सम्पादकीय

कैसी हो हमारी स्कूली शिक्षा

Rani Sahu
11 July 2023 6:51 PM GMT
कैसी हो हमारी स्कूली शिक्षा
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हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की तरफ से स्कूली शिक्षा को लेकर परफॉर्मिंग ग्रेड इंडेक्स (पीजीआई) जारी किया गया है। इस साल चंडीगढ़ और पंजाब सबसे ऊपर हैं। केरल और महाराष्ट्र संयुक्त रूप से दूसरे नंबर पर हैं। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शिक्षण व्यवस्था के लिए पीजीआई जारी होता है। 1000 नंबर में से मिले नंबर से रैंकिंग तय की जाती है। इंडेक्स में लर्निंग आउटकम, समानता और बुनियादी ढांचे और अन्य आधार पर 1000 में से प्राप्त नंबर के आधार पर दस ग्रेड में रैंकिंग की जाती है। लेकिन पहले पांच लेवल (701 से 1000 नंबर) में किसी राज्य को जगह नहीं मिली है। सबसे ऊपर रैंकिंग वाले चंडीगढ़ और पंजाब को छठे लेवल इफर्ट-2 में जगह मिली है। यह 1000 में से 641-700 के बीच स्कोर को दिखाता है। पिछले साल सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों- केरल, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और आंध्र प्रदेश ने 1000 में से 901 और 950 अंक के बीच स्कोर किया था। इस बार इफर्ट-3 लेवल में शामिल पंजाब और चंडीगढ़ के बाद गुजरात, केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली, पुड्डुचेरी और तमिलनाडु का नाम है। इन राज्यों को इफर्ट-3 (581-640) लेवल में शामिल किया गया है। इसके बाद एसपिरेंट-1 लेवल (521-580) में अंडमान निकोबार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, लक्षद्वीप, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गोवा, सिक्किम, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और हिमाचल हैं।
एसपिरेंट-2 (461-520) की लिस्ट में असम, नागालैंड, बिहार, ओडिशा, जम्मू और कश्मीर, तेलंगाना, झारखंड, त्रिपुरा, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, लद्दाख और उत्तराखंड हैं। अंतिम लेवल एसपिरेंट-3 (401-460) में तीन राज्य अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और मिजोरम को शामिल किया गया है। 10 पैमानों पर कोई राज्य खरा नहीं उतरा। नई शिक्षा नीति आने के बाद 2021-22 में पीजीआई को पुनर्गठित किया गया है। हालांकि सभी 10 पैमानों पर किसी भी राज्य को पूरे अंक नहीं मिले हैं। स्कूली शिक्षा का हमारे देश के लिए बड़ा महत्त्व है। शिक्षा एक व्यापक लक्ष्य है। शिक्षा बच्चों के अंदर विचार और कर्म की स्वतंत्रता विकसित करती है। दूसरों के कल्याण और उनकी भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता उत्पन्न करती है। शिक्षा हर वर्ग के लिए अनिवार्य है। वास्तव में शिक्षा पर होने वाले विचार-विमर्श को इनकी वास्तविकताओं के संदर्भ में रखकर देखा जाए। शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने की सोच और यह विचार कि सभी बच्चों को स्कूल जाना चाहिए, शिक्षा और विकास के क्षेत्र में काम कर रहे हम में से अधिकांश लोगों के दिलो-दिमाग पर छाया हुआ है। स्कूली शिक्षा दुनिया भर के देशों की सर्वोच्च प्राथमिकता है। बच्चों को स्कूल जाने में मदद करने और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने की पहल विकास और समृद्धि के परिदृश्य को बदल सकती है। वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट 2021 के अनुसार अखिल भारतीय स्तर पर 6-14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों के लिए, निजी स्कूलों में नामांकन 2018 में 32.5 फीसदी से घटकर 2021 में 24.4 प्रतिशत हो गया है। निरंतर विकास दर्ज करने और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए कुछ उपाय किए जाने चाहिएं। किसी भी समाधान और परिवर्तन के साथ शुरुआत करने के लिए समस्या के मूल कारण की पहचान करना महत्त्वपूर्ण है।
शिक्षा का निम्न कारणों से पतन हुआ है, जैसे कि उचित बुनियादी ढांचे का अभाव, खराब अध्यापन कौशल, प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव, ज्ञान प्रदान करने में सैद्धांतिक दृष्टिकोण का उपयोग करना, बच्चे के सीखने का खराब आकलन/मूल्यांकन व स्कूलों के बीच उच्च प्रतिस्पर्धा इत्यादि, इन चुनौतियों पर काबू पाने और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए स्कूलों के लिए कुछ सुझाव हैं। पहले तो एक स्कूल को मानदंडों के अनुसार आवश्यक बुनियादी सुविधाएं प्रदान करके छात्रों को स्कूल आने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसमें फर्नीचर, बोर्ड, बिजली की फिटिंग, साफ और स्वच्छ शौचालय, एक गतिविधि और खेल क्षेत्र, प्रयोगशालाएं और एक कंप्यूटर लैब के साथ एक विशाल कक्षा होना चाहिए। लेकिन उनके उचित उपयोग और रखरखाव के बिना उन सभी सुविधाओं का होना एक बच्चे को स्कूल जाने से हतोत्साहित कर सकता है। सुव्यवस्थित बुनियादी ढांचा सीखने का माहौल बनाता है। शिक्षाशास्त्र कौशल को ही लें। यहां सीखने, अनसीखने और दोबारा सीखने की अवधारणा को लागू करने की जरूरत है। हमें रटने की बजाय वैचारिक तरीकों की ओर बदलाव की जरूरत है जो शिक्षकों और छात्रों को व्यस्त रख सके। किसी विषय का पसंद या नापसंद करना पढ़ाने के तरीके पर निर्भर करता है। हमें बेहतर परिणाम के लिए अपने शिक्षण कौशल को बढ़ाने और उन्नत करने की आवश्यकता है। शिक्षकों की गुणवत्ता पर स्कूल समझौता करते हैं। अधिकांश स्कूल कम वेतन पर शिक्षकों को नियुक्त करके गुणवत्ता से समझौता करते हैं। शिक्षक कक्षा में प्रमुख तत्व हैं, जो बच्चों के दिमाग को ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं।
हमें प्रशिक्षण प्रदान करके और उन्हें आधुनिक शिक्षण सहायता, उपकरण और स्मार्ट कक्षाओं और डिजिटल पाठ्यक्रम सामग्री जैसी पद्धतियों से लैस करके शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार करने की आवश्यकता है। स्कूली शिक्षा से जुड़े लोग यह समझें कि छात्रों पर दबाव डालने से उनका मन पढ़ाई से भटक जाएगा और इससे उनकी आगे की शिक्षा जारी रखने में रुचि बाधित हो सकती है। एक स्कूल को विभिन्न सह-पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियों में शामिल किया जाना चाहिए जो स्कूल में छात्रों की रुचि को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में काम करती हैं। इसमें उचित खेल सुविधाएं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए रास्ते होने चाहिए जो छात्रों के जीवन कौशल और व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करें। अंतर-विद्यालय प्रतियोगिताएं आयोजित की जानी चाहिए। कुछ निजी स्कूल दिशानिर्देशों का पालन करते हैं, लेकिन किसी तरह उन्हें बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए हमारे पास उचित निगरानी और मूल्यांकन का अभाव है।
निजी स्कूलों में सुधार के लिए कार्यक्रम और पहल के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए एक उचित चैनल विकसित करने की आवश्यकता है। यह काम चुनी हुई सरकारों का है। दुनिया के प्रगतिवादी विचारों ने बच्चों के अधिकारों के दृष्टिकोण से स्कूली शिक्षा को अनिवार्य बना दिया है। स्कूली शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो उनके अंदर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने की और मौलिक अभिव्यक्ति की प्रवृत्ति तथा सौन्दर्यबोध की समझ को विकसित कर सके। स्कूली शिक्षा एक ऐसी पूंजी है जिसको हर कोई पाना चाहता है। बच्चों के माता-पिता के अंदर एक आस होती है, जो पढ़ा-लिखाकर उनके बच्चों को आगे बढ़ाती है। हम बिना अच्छी शिक्षा के अधूरे हैं क्योंकि शिक्षा हमें सही सोचने वाला और सही निर्णय लेने वाला बनाती है। इस प्रतियोगी दुनिया में, शिक्षा मनुष्य की भोजन, कपड़े और आवास के बाद प्रमुख अनिवार्यता बन गई है। यह सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान प्रदान करने में सक्षम है।
डा. वरिंद्र भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : [email protected]
By: divyahimachal
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