सम्पादकीय

कैसे बढ़ गई भारत की कूटनीतिक ताकत..?

Rani Sahu
28 Sep 2022 5:33 PM GMT
कैसे बढ़ गई भारत की कूटनीतिक ताकत..?
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by Lagatar News
Kalyan Kumar Sinha
शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के दौरान भारत की कूटनीतिक सफलता की गूंज न्यूयार्क में चल रही संयुक्त राष्ट्र महासभा में सुनाई पड़ी है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैंक्रो ने समरकंद में प्रधानमंत्री के स्पष्टवादी रुख की प्रसंशा के पल बांधे तो अमेरिका सहित दूसरे देश ने भी सुर मिलाए. भारत के लिहाज से शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की शिखर बैठक सफल रही. पिछले शुक्रवार को उज्बेकिस्तान के शहर समरकंद में संपन्न बैठक में दुनिया को पता चल गया कि भारत की कूटनीतिक ताकत बढ़ती जा रही है.
बैठक में भारतीय कूटनीति छाई रही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ओर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रति उपेक्षा के भाव प्रदर्शित कर यह संकेत दे दिया कि भारत उनकी धूर्तता पसंद नहीं करता. दूसरी ओर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को भी जता दिया कि आतंकवाद के मुद्दे पर भारत कोई समझौता नहीं कर सकता. प्रधानमंत्री की सबसे चर्चित मुलाकात तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से रही. जिसकी गूंज अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स, समाचार एजेंसी रॉयटर्स, बीबीसी न्यूज सहित अनेक पश्चिमी मीडिया की सुर्खियां बनीं, वही रूस की सरकारी न्यूज एजेंसी 'ताश' और रूसी अखबार 'द मॉस्को टाइम्स' ने भी मोदी के कथन को हैडलाइन बना कर पेश किया.
प्रधानमंत्री मोदी ने वर्त्तमान वैश्विक समस्याओं पर जैसा स्पष्टवादी रुख अपनाया, उसकी चीन ने या यहां तक कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भी कल्पना नहीं की थी. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ भी बगले झांकते नजर आए. पीएम मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को याद दिलाया कि यह वक्त युद्ध का नहीं है, बल्कि वर्तमान में दुनिया की बड़ी चिंताएं खाद्यान्न, उर्वरक और तेल की सुरक्षा को लेकर है. इस साल फरवरी में शुरू हुए यूक्रेन संकट के बाद पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की ये पहली मुलाकात थी. हालांकि दोनों कई बार फोन पर बातचीत कर चुके हैं.
भारत और रूस एक दूसरे को करीबी मित्र मानते हैं. इसके बावजूद यूक्रेन युद्ध को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत रूस का प्रत्यक्ष समर्थन करने से बचता रहा है. शंघाई सहयोग संगठन की इस इस शीर्ष बैठक के दौरान भारत ने युद्ध की प्रासंगिकता को सिरे से नकारते हुए रूसी राष्ट्रपति को समझाया कि अब यह युद्ध का समय नहीं, 'लोकतंत्र, कूटनीति और संवाद' का समय है.
भारत, जिसे पश्चिमी मीडिया रूस के मामले में अमेरिकी और यूरोपीय देशों के प्रतिबंधों के बावजूद चीन के साथ भारत को भी मॉस्को के एक महत्वपूर्ण फाइनैंसर निरूपित कर चुका था और डिस्काउंट पर रूसी ऊर्जा खरीद यूक्रेन के खिलाफ रूस को परोक्ष रूप से मदद करने वाला बता रहा था, वही पश्चिमी मीडिया समरकंद में मोदी के रुख का कायल दिखाई दिया. इसके साथ ही पश्चिमी देशों का यह भ्रम भी टूटा है कि यूक्रेन-रूस युद्ध को लेकर भारत की नीयत साफ है, वह किसी गुट विशेष का हिस्सा बन कर नहीं रह सकता. उसके राष्ट्रीय हित उसके लिए सर्वोपरि हैं.
इसके साथ पीएम मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हसरत भी पूरी नहीं होने दी. शी जिनपिंग को उन्होंने अपनी एक मुस्कान भी नसीब नहीं होने दी. चूंकि भारतीय और चीनी कमांडरों की 9 सितंबर की बैठक में लद्दाख के पेट्रोल प्वाइंट 15 से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटने को तैयार हो गई थी और केवल तीन दिनों में सैनिकों का पीछे हटना भी शुरू हो चुका था. संभवतः इसी पेट्रोल प्वाइंट 15 से सेना पीछे हटाने के समझौते को शी जिनपिंग बड़ी सौगात समझ रहे थे. उन्हें शायद यह लगा होगा कि मोदी इसका अहसान मानेंगे और उनके प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करेंगे. शी जिनपिंग की यह अधूरी हसरत भी मीडिया की नजरों से छुप नहीं सका.
जो चीन दर्जनों बैठकों के बाद भी एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं था, वह अचानक कैसे तैयार हो गया? दरअसल वह डोकलाम वाली चाल चलना चाहता था. भारतीय कूटनीति के महारथियों को यह समझते देर नहीं लगी कि यह भारत को अपने जाल में फंसाने की चीनी चाल है. डोकलाम में ब्रिक्स सम्मलेन के पूर्व चीन के साथ लंबे अरसे तक तनातनी के बाद अचानक मामला सुलझ गया था. इस बार भी चीन दुनिया को दिखाना चाहता था कि तमाम तरह के विवादों और तनाव के बावजूद भारत के साथ उसके संबंध ठीक ठाक हैं. इस तरह वह दुनिया में अपनी छवि सुधारने के लिए भारत का इस्तेमाल करना चाहता था.
डोकलाम तनातनी के समय ब्रिक्स सम्मेलन चीन में आयोजित था. चीन नहीं चाहता था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डोकलाम मसले के कारण ब्रिक्स सम्मलेन में शामिल होने से इंकार कर दें. उसी तर्ज पर उसने भारत को फिर इस्तेमाल करने की चाल चल दी थी. 15 और 16 सितंबर को समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक होने वाली थी और 9 सितंबर को अचानक खबर आई कि भारतीय और चीनी कमांडरों की बैठक में लद्दाख के पेट्रोल प्वाइंट 15 से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटने को तैयार हो गई हैं. केवल तीन दिनों में सैनिकों के पीछे हटने की भी बात की गई. चीन की काठ की हांडी दूसरी बार काम नहीं कर पाई.
पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ भी इसी उम्मीद से समरकंद आए थे, भारत के पीएम से गुफ्तगू का मौका मिलेगा. लेकिन सम्मलेन में भारत के रुख ने देख उनकी भी हसरत शायद पश्त हो चुकी थी. शंघाई सहयोग संगठन के इस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने बड़े साफ शब्दों में पाकिस्तान और चीन की मुखर आलोचना कर दिखा दिया कि भारत एक स्वाभिमानी राष्ट्र है. उसे बरगलाने की कोशिश भी दूसरे को भारी पड़ेगी और उसे इस बात की भी चिंता नहीं है कि उसके प्रतिद्वन्द्वी अथवा विरोधी बदला भी ले सकते हैं.
दरअसल, चीन और पाकिस्तान को अपनी खुन्नस निकालने के अनेक अवसर मिलाने वाले हैं. भारत इसी साल जी-20 सम्मलेन की अध्यक्षता करने वाला है, जो इसी वर्ष दिसंबर में नई दिल्ली में होगा. फिर लगे हाथ अगले वर्ष 2023 में शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन भारत में ही होगा और भारत ही उसकी अध्यक्षता करेगा. इन सम्मेलनों में चीन और पाकिस्तान के खुन्नस की परवाह किए बगैर प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय कूटनीति की परिपक्वता की झलक दुनिया को दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. लेकिन भारत को अब अपने इन धुर्त पड़ोसियों से सावधान तो रहना ही होगा.
भारत जी-20 के अध्यक्ष के नाते अपनी पसंद के अतिथि देशों का चयन कर सकता है, उन्हें अतिथि देश के तौर पर आमंत्रित भी कर सकता है. यह भारत के लिए अपने मित्र देशों से सदभावना बढ़ाने का बढ़िया मौका है. दुनिया की 20 बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के इस समूह में वह जी-20 सम्मलेन में बांग्लादेश, मिस्र, मॉरिशस, नीदरलैंड्स, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और संयुक्त अरब अमीरात को न्योता भेज कर एक बार फिर अपनी साख और मजबूत कर सकेगा. बांग्लादेश भारत का पड़ोसी ही है. वहीं इस सूची में अरब, यूरोप, अफ़्रीका और पूर्वी एशिया के देश शामिल हैं, जिनका एससीओ राष्ट्रों पर भी अलग-अलग तरह से प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव है.
इसी साल दिसंबर में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता भी भारत को करनी है. फिलहाल भारत सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य है. सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता का दावेदार भी बन ही गया है. संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारत को स्थाई सदस्य बनाने का गुरुवार एक बार फिर समर्थन दुहराया है.
इसी साल जून महीने में जर्मनी में हुई जी-7 की शिखर बैठक में भारत ने इसमें मेहमान देश की भूमिका निभाई थी. जी-7 में जर्मनी ने भारत को अतिथि देश के तौर पर बुलाया था. दुनिया के सात ताकतवर देशों के संगठन जी-7 में भी भारत को शामिल करने की चर्चाएं होती रहती हैं, लेकिन इसमें अभी कामयाबी मिलती नजर आनी बाकी है. लेकिन, अगर ऐसा होता है तो भारत के लिए बड़ी बात होगी. तब यह संगठन जी-8 हो जाएगा.
विश्व मंच पर भारत की बढ़ती साख और कूटनीतिक ताकत देश के लिए गर्व का विषय तो है, साथ ही अपनी इस साख और ताकत को अछुण्ण बनाए रखने के लिए देश की आतंरिक स्थिति को भी मजबूती देनी जरूरी है. साम्प्रदायिकता के आरोप-प्रत्यारोप वाले दौर के साथ धार्मिक उन्माद से सामाजिक सौहार्द को क्षति पहुंचाने की प्रवृति पर अंकुश भी जरूरी है. घर की मजबूती से ही बाहरी ताकतों का सामना सरलता से संभव है. साथ ही अपनी सामरिक ताकत अभी और बढ़ाने की भी हमें जरूरत है.
Rani Sahu

Rani Sahu

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