सम्पादकीय

कितना बड़ा खतरा है ओमीक्रोन

Rani Sahu
30 Nov 2021 5:34 PM GMT
कितना बड़ा खतरा है ओमीक्रोन
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भारत में कोरोना के मामले घटने शुरू हुए ही थे कि इसका नया रूप ओमीक्रोन सुर्खियों में आ गया

चंद्रकांत लहारियाभारत में कोरोना के मामले घटने शुरू हुए ही थे कि इसका नया रूप ओमीक्रोन सुर्खियों में आ गया। दक्षिण अफ्रीका और बोत्सवाना में सबसे पहले पाया गया यह 'वेरिएंट' अब तक के सबसे अधिक 50 'म्यूटेशन' (बदलाव) के साथ आया है। करीब 32 बदलाव तो स्पाइक प्रोटीन में हैं, और इनमें से 10 ऐसे हिस्सों में, जो संक्रमण की दर, बीमारी की गंभीरता और 'इम्यून स्केप' यानी वैक्सीन के असर को निर्धारित करते हैं। यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे 'वेरिएंट ऑफ कंसर्न' (वायरस का चिंताजनक रूप) माना है।

डेल्टा के बाद यह सर्वाधिक संक्रामक वेरिएंट माना जा रहा है। विशेषज्ञों की मानें, तो भले ही इसमें कई सारे बदलाव हैं, लेकिन यह समझने के लिए हमें कुछ दिन और इंतजार करना पड़ेगा कि असलियत में वायरस का यह नया रूप हमारे लिए कितनी बड़ी चिंता है? वैसे, इस वैश्विक महामारी में यह तो साफ है कि सावधानी और बचाव से बेहतर कोई दूसरा उपाय नहीं है। इसने यह भी बता दिया है कि हमारा भविष्य एक-दूसरे के साथ जुड़ा है, और दुनिया के किसी भी हिस्से में वायरस का रूप बदलता है, तो वह दूसरे हिस्से को भी समान रूप में प्रभावित कर सकता है।
ओमीक्रोन पांचवां 'वेरिएंट ऑफ कंसर्न' है और डेल्टा के बाद पिछले सात महीनों में पहला। नवंबर के दूसरे सप्ताह में दक्षिण अफ्रीका और बोत्सवाना में पहली बार मिला वायरस का यह नया रूप इजरायल, हांगकांग, ब्रिटेन, बेल्जियम, इटली, चेक गणराज्य, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों में फैल चुका है।
दरअसल, म्यूटेशन हर वायरस का स्वाभाविक गुण है। संक्रमण के बाद शरीर में जब भी वायरस फैलता है, तो उसके आनुवंशिक अनुक्रम में कुछ बदलाव हो सकते हैं। अधिकांश बदलाव महत्वहीन होते हैं, लेकिन कुछ की वजह से उसके गुणों में परिवर्तन हो सकता है। सार्स कोव-2 के मामले में अगर बदलाव से वायरस के संक्रमण की क्षमता बढ़ जाती है या गंभीर बीमारी होती है या बीमारी के लक्षणों में बदलाव होता है या नया रूप प्राकृतिक या टीका प्रेरित प्रतिरक्षा को चकमा दे जाता है, तो इसे 'वेरिएंट ऑफ कंसर्न' का नाम दिया जाता है। ओमीक्रोन में मिले कुछ बदलाव पहले अल्फा, बीटा, गामा और लैम्ब्डा वेरिएंट में भी पाए गए थे। फिर, वायरस के व्यवहार को समझने के लिए अकेले बदलाव की उच्च संख्या पर्याप्त नहीं होती। जैसे, बीटा वेरिएंट में प्रतिरक्षा से बचने की क्षमता थी और करीब 100 देशों में इसका पता चला था, फिर भी यह प्रमुख संस्करण नहीं बन पाया।
उल्लेखनीय है कि पता चलने के दो सप्ताह में ही ओमीक्रोन दक्षिण अफ्रीका के कुछ प्रांतों में तेजी से फैल गया। इस वजह से इसको अधिक संक्रामक माना जा रहा है, लेकिन क्या यह गंभीर बीमार करता है? इसके खिलाफ टीका कितना कारगर है और क्या यह वास्तव में तेजी से फैलता है? इन सब सवालों के जवाब वैज्ञानिक अनुसंधान में छिपे हैं। हालांकि, कुछ दिनों पहले दक्षिण अफ्रीका के डॉक्टरों द्वारा कही गई यह बात आश्वस्त करती है कि ओमीक्रोन से संक्रमित लोगों में कोई नया या असामान्य लक्षण नहीं दिखता।
अगर यह वेरिएंट अधिक संक्रामक साबित होता है, तब भी जिन देशों में टीकाकरण ठीक है या यह सही दिशा में है, उनको जोखिम कम है; कम वैक्सीन-कवरेज वाले देशों के लिए खतरा अधिक हो सकता है। इतना ही नहीं, इसमें अगर प्रतिरक्षा से बचने की क्षमता दिखती है, तब भी टीकों का प्रभाव बना रहेगा, चाहे उसकी प्रभावशीलता कुछ कम हो जाए।
हालांकि, भारत में अभी तक इसका कोई मामला पहचाना नहीं गया है, लेकिन अगर जांच आगे बढ़े, तो संभव है कि हमारे यहां भी वायरस का यह रूप मिले। यह कोई बड़ी बात नहीं होगी। पहले भी दक्षिण अफ्रीका से निकला बीटा वेरिएंट भारत में पाया गया था, लेकिन उसका अधिक संक्रमण नहीं हुआ। मुख्य बात यह है कि इस पर निगरानी रखी जाए, और जो जानकारी मिल रही है, उसके हिसाब से रणनीति बनाई जाए। जैसे, हवाई अड्डों पर बेहतर टेस्टिंग और जीनोम सीक्वेंसिंग की दरकार हमेशा रहेगी।
नए खतरे की आमद को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को अपनी तैयारियों का आकलन करना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि अपने यहां पिछले कुछ सप्ताहों में टीकाकरण की रफ्तार कम हो गई है और लोगों ने भी मास्क व अन्य कोविड-अनुरूप व्यवहारों से दूरी बना ली है। कोविड-19 जांच और जीनोम सीक्वेंसिंग की दर में आई कमी को भी जल्द ही पाटना होगा।
अभी इस बात का भी कोई संकेत नहीं है कि नया रूप बच्चे या अन्य आयु-वर्ग के लोगों को अलग तरह से प्रभावित करता है? वैसे भी, भारत में डेल्टा का संक्रमण घट गया है, इसलिए शिक्षण संस्थानों को खुले रखना चाहिए। कुछ लोगों की चिंता यह है कि कहीं फिर से लॉकडाउन जैसे प्रतिबंध न लग जाएं, लेकिन इसकी आशंका इसलिए नगण्य है, क्योंकि वायरस का फैलना हम सबके व्यवहार पर निर्भर करता है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत में महामारी के खिलाफ लड़ाई में विज्ञान संचार एक कमजोर पहलू रहा है। भारतीय नीति-निर्माताओं को समय-समय पर और पारदर्शी तरीके व विश्वसनीय स्रोतों से जानकारियों को साझा करते रहना होगा, अन्यथा दूसरी लहर की तरह अफवाहें बात बिगाड़ सकती हैं। फिर, कोविड संक्रमण की दर भले ही कम हो गई हो, व्यक्तिगत तौर पर हमें हमेशा कोविड-उपयुक्त व्यवहारों का पालन करना चाहिए और विशेष तौर पर बड़ी सभाओं व जलसों से बचना चाहिए। महत्वपूर्ण यह भी है कि तमाम वयस्कों का जल्द से जल्द पूर्ण टीकाकरण हो। याद रखना होगा कि पूरी तरह से टीकाकरण किए हुए लोगों में गंभीर बीमारी का खतरा, आंशिक या बिना वैक्सीन लगे लोगों से कम है।
अच्छी बात है कि अपने देश में अब पर्याप्त टीके बन रहे हैं। इसलिए केंद्र सरकार को वैक्सीन मैत्री में भी तेजी लाकर अफ्रीकी देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराना चाहिए। जब तक कोरोना वायरस दुनिया के किसी भी देश में फैल रहा है, तब तक उसमें बदलाव की आशंका बनी रहेगी और दुनिया भर में चिंता कायम रहेगी। ओमीक्रोन याद दिलाता है कि महामारी के खिलाफ लड़ाई में विश्व को एकजुट रहना होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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