूरत नहीं है, क्योकि अब यह काम राहुल गांधी और उनके समर्थक कर रहे हैं.
इतना तो स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी अपनी पुरानी गलतियों से कोई सबक नहीं सीखने की कसम खा रखीं है. अगर एक ही गलती को बार बार दुहराया जाए तो या तो इसे या तो सोच की कमी कहा जाएगा या फिर यह मृत्यु-इच्छा ही हो सकती है. धर्म निरपेक्ष होने का दावा करने का यह मतलब नहीं हो सकता कि आप भारत के बहुसंख्यकों के धर्म का अनादर करें. कांग्रेस का यह प्रयास पार्टी के लिए आने वाले दिनों में भारी पड़ सकता है.
Gulabi
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